Tuesday, May 8, 2018

राजा पोरस एक झूठा और काल्पनिक पात्र यूनानियों द्वारा बनाया हुआ।(King Porus is Fake and made up Character by Greeks)

क्षमा चाहता हूँ कि कई दिनों तक पोस्ट नही कर पाया।
कुछ महीने पूर्व ही सोनी टीवी पर एक धारावाहिक शुरू हुआ था जिसका नाम पोरस है और यह काफी प्रचलित भी हो रहा है। मेने इसके कुछ एपिसोड देखे और मुझे इसने काफी निराश किया। उसमे एक तो भर भर के झूठ था और ऊपर से हमारी भोली भाली जनता उन सब को सत्य मां रही थी। इसी कारण जब मैने इस बारे में शोद्ध किया तो मैं इस नतीजे पर आया कि राजा पोरस एक काल्पनिक और झूठा किरदार है जिसे यूनानियों ने अपने प्रोपगंडा के लिए बनाया था।
आज इस झूठ का आलम यह है कि लोग एक क्रूर और हत्यारे राजा को महान बोलते है और उसके बनाए एक काल्पनिक किरदार को गर्व से अपना पुरखा मानते है।
मैने देखा है असलियत में और इंटरनेट पर की कैसे लोग पोरस को भारत का पहला रक्षक, पंजाब का शेर, सच्चा राजपूत, चंद्रवंश का गौरव, सूर्यवंश का दीपक आदि कहते है। कुछ पाकिस्तानी भाई तो उसे मुसलमान भी बताते है  और कुछ उसे इसराइल के भटके क़बीलों में से एक काबिले का वंशज भी।
आज सिकंदर की आत्मा जहाँ भी होगी, वह यह देख खुश हो रही होगी कि भले ही जीते जी वह भारत जीत न सका, पर मारने के बाद कमसे कम वह अपने झूठ से भारतीयों के दिमाग को कब्ज़ा पाया।
चलिए कुछ बातों पर ध्यान देते है।

पहला: (उसके बारे में जो भी जानकारी उप्लब्ध है, वह यूनानी लेखों से ही मिलती है।)

पोरस के बारे में जो हमारे जानकारी मिलती है वह केवल और केवल यूनानी लेखको से प्राप्त होती है। क्यों भला भारतीयों ने ऐसे वीर और पराक्रमी राजा के बारे में  नही लिखा जिसने तथाकथित सिकंदर के आक्रमण से भारत की रक्षा की थी। उसके बारे में तो छोड़िये, उस लड़ाई का या खुद सिकंदर के भारत के आक्रमण का हमे कही ज़िक्र नही मिलता भारत मे, भले ही वह हिन्दू ग्रंथ हो या बौद्ध या फिर जैन।
भला हम केवल यूनानियों की बातें ही क्यों माने? क्या वे सच्चाई के ठेकेदार थे और केवल सत्य ही लिखते थे? यहाँ हम यह कह सकते है कि उनकी बांतों में लगभग 50% सत्यता हो सकती है। यहाँ मै 50% भी इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि मैं कोई विशेषज्ञ नही हु इस विषय का और कोई भी विशेषज्ञ आकर बोल सकता है कि मैं झूठा हूँ, भले ही मेरे पास हज़ारो प्रमाण ही क्यों न हो अपनी बात सिद्ध करने के लिए। यह 50% उन लोगो के लिए है जो अंधो की तरह इन विशेषज्ञ लोगो की बांतों पर विश्वास कर लेते है। पहले खुद पढ़े और फिर विश्वास करे। मैने अपना यह सिद्धांत अपने एक पढ़े लिखे दोस्त को बताया था और उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं भांग कहकर आया हूँ? वह यही कह रहा था कि विशेषज्ञ गलत नही हो सकते।
खैर छोड़िए और आगे बढ़ते है।

दूसरा
(उसका असली नाम क्या था?)

हम बस उसे पोरस नाम से जानते है और कुछ विशेषज्ञों का अंदाज़ा था कि पोरस एक यूनानी नाम है जो शायद संस्कृत पुरु से आया हो। कुछ कहते है कि उसका नाम पुरषोत्तम था, जिसका वह लोग कोई प्रमाण नही दे पाते। और कुछ उसे मुद्राराक्षस नाम के एक किरदार पर्वतेश्वर से भी जोड़ देते है। पर्वतेश्वर भी गंधार राज्य के पड़ोस में राज करता था जैसा कि पोरस का भी था, पर नाटक में पर्वतेश्वर और गंधार नरेश में मित्रता थी जबकि यूनानियों के अनुसार गंधार नरेश और पोरस एक दूसरे के दुश्मन थे। साथ ही मुद्राराक्षस में सिकंदर के आक्रमण और पर्वतेश्वर के उससे लड़ने का कोई उल्लेख नही है। पर्वतेश्वर का एक भाई भी था जिसका नाम मलयकेतु था और उसी ने पर्वतेश्वर की हत्या की थी, जबकि यूनानियों अनुसार, किसी यूनानी अफसर ने पोरस की हत्या की थी।
नाम तो छोड़िए, हमे उसके कुल और माता पिता तक का नाम नही पता। इतिहासकारो ने बस अंदाज़ा लगा लिया कि क्योंकि उसका नाम पुरु था, इसलिए वह पुरु वंश का होगा और शायद उसके राज्य का नाम पुरु ही होगा।
महाभारत में पुरु राज्य ही आगे चलकर कुरु राज्य बन जाता है और वे आज के दिल्ली और मेरठ के इलाके पर
राज करते थे न की पंजाब में। 

तीसरा 
(हमें गंधार के करीब के महाजनपदो में पुरु राज्य का नाम नहीं मिलता)

बौद्ध, जैन और हिन्दू ग्रंथो में हमें कही भी गंधार महाजनपद के करीब किसी पुरु महाजनपद का उल्लेख नहीं मिल्त। गंधार के करीब जो महाजनपद बताया गया है वह है कम्बोज।


चौथा
(ईरानी लेखो अनुसार पंजाब पर कुछ वर्षो तक उनका राज था पर यूनानी किसी भी ईरानी अफसर या व्यवस्था का जीकर नहीं करते)

ईरानी शासको के अनुसार उन्होंने गंधार और हिन्द जीता था पर अब तक हमारे पास कोई भी पुरातात्विक साबुत नहीं है। शायद भारतीय राजाओ को हराकर उन्होंने उन्हें वहा राज करते रहने की अनुमति दे दी हो और बदले में वः लोग ईरान को कर चुकाएँगे। पर यूनानी लेखको ने भारत में किसी भी ईरानी अफसर या राजा का ज़िक्र नहीं किया, जिसका अर्थ हो सकता है, या तो वह लोग यहाँ ईरानी शासन मिटने के कई वर्ष बाद आये या फिर कभी आये ही नहीं। दोनों ही स्थिति में सिद्ध होता है की उन्होंने झूठ लिखा था। 

पाँचवा 
(यूनानी तक्षिला विश्वविद्यालय का उल्लेख नहीं किये है)

यूनानियो ने कही भी तक्षिला विश्वविद्यालय का ज़िक्र नहीं किया जो की बहुत ताज्जुब की बात है क्युकी गंधार गंधार उनका मित्र राष्ट्र था। इसके अलवा उन्होंने आचार्य चाणक्य का उल्लेख भी नहीं किया जो तक्षिला के ही थे और चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु थे। जबकि यूनानी चन्द्रगुप्त का और सिकंदर के मिलने का उल्लेख करते है।

छतवा

(सिकंदर की आदत थी की वह जिस देश में भी जाता,वहा की थोड़ी बहुत संस्कृति अपना लेता पर उसने भारतीय संस्कृति नहीं अपनाई) 

सिकंदर भारत में २ वर्ष तक रहा पर उसने भारत की कोई भी संस्कृति नहीं अपनाई। वह जहा भी जाता वहा की संस्कृति अपनाता जैसे की वह जब मिस्र गया तो उसने वहा की थोड़ी बहुत संस्कृति अपना ली और मिस्र के राजा फ़राओ की उपाधि धरना की, और जब वह ईरान गया तो उसने ईरान के राजा शहनशा की उपाधि धारण की और वेश भूषा अपनाई। पर भारत में उसने ऐसा कुछ नहीं किया और न ही यूनानी लेखक हिन्दू, जैन या बौद्ध धर्म का कोई उल्लेख करते है, यहाँ तक की सिकंदर ने महाराज की उपाधि भी नहीं ली। हा बस एक बेढंगी सी कहानी बना दी की सिकंदर भारत से एक नंगे सन्यासी को लेकर चला गया था।

सातवा
(वह इतना दयावान नहीं था की किसी से खुश होकर उसे उसका राज्य लौटा दे )

सिकंदर बेहद ही क्रूर था, उसने अपने उन सभी सम्भंधियो को मरवा दिया था जो उसकी गद्दी को छीन सकते थे और इनमे कई छोटे छोटे बच्चे भी थे। वह जो शहर जीतता उसे जला देता और वहा के लोगो को बेहरमी से मरवा देता। ईरान के राजा दारा तृतीय ने सिकंदर को २ दफा संधि का प्रस्ताव भेजा था और दोनों ही दफा सिकंदर ने उसे ठुकरा दिया। ईरान के आगे अस्वक जाति एक दुर्ग से उसका सामना हुआ, वहा के लगभग सभी वीर लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गए, यहाँ तक की उनका राजा भी। इस सब के बावजूद राजा की बड़ी माँ ने दुर्ग को संभाले रखा, और जब सिकंदर को लगा की दुर्ग जितना मुस्किल है तो उसने बड़ी रानी माँ की संधि स्वीकारने का झूठा नाटक किया और जैसे ही सिकंदर का अस्वासन मिलते ही अस्वको ने द्वार खोले, सिकंदर ने अपनी सेना को सबको मार डालने का आदेश दिया। और मरने वाले में अधिकतर औरतें और बच्चे थे।

सब सिकंदर इतना क्रूर था, तो यह कहानी हम कैसे मान ले की उसने पोरस से खुश हो उसे उसका राज्य लौटा दिया था?

इससे यही सिद्ध होता है की सिकंदर भारत आया ही नहीं था। वह शायद आज के अफ़ग़ानिस्तान तक पंहुचा होगा और शायद आगे बाद ही न पाया होगा। लगातार हारने के बाद जब उसकी सेना ने सुना की भारत में ननदों की काफी बड़ी सेना है तो उन्होंने विद्रोह कर लिया और वे वाही से बाबल चले गए। बाबल पहोच सिकंदर ने कहानी रच दी की वह भारत से जीतकर लौटा है और अपने मन में हार का गम लिए युही एक दिन वह मर गया।

जय माँ भारती। 

Monday, October 10, 2016

सोम उर्जा है न की शराब।

पश्चिमी इतिहासकारों ने जब आर्यों का इतिहास लिखना शुरू किया तब उन्होंने ईरानी ग्रंथो और वेदों में समानता देखि। इसका कारण यह था की ईरानी लोग आर्य ही थे जिन्होंने अपना धर्म त्याग दिया था पर उसके बावजूद उनके नए धर्म में आर्य धर्म के कई अंश बचे हुए थे और उनमे सोम भी है। ईरानी ग्रंथो में सोम को होम कहा गया है जो की किसी वनस्पति का रस था जिसे ईरानी अपने अनुष्ठानो में उपयोग करते थे। ईरानी ग्रंथो यस्न में ही लिखा है कि होम एक वनस्पति है [यस्न १०.५] और यह शराब की तरह मादक है [यस्न १०.८] साथ है होम रस को सबसे पहले यिम के पिता विवान्ह्वंत ने बनाया था [९.४]।

पश्चिमी इतिहासकारों ने इन्ही सब को पढ़ कर कल्पना कर ली कि होम या सोम असल में किसी वनस्पति का रस है जो मादक है। पश्चिम के श्री श्री डेविड अन्थोनी ने अपनी पुस्तक में इसी कल्पना के आधार पर लिखा है कि आर्य यूरेशिया से आकार वक्शु नदी के पास बसे और वक्शु सभ्यता का निर्माण किया। यहाँ आर्य और अनार्य मध्य एशियाई लोगो का मिश्रण हुआ जिस कारण आर्यों ने उन मध्य एशियाई लोगो के कई रीत अपना ली जिनमे सोम रस का सेवन भी शामिल था। अपनी बातों को सिद्ध करने के लिए श्री श्री डेविड जी बताते है कि वक्शु सभ्यता के नगरो में कई जगह ऐसे बर्तन मिले है जिसे सोम अनुष्ठानो के लिए उपयोग किया जाता होगा। श्री श्री वेंडी दोनिगेर जिन्हें पता नहीं संस्कृत में डिग्री कहा से मिल गयी लिखती है कि आर्य शराबी लोग थे और जिन ऋषियों को वेदों का ज्ञान मिला वह असल में सोम रस के नशे और भ्रम के कारण उत्पन हुआ था। [The Hindus: An Alternative History]  

फिर भी यह महाज्ञानी लोग सोम की पहचान करने में असफल रहे। जब इन्हें अपने शोधो से यह पता चल गया कि सोम अनुष्ठानो की उत्पत्ति कहा हुई और किस कदर आर्य ऋषियों को वेद का ज्ञान प्राप्त हुआ तो आप उस वनस्पति की पहचान क्यों न कर सके? आज टेक्नोलॉजी इतनी आगे है प्राचीन काल के बर्तन की खुरचन से या मानव के मॉल से पता चल जाता है की वे क्या खाते थे। तो फिर वक्शु सभ्यता के उन तथाकथित बर्तनों को जिनमे सोम रस रखा जाता था उसका विश्लेषण कर पता क्यों नहीं करते की सोम किस वनस्पति से आया है?

यह इसलिए संभव नहीं है क्युकी पश्चिमी इतिहासकार भी जानते है की उनकी बातें केवल कल्पना मात्र है। सोम असल में वह दिव्य उर्जा है जो सभी जीवो में है। यह उर्जा वृक्ष आदि सूर्य और चन्द्र से प्राप्त करते है और यही उर्जा हमें भोजन में प्राप्त होती है। पुरानो के अनुसार सोम देव या चन्द्र चन्द्र ग्रह और जंगल और जानवरों के पालनहार है। वे ही है जो सूर्य की उर्जा को शीतल कर इस संसार को देते है और हमारा पालन पोषण करते है। ऋग्वेद के ४ मंडल ४० सूक्त के मंत्र २ अनुसार सोम और पूषण अर्थात चन्द्र और सूर्य के कारण इस संसार में अन्धकार गायब हो गया और इन्ही दोनों के कारण फासले अच्छी और गाय पौष्टिक दूध देती है वेदों के अंग्रेजी अनुवाद अनुसार, वही स्वामी दयानंद सरस्वतीजी के अनुसार यहाँ सोम का अर्थ चन्द्र और औषिधि है।