यु तो यह पोस्ट मैं दिवाली में करने वाला था पर तब समय नहीं मिला और अब दुबारा दिवाली का इंतज़ार नहीं कर सकता ।
दिवाली को गुप्त काल से जोड़ा जाता था पर कुछ सबूत इशारा करते है की दिवाली सिंधु सरस्वती सभ्यता के लोग भी मनाते थे ।
हाल ही के वर्षो में पुरातत्वविदो को कई दीये प्राप्त हुए है जिनकी खास बात यह है की ये स्त्री की मूर्ति है जिनके हाथ कटोरे के आकार के है जिसमे तेल जाता और यह दीपक की तरह इस्तेमाल होता ।
यह खास मुर्तिया घरो के बहार लगाये जाते जिससे प्रतीत होता की ये मुर्तिया हाथों में दीप लिए हमारा स्वागत कर रही हो ।
पुरातत्वविदो को प्राप्त कई दीपक वर्ष में केवल कुछ ही दिनों के लिए जलाये जाते थे जो इशारा करता है की ये दीप दिवाली के पर्व पर जलाये गए थे ।
साथ ही पुरातत्वविदो को रंगोली के भी अवशेष मिले है जो इस बात की पुष्टि करता है की सिंधु सरस्वती सभ्यता के लोग दीपावली मनाते थे ।
दिवाली में सरस्वती माँ की भी पूजा होती है ,यह प्रथा उन लोगो की थी जो सरस्वती के किनारे रहते थे ,इसके अलावा धोलावीरा जो सरस्वती के किनारे था उसके सभा गृह या महल कहे जाने वाले भाग में एक कुवा मिला है जिसमे सीडिया नीचे कुवे के तल तक जाती है,तल में एक खिड़की है ,पुरातत्वविदो के अनुसार उस खिड़की में खास मोके पर दीपक जलाया जाता था ,शायद उस कुवे में किसी प्रकार की पूजा होती हो ।
क्युकी उस कुवे में सरस्वती नदी का पानी आता हो इसीलिए धोलावीरा के लोग उस कुवे में सरस्वती नदी के पानी की पूजा सरस्वती देवी मानकर करते हो ।
दिवाली में दरवाजे के बहार स्वस्तिक बनाया जाता है और सिंधु सरस्वती सभ्यता में स्वस्तिक के काफी चिन्ह मिले है ।
(नंबर 2 तस्वीर में हड़प्पा की मुर्तिया है जीके सर पर दीप है )
जय माँ भारती
बहुत मस्त है भाई
ReplyDeleteहमारा ब्लाग भी देखिएhttp://bharatiyasans.blogspot.in/2014/01/space-jourey-in-acient-time.html?m=1