अजीब बात है मित्रो की हमें सिखाया जाता है की भारतीयों ने शवो को जलाना 1600 ईसापूर्व के करीब शुरू किया ,तो उससे पूर्व लोग क्या करते थे शवो के साथ ??
इस सवाल का जवाब शायद ही मिलेगा ।
सिंधु सरस्वती सभ्यता के लोग अपने शवो के साथ क्या करते थे ???
इस प्रश्न का जवाब केवल कुछ ही लोग देते है और उनकी राय है की सिंधु सरस्वती के लोग अपने शव दफनाते थे ।
मैंने इसपर शोध की और पाया की हड़प्पा नगर में 30 हज़ार लोग रहते थे और वहा केवल 100 ही कब्र मिले है ,हड़प्पा में लोग लगभग 800 वर्षो तक रहे यानि कई पीड़िया पर फिर भी केवल 100 ही कब्रे ??
तो हजारो अन्य शवो का क्या हुआ ??
इसका उत्तर कुछ समझदार व्यक्ति देते है की सिंधु सरस्वती के लोग अपने शवो को जलाते थे ,इसका सबूत यह है की लोथल में शवो को जलाने के सबूत है ।
कुछ विद्वान कहते है की भारत ,पाकिस्तान और अफगान में कई कब्रिस्तान मिले है जो सिंधु सरस्वती सभ्यता से ताल्लुक रखते है ।
हाल ही में उत्तरप्रदेश में मेरठ और बागपत जिले में कई कब्रे मिली है पर वे उत्तर हड़प्पा काल (Late Harappan Period) के है ,कुछ विद्वान मानते थे की हड़प्पा के लोग दफनाते थे बजाए जलाने ,वे असल में शवो को नगरो के पास नहीं दफनाते थे बल्कि दूर कब्रिस्तानो में दफनाते थे और बागपत में मिले कब्र असल में कब्रिस्तान थे सिंधु सरस्वती सभ्यता के ।
पर एक सवाल है जो हमेशा उठता है की सिंधु सरस्वती सभ्यता में 50 लाख तक लोग रहते थे पर इन 90 सालो में जबसे हड़प्पा की खोज हुई है तबसे काफी कम कब्र मिले है जन संख्या के अनुपात में ।
हाल ही में मोहनजोदड़ो में एक शोध से पता चला है की मोहनजोदड़ो में भी 100 के आस पास कब्र मिले है और अधिकतर शव मोहनजोदड़ो के मूल लोगो के नहीं वे आस पास के नगर ,उत्तर पाकिस्तान और ईरान आदि देशो के व्यापारियों के है ,मोहनजोदड़ो में कई कब्रों में विदेशि व्यापारियों के साथ मोहनजोदड़ो की मूल औरतों के शव मिले है जो उन व्यापारियों की पत्नीया होंगी ।
इससे साफ़ होता है की केवल 10% ही हड़प्पा के लोग खुदके शव दफनाते जो विदेशी होते और वही के मूल लोग जिन्होंने जलाने के बजाए दफ़न होना पसंद किया हो ।
कुछ विद्वान मानते है की वे शव अमीरों के होंगे ,आम आदमी अपने शव जालाते होंगे ।
अंग्रेजो द्वारा वेदों के अनुवाद से हमें पता चलता है की वेदों में दफ़नाने और शव जलाने का जीकर है ।
इससे यह पता चलता है की सिंधु सरस्वती के लोग हिन्दू थे ।
साथ ही कई कब्रे हिन्दू परंपरा अनुसार है जो उन्हें पूरी तरह से हिन्दू साबित करती है ।
लोथल में शव जलाने के सबूत बताते है की शवो को हिन्दू परंपरा अनुसार जलाया जाता था ।
बल्थल जो आहार बसन संस्कृति (Ahar Basan Culture) का भाग था वहा 2000 ईसापूर्व पुराना एक शव मिला पद्मासन में जो समाधी का सबूत है (तस्वीर देखे)
समाधी भी हिन्दू होने का सबूत है ।
तो हमें यह पता चलता है की 90% सिंधु सरस्वती सभ्यता के लोग खुदके शव जलाते वो भी हिन्दू परंपरा अनुसार ।
जिन लोगो के शव मिले है उनमे अधिकतर विदेशी व्यापारी थे ।
भारत में शव जलाने की परंपरा 7000 ईसापूर्व से शुरू होती है ।
जय माँ भारती
भाई जी, भारत में साधु को कभी कभी दफनाया जाता है । कई संत तो जिन्दा समाधी ले लेते थे । आज समाधी लेना आत्म हत्या का गुनाह बन गया है । आखरी समाधी १८९४ में गंगा सती और उन के पतिने ली थी । गुजरात में गंगा सति को बच्चा बच्चा जानता है । राजस्थान में रामदेव पिर, कच्छ में जेसल तोरल, और मिराबाई भी जिन्दा समा गई थी ऐसी बात सुनी है । तो दफनाना या जलाना कोइ बडा इश्यु नही है । और आफ्रिका के पिरामिड वो भी हिन्दु ही थे । भले थोडे अलग थे पर मूल मुर्ति पूजक हिन्दु थे । "पॅगन" नाम नफरत के कारण इसाई और यहुदियों ने दिये थे ।
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