आप सोच रहे होंगे की मैं अशोकवंदन का भंडाफोड़ क्यों कर रहा हु ?
जवाब सरल है
हिन्दुओ ने कभी दुसरे धर्मो को नुकसान नहीं पहोचाया पर अशोकवंदन में जीकर मिलता है की पुष्यमित्र शुंग ने बोद्ध भिक्षुओ की हत्या की
यह केवल एक ही घटना है
पर इसी एक घटना से ही हिन्दू विरोधियो ने कई कहानिया लिख दी
इससे हिंदुत्व बदनाम हो रहा
श्री जमनादास जिन्होंने Tirupati Balaji was a Buddhist Shrine नाम की हिन्दू विरोधी किताब लिखी है
इन्होने ही एक लेख में लिखा है की होली असल में पुष्यमित्र शुंग ने शुरू की थी ताकि बोद्ध भिक्षुओ को जलाया जा सके और आज वह एक त्यौहार है
अब जमनादास जी तहरे अम्बेडकरवादी
उनका यह लिखना लाजमी है ।
अब बात करते है अशोकवंदन की
अशोकवंदन 2 इसवी में मथुरा में लिखी गई थी
यह दिव्यवंदन का एक भाग है
अशोकवंदन सम्राट अशोक की जीवनी कह सकते है ।
हिन्दू विरोधी हमेशा हिन्दू ग्रंथो को नकारते है यह कहकर की हिन्दू ग्रन्थ काल्पनिक है ,इसमें जादू वगेरा है
तो अशोकवंदन कौनसी सत्यकथा है
इसमें हजारो चमत्कार है
सिद्धार्थ गौतम भविष्यवाणी करते है की जय नाम का बालक अगले जन्म में सम्राट अशोक बनेगा ।
जादू से ऑंखें ठीक करना
जादू से असली नर मुंडी बनाना
और वगेरा वगेरा
अब हिन्दू विरोधी इस पुस्तक को कैसे ले सकते है साबुत के तौर पर ?
साथ ही इस पुस्तक का मुख्य पात्र ही हत्यारा है
यानि अशोक मौर्य
अशोकवंदन के अनुसार एक ऐसी घटना घटी पाटलिपुत्र में जिससे अशोक को खूब गुस्सा आया ।
हुआ यु की एक जैन धर्मी ने एक चित्र बनाया जिसमे गौतम बुद्ध वर्धमान महावीर के पैर छुकर आशीर्वाद ले रहे है
क्युकी जैन मानते थे की गौतम बुद्ध भी जैन अनुयायी है
गौतम बुद्ध के गुरु थे उदक रामपुत्र, जिन्होंने े गौतम बुद्ध के राज्य छोड़ने के बाद उन्हें ध्यान,योग आदि सिखाया ।
अब कुछ बोद्ध भिक्षुओ ने इसकी शिकायत की अशोक से
अशोक ने उसी दिन पाटलिपुत्र में उस चित्रकार और अन्य 18 हज़ार जैन अनुयायियों को जला दिया ।
इसके बाद यह ऐलान किया की जो व्यक्ति किसी जैन भिक्षु का सर लेकर आएंगा उसे मुहरे मिलेंगी ।
क्या तभी कोई था नहीं अशोक को रोकने वाला ?
इससे पता चलता है की बोद्ध भिक्षु भी कट्टर धर्मवादी है
साथ में वे गौतम बुद्ध के सिधांत भी भूल गए
इस नरसंहार के बाद अशोक को धर्मरक्षक कहा गया बोद्ध भिक्षुओ द्वारा ।
तो क्यों केवल लोगो को पुष्यमित्र ही नजर आता है जबकि उससे बड़ा हत्यारा अशोक था ।
अब आते पुष्यमित्र की कहानी पर
केवल थोड़ा ही लिखा गया है पुष्यमित्र पर
"पुष्यमित्र अपनी सेना के साथ आया और उसने पाटलिपुत्र के स्तूप तबाह कर दिए ।"
"पुष्यमित्र ने सगल (सालकोत) में हजारो स्तूप तोड़े ,हजारो भिक्षुओ को जला कर मार दाला ।"
"पुष्यमित्र ने ऐलान किया की जो भी व्यक्ति उसे बोद्ध भिक्षु का सर लाकर देगा उसे मुहर मिलेगी ,यह सुन एक अरहंत(एक सिद्ध बोद्ध भिक्षु) ने अपनी शक्तियों से असली सर बनाकर लोगो को दिए ताकि बोद्ध भिक्षुओ की हत्या न हो ।"
अब बोद्ध धर्मियो को बोद्ध भिक्षुओ की हत्या नरसंहार लग रहा है पर जैन अनुयायियों की हत्या पर अशोक को धर्मरक्षक कहा जा रहा है ।
और क्या अशोक के वक़्त कोई अरहंत नहीं था जो नकली सर बनाकर हजारो जैन अनुयायियों की जान बचा सकता था
पर आपने एक बात देखि ?
पुष्यमित्र की कहानी असल में अशोक की कहानी की कॉपी है
जैसे अशोक ने जैन धर्मियो को जलाया और उनके सर की मांग की उसी कदर पुष्यमित्र ने भी बोद्ध भिक्षुओ को जलाया और सरो की मांग की थी
अब कॉपी है तो यह बात झूठ ही होगी
साथ में केवल अशोकवंदन में ही लिखा है की पुष्यमित्र मौर्य वंश का राजा था और उसका साम्राज्य सगल (सालकोत) तक था
पर अन्य ग्रंथो के अनुसार पुष्यमित्र के जीते जी उसका साम्राज्य जालंधर तक था
साथ में पुष्यमित्र के सिक्के केवल जालंधर तक ही मिले है
और तो और सगल(सालकोत) कोई ऐरी गैरी जगह नहीं थी
वह हिन्द-यूनानियो (Indo-Greeks) की राजधानी थी
साथ में हिन्द यूनानियो से पुष्यमित्र ने लड़ाई की ही नहीं
केवल उसके पुत्र अग्निमित्र और पोते वसुमित्र ने लड़ाई की हिन्द यूनानियो से और उन्हें खदेड़ दिया वह भी पुष्यमित्र की मृत्यु के बाद
यानि की जब पुष्यमित्र जीवित था तो वह सगल गया ही नहीं और नाही वह उसके साम्राज्य का हिस्सा था
यह तो अग्निमित्र था जिसने सगल जीता
तो क्या अशोकवंदन के लेखक ने गलती से अग्निमित्र के बजाए पुष्यमित्र का नाम लिख दिया ?
यदि ऐसा है तब तो यह पुस्तक ही गलत है
अशोकवंदन पुष्यमित्र के 200 वर्ष बाद लिखी गई
और लेखक को यह भी नहीं पता की सगल पुष्यमित्र के राज्य में नहीं था
साफ़ है
अशोकवंदन एक उपन्यास की तरह है
इसमें केवल काल्पनिक कहानिया है
अशोक का बोद्ध धर्म के लिए प्रेम दिखाने के लिए उसके हाथो हजारो जैन धर्मियो को मरवा दिया गया
अरहंत की शक्ति दिखाने के लिए पुष्यमित्र का नाम ख़राब कर दिया लेखक ने
बरुच और सांची के स्तूपो पर शुंग वंश के कई राजाओ का नाम है और उन्हें देवप्रिय आदि नाम दिए गए है क्युकी शुंग वंश राजाओ ने इन स्तूपो की मरम्मत कराइ थी
इसमें पुष्यमित्र का भी नाम है
और शुंग वंश की बोद्ध धर्म से कोई दुश्मनी नहीं थी ।
यदि पुष्यमित्र ने भिक्षुओ की हत्या की तो इसके पीछे वजह क्या थी ?
अशोकवंदन में पुष्यमित्र के इस कार्य की वजह नहीं दी गई है
और यदि वह बोद्ध धर्म से घृणा करता था तो स्तूपो पर उसका नाम क्यों है ?
हिन्दू धर्म ने हमेशा अन्य धर्मो का सम्मान किया है पर अन्य धर्म ऐसे नहीं है
बोद्ध ग्रन्थ महावंश में वित्तागामिनी जो लंका का राजा था उसके द्वारा एक जैन मठ को तबाह करने का जीकर है
जैन कथाओ में भी जीकर है बोद्ध भिक्षुओ को बहस में हराने के बाद जैन धर्मियो ने बुद्ध की प्रतिमा को लात मारकर गीरा दिया
हाल ही में श्री लंका में बोद्ध धर्मियो ने एक हिन्दू मंदिर तोड़ दिया ।
हिन्दुओ के किलाफ़ एक ही ऐसा आरोप है जिसे मैंने गलत साबित कर दिया है
आज मुसलमानों ने अफगान में और उत्तरप्रदेश में बुद्ध की मूर्ति तोड़ दी
पर क्या हिन्दुओ ने ऐसा किया ?
नहीं
आज बोद्ध, जैन और इस्लामिक तीर्थो पर जो जाते है उनमे अधिक हिन्दू है ।
यानि हिन्दुओ से ज्यादा कट्टर अन्य धर्मो के लोग है ।
हिन्दुओ का कोई मित्र नहीं सिवाय हिन्दुओ के ।
अन्य धर्म के लोग हिन्दुओ के नहीं
क्युकी वेही आज हिन्दुओ पर आरोप लगा रहे है ।
जय माँ भारती
सनातन धर्मरक्षक महान सम्राट – पुष्यमित्र शुंग
ReplyDeleteमोर्य वंश के महान सम्राट चन्द्रगुप्त के पोत्र महान अशोक (?) ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक अगर राजपाठ छोड़कर बौद्ध भिक्षु बनकर धर्म प्रचार में लगता तब वह वास्तव में महान होता । परन्तु अशोक ने एक बौध सम्राट के रूप में लग भाग २० वर्ष तक शासन किया। अहिंसा का पथ अपनाते हुए उसने पूरे शासन तंत्र को बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में लगा दिया। अत्यधिक अहिंसा के प्रसार से भारत की वीर भूमि बौद्ध भिक्षुओ व बौद्ध मठों का गढ़ बन गई थी। उससे भी आगे जब मोर्य वंश का नौवा अन्तिम सम्राट व्रहद्रथ मगध की गद्दी पर बैठा ,तब उस समय तक आज का अफगानिस्तान, पंजाब व लगभग पूरा उत्तरी भारत बौद्ध बन चुका था । जब सिकंदर व सैल्युकस जैसे वीर भारत के वीरों से अपना मान मर्दन करा चुके थे, तब उसके लगभग ९० वर्ष पश्चात् जब भारत से बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक निति के कारण वीर वृत्ति का लगभग ह्रास हो चुका था, ग्रीकों ने सिन्धु नदी को पार करने का साहस दिखा दिया।
सम्राट व्रहद्रथ के शासनकाल में ग्रीक शासक मिनिंदर जिसको बौद्ध साहित्य में मिलिंद कहा गया है ,ने भारत वर्ष पर आक्रमण की योजना बनाई। मिनिंदर ने सबसे पहले बौद्ध धर्म के धर्म गुरुओं से संपर्क साधा,और उनसे कहा कि अगर आप भारत विजय में मेरा साथ दें तो में भारत विजय के पश्चात् में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लूँगा। बौद्ध गुरुओं ने राष्ट्र द्रोह किया तथा भारत पर आक्रमण के लिए एक विदेशी शासक का साथ दिया।
सीमा पर स्थित बौद्ध मठ राष्ट्रद्रोह के अड्डे बन गए। बोद्ध भिक्षुओ का वेश धरकर मिनिंदर के सैनिक मठों में आकर रहने लगे। हजारों मठों में सैनिकों के साथ साथ हथियार भी छुपा दिए गए।
दूसरी तरफ़ सम्राट व्रहद्रथ की सेना का एक वीर सैनिक पुष्यमित्र शुंग अपनी वीरता व साहस के कारण मगध कि सेना का सेनापति बन चुका था । बौद्ध मठों में विदेशी सैनिको का आगमन उसकी नजरों से नही छुपा । पुष्यमित्र ने सम्राट से मठों कि तलाशी की आज्ञा मांगी। परंतु बौद्ध सम्राट वृहद्रथ ने मना कर दिया।किंतु राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत प्रोत शुंग , सम्राट की आज्ञा का उल्लंघन करके बौद्ध मठों की तलाशी लेने पहुँच गया। मठों में स्थित सभी विदेशी सैनिको को पकड़ लिया गया,तथा उनको यमलोक पहुँचा दिया गया,और उनके हथियार कब्जे में कर लिए गए। राष्ट्रद्रोही बौद्धों को भी ग्रिफ्तार कर लिया गया। परन्तु वृहद्रथ को यह बात अच्छी नही लगी।
पुष्यमित्र जब मगध वापस आया तब उस समय सम्राट सैनिक परेड की जाँच कर रहा था। सैनिक परेड के स्थान पर ही सम्राट व पुष्यमित्र शुंग के बीच बौद्ध मठों को लेकर कहासुनी हो गई।सम्राट वृहद्रथ ने पुष्यमित्र पर हमला करना चाहा परंतु पुष्यमित्र ने पलटवार करते हुए सम्राट का वध कर दिया। वैदिक सैनिको ने पुष्यमित्र का साथ दिया तथा पुष्यमित्र को मगध का सम्राट घोषित कर दिया।
सबसे पहले मगध के नए सम्राट पुष्यमित्र ने राज्य प्रबंध को प्रभावी बनाया, तथा एक सुगठित सेना का संगठन किया। पुष्यमित्र ने अपनी सेना के साथ भारत के मध्य तक चढ़ आए मिनिंदर पर आक्रमण कर दिया। भारतीय वीर सेना के सामने ग्रीक सैनिको की एक न चली। मिनिंदर की सेना पीछे हटती चली गई । पुष्यमित्र शुंग ने पिछले सम्राटों की तरह कोई गलती नही की तथा ग्रीक सेना का पीछा करते हुए उसे सिन्धु पार धकेल दिया। इसके पश्चात् ग्रीक कभी भी भारत पर आक्रमण नही कर पाये। सम्राट पुष्य मित्र ने सिकंदर के समय से ही भारत वर्ष को परेशानी में डालने वाले ग्रीको का समूल नाश ही कर दिया। बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण वैदिक सभ्यता का जो ह्रास हुआ,पुन:ऋषिओं के आशीर्वाद से जाग्रत हुआ। डर से बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले पुन: वैदिक धर्म में लौट आए। कुछ बौद्ध ग्रंथों में लिखा है की पुष्यमित्र ने बौद्दों को सताया .किंतु यह पूरा सत्य नही है। सम्राट ने उन राष्ट्रद्रोही बौद्धों को सजा दी ,जो उस समय ग्रीक शासकों का साथ दे रहे थे।
पुष्यमित्र ने जो वैदिक धर्म की पताका फहराई उसी के आधार को सम्राट विक्र्मद्वित्य व आगे चलकर गुप्त साम्रराज्य ने इस धर्म के ज्ञान को पूरे विश्व में फैलाया।
is it any refrence of above story R.S.S ke pille ye purani tarkib aba nahi chalengi ek juth 100 bar bolo 101 pe log sach man lenge
Deleteइन साहब की कहानी तो नकली लग रही है पर मेने तो रिसर्च करके ही लिखा है| रिफरेन्स भी दे चूका हु|
DeleteRamayana ki proof srilanka tak hai.aur ye adhuri kahani usse alag hai.
DeleteSikander or selucuse niketer k baad sara rajya mourya daynti m aa gaya. Tb hindu samrajya syria tk fela tha.1000 saal tk bharat pe koi aakarman nhi huya. Hindu or yawan think se budh thinker bane. Es 1000 saal m budh dharam bahut fela or hindu dharam ki kirya kalapo pe bhi budh think tek aa gaya tha. Hindu dharam ki yogita kaam hone legi. Tb arab jagat m hindu dharam ki anubuti ki kami ne budh dharam ka vinash kiya or hindu dharam,hindustan ki khoj m nikal pre.lekin arab side m hindu dharam ki senirty bahut kaam thi khatam ho gayi waha islam majboot ho gaya.bharat m hindu dharam ki senirty bahut adhik thi budh dharam ko mante jarur the pr intert k tor pe. Esliye bharat m islam ko sangrash krna pra. Jo islam ko jeet mile sorf budh dharam ki meharbani se.fir charichtion aane se hindu or islam m sangrash hua hindu sakti sali hoke upper aaya charichtion or islam ko down kiya or hindu se hindustan. Charichtion chhor k chale gaye.chhor gaye apna think matter.islam ko titer biter hona pra or dhire dhire hindustan se active k karan khatam ho raha h tezi se. Hindu active ho gaya h.
Deletejaise mene fb par kaha tha ki is baat ka koi adhar nahi
ReplyDeletejaise mene fb par kaha tha ki is baat ka koi adhar nahi
ReplyDeletewaise jain log bhi kaunse dudh ke dhule the.....similar to buddhist they too were master in black magics...aur un logo ne to sabse aage ke kadam rakh die ki Ramchandraji bhi jain sadhu ho gaye aur rakshaso ka wadh karne ke karan lakshman saatve narak me hai aur balram bhi jain sadhu ban gaye aur krishna rakshso ka vadh karne ke karan saatve narak me hi hai...aur dusro ki biwio ka sang kia nahi to wo bhi jain tirthankar hote...etc.....dono hi pakhand aur kalpit dharm hai....ekdam kalpanik dharm
ReplyDeleteYou are getting wrong to about both buddist and jain peoples
Deletejaino ne tera kya bigada h jain dharm me ye bhi to kaha gaya h ki shrikrisnn mahan 63 shakala purusho me se ek the aur aage jakar shrikrisnn agle tirthankaro me phle tirthankar banenge
DeleteAur rahi bat jain dharm ki to yagurved me bhi jain dharm k bare me likha h ab yjurved to kalpanik nahi ho sakta h na aur rahi baat baudhh ki to mujhe knowledge nahi h
Abey jain dharm ke baare mein kya galat likha hai batana???pura Blog to padh lo
Deleteबाबूचंद आईसीयू में भर्ती था और
ReplyDeleteअपनी आखिरी सांसें गिन रहा था।
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अंतिम समय में वह गीता पाठ
सुनना चाहता था, जिसके लिए एक पंडित को बुलाया गया।
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पंडित ने जैसे ही पलंग के पास खड़े होकर पाठ करना शुरू किया, बाबूचंद की तबीयत और बिगड़ने लगी।
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वह हांफ रहा था और कुछ कहना चाह रहा था, लेकिन बोल नहीं पा रहा था।
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उसने कागज-पेन की तरफ इशारा किया तो उसे एक कागज-पेन दे दिया गया।
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बाबूचंद ने कागज पर एक नोट लिखा पंडित को दिया और गुजर गया।
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पंडित को लगा कि यह नोट पढ़ने का सही समय नहीं है, इसलिए उसने कागज अपनी जेब में रख लिया।
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बाबूचंद का क्रियाकर्म कर दिया गया और उसके बाद शोकसभा आयोजित की गई।
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शोकसभा में पंडित को बोलने
का मौका दिया गया तो वह बोला, ‘बाबूचंद बेहद नेक इंसान थे।
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जब वे अपनी आखिरी सांसें ले रहे थे, तब मैं उनके साथ ही था और उन्होंने अपने आखिरी शब्द मुझे लिखकर दिए थे।
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उनकी इच्छा अनुसार आज सबके सामने मै वो नोट पेश कर रहा हु।
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पंडित ने वो नोट एक व्यक्ति को दिया और कहा तेज़ आवाज़ से पढकर सबको सुनाइए।
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उस व्यक्ति ने नोट लिया और तेज़ आवाज़ में पढ़कर सुनाया।
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उन्होंने लिखा, ‘अरे पंडित. तू मेरे
ऑक्सीजन पाइप पर खड़ा है हट जा वरना मैं मर जाऊँगा ।
अब बताइए इसका जिम्मेदार कौन है।अंधविश्वास के चक्कर में बाबूचंद की जान चली गई ।।
अतः अंधविश्वास त्यागो बौद्ध धर्म अपनाओ ।
बौद्धिष्ट = बुद्धि से भरा हुआ
ये धर्म रूढ़िवादियो और अंधविश्वास से हटकर नये विचारों एवं सदबुद्धि का बोध कराता है ।।
बाबूचंद आईसीयू में भर्ती था और
Deleteअपनी आखिरी सांसें गिन रहा था।
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अंतिम समय में वह धम पद का पाठ
सुनना चाहता था, जिसके लिए एक भंते को बुलाया गया।
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भंते ने जैसे ही पलंग के पास खड़े होकर पाठ करना शुरू किया, बाबूचंद की तबीयत और बिगड़ने लगी।
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वह हांफ रहा था और कुछ कहना चाह रहा था, लेकिन बोल नहीं पा रहा था।
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उसने कागज-पेन की तरफ इशारा किया तो उसे एक कागज-पेन दे दिया गया।
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बाबूचंद ने कागज पर एक नोट लिखा भंते को दिया और गुजर गया।
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भंते को लगा कि यह नोट पढ़ने का सही समय नहीं है, इसलिए उसने कागज अपनी जेब में रख लिया।
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बाबूचंद का क्रियाकर्म कर दिया गया और उसके बाद शोकसभा आयोजित की गई।
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शोकसभा में भंते को बोलने
का मौका दिया गया तो वह बोला, ‘बाबूचंद बेहद नेक इंसान थे।
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जब वे अपनी आखिरी सांसें ले रहे थे, तब मैं उनके साथ ही था और उन्होंने अपने आखिरी शब्द मुझे लिखकर दिए थे।
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उनकी इच्छा अनुसार आज सबके सामने मै वो नोट पेश कर रहा हु।
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भंते ने वो नोट एक व्यक्ति को दिया और कहा तेज़ आवाज़ से पढकर सबको सुनाइए।
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उस व्यक्ति ने नोट लिया और तेज़ आवाज़ में पढ़कर सुनाया।
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उन्होंने लिखा, ‘अरे भांटे. तू मेरे
ऑक्सीजन पाइप पर खड़ा है हट जा वरना मैं मर जाऊँगा ।
अब बताइए इसका जिम्मेदार कौन है।अंधविश्वास के चक्कर में बाबूचंद की जान चली गई ।।
अतः अंधविश्वास त्यागो बेदो की और पुनह लौटो ।
ये सनातन है जो विश्व के आरंभ से था और अंत तक रहेगा। नजाने कितने मत, मजहब, परमपराएं आए और चले गए लेकिन इसका कुछ ना बिगाड़ पाए। इसीलिए सिर्फ यही धर्म है। बाकि सब तो मत, मजहब, परंपरा है।
वैदिक धर्म रूढ़िवादियो और अंधविश्वास से हटकर नये विचारों एवं सदबुद्धि का ज्ञान देता है ।
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ReplyDeleteBilkul pravin ji yahi bharat ka sachha itihas hai
ReplyDeleteBilkul pravin ji yahi bharat ka sachha itihas hai
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ReplyDelete*पुष्यमित्र शुंग और बौद्ध धर्म का पतन!❗*
��
सम्राट् अशोक महान् की मृत्यु के उपरान्त मौर्य साम्राज्य विघटन और विनाश के गर्त्त में चला गया।
*हर्षचरित तथा पुराणों* के अनुसार बौद्ध सम्राट व्रहद्रथ मौर्यवंश का अन्तिम शासक था। हर्षचरित तथा पुराणों के अनुसार वृहद्रथ के सेवापूर्ति पुष्यमित्र ने सैन्य निरीक्षण करते समय सेना के सामने ही वृहद्रथ की हत्या कर दी और शुंग राज वंश की स्थापना की। इस प्रकार पुष्यमित्र शुंग, शुंग राजवंश का संस्थापक था। उसका सिंहासनारोहण 184 ई.पू. माना जाता है। इसके बाद ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी साकेत को बनाया पुष्यमित्र शुंग ने इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। अयोध्या अर्थात-बिना युद्ध के बनायीं गयी राजधानी*...
पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था, उसने ब्राह्मण धर्म के पुनरुत्थान के लिए अनेक कार्य किए, इसमें कोई सन्देह नहीं। उसके द्वारा किए गए अश्वमेघ यज्ञ इस बात का सबल प्रमाण है कि पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण धर्म का एक निष्ठावान अनुयायी था। उधर बौद्ध धर्म की परम्पराओं और साहित्य में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म का घोर विरोधी बताया गया है। तिब्बती इतिहास लामा तारानाथ तथा बौद्ध ग्रन्थ *दिव्यावदान* में पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का प्रबल शत्रु कहा गया है। इनके अनुसार पुष्यमित्र ने अनेक स्तूपों को नष्ट कराया और भिक्षुओं की हत्या करा दी।पुष्यमित्र शुंग को मगध में ब्राह्मण साम्राज्य स्थापित करने एवं ब्राह्मण धर्म के पुनरुद्धार का श्रेय दिया जाता है। इसने अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान को पुनः आरम्भ करवाया। *इसी के शासनकाल में राजकवि वाल्मीकि ने "रामायण", पतंजलि से पाणिनि कृत अष्टाध्यायी पर महाभाष्य लिखा तथा मनु ने मनुस्मृति लिखी।* बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म का विरोधी बताया गया है। पुष्यमित्र शुंग बौद्ध विरोधी था या नहीं इस बात को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। जैसे-विंसेंट, स्मिथ, N. N. घोष, मजूमदार आदि विद्वान पुष्यमित्र को बौद्ध धर्म का प्रबल विरोधी मानते हैं। इनके अनुसार पुष्यमित्र शुंग एक विशाल सेना लेकर स्तूपों को नष्ट करता हुआ, विहारों को जलाता हुआ तथा भिक्षुओं को मौत के घाट उतारता हुआ साकल पहुंचा। इसने अशोक द्वारा बनवाये गये 84 हजार स्तूपों को नष्ट कर दिया।
*दिव्यादान* में कहा गया है कि पुष्यमित्र ने साकल (स्यालकोट) जाकर घोषणा की- जो व्यक्ति एक श्रमण का सिर काटकार लायेगा उसे मैं सौ दीनारें दूंगा
*श्रमण शिरो दास्यति तस्याहं दीनार शत क्षस्यामि।*
इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम हुआ। राजधानी में बौद्ध भिक्षुओ के सर आने लगे । इसके बाद कुछ चालक व्यक्ति अपने लाये सर को चुरा लेते थे और उसी सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राए ले लेते थे। राजा को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे है तो राजा ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और राजा, बौद्ध भिक्षु का सर देखकर उस पत्थर पर मरवाकर उसका चेहरा बिगाड़ देता था । इसके बाद बौद्ध भिक्षु के सर को घाघरा नदी में फेंकवा दता था। *घाघरा नदी को केवल अयोध्या में "सरयू" कहा जाता है* राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओ के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से युक्त नदी का नाम सरयुक्त अर्थात वर्तमान में अपभ्रंश *"सरयू"* हो गया*।
���� *इसी "सरयू" नदी के तट पर पुष्यमित्र शुंग के राजकवि वाल्मीकि ने "रामायण" लिखी थी। जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और "रावण" के रूप में मौर्य सम्राटों का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था। इतना ही नहीं, रामायण, महाभारत, स्मृतियां आदि बहुत से ग्रन्थों की रचना भी पुष्यमित्र शुंग की इसी अयोध्या में "सरयू" नदी के किनारे हुई*।
लामा तारानाथ ने भी लिखा है कि पुष्यमित्र धार्मिक मामलों में बड़ा असहिष्णु था। उसने बौद्धों पर भाँति-भाँति के अत्याचार किए, उनके *मठों और संघाराम को जलवा दिया।* इन्हीं आधारों पर महामहोपाध्याय यू हर प्रसाद शास्त्री ने यह निष्कर्ष निकाला कि पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों का उत्पीड़न किया। प्रो. एन.एन. घोष ने भी पं. हर प्रसाद शास्त्री के विचारों से सहमति जताई है।
यह कहानी बिल्कुल सही है जिस बुद्ध ने भगवान को ही नकार दिया हो तो बुध्द को क्यों विष्णु का अवतार बताते हैं अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं को पढ लेना,
Deleteये जो कहानी लिखा गया है इसको सेम उल्टा करने पर आज ब्राह्मणों का चरित्र नजर आ गया अभी फिलहाल एसा ही हो रहा है
ReplyDeleteइस्लामियों के द्वारा बनाया गया बेवकूफ बौद्ध। जबकि बुद्ध को रामावतार कहा है ब्राह्मणों ने।
DeleteTotally wrong
ReplyDeleteKaun si Kitab Padh Li tune Jab Samrat Ne Hathiyar Chhoda tab Kahin jakar unhone baudh ko apnaya hai ismein yah prashn hi Nahin uthata Ki Talwar chhodane ke bad unhone hinsa ki
ReplyDeleteYe aapne kaha padh liya ki jain ne baudhh ki murti ko lat markar giraya hai hindu dharm ki tarif kariye par anya dharmo ki ninda mat kariye aur ek prashn ka uttar dijiye ki ayodhya ki khudai me jain aur baudhh mandir k jo avses mile h bo kya h uspar bhi vadh dijiye koi kahani
ReplyDeleteBharat k jitne bade bhag par itihas me Chandragupta maurya ashok ne sasan kiya utna to koi bhi raja samrajya vistar nahi kar paye to bo kamjor kis base par ho gye
ReplyDelete