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Saturday, December 21, 2013

लोकतंत्र की उत्पत्ति (Origins of Democracy )

लोकतंत्र की उत्पत्ति कहा हुई थी ??
इस सवाल का जवाब हमें यूनान बताया गया था पर सच तो यह है की लोकतंत्र भारत में तबसे है जब यूनानी जंगलो में रहते थे ।
कई भारतीय विद्वानों ने कहा की लोकतंत्र की उत्पत्ति भारत में हुई पर इसे हिंदू राष्ट्रवादी सोच कहकर नकार दिया गया ।
अच्छा
यूरोपियन कहते है की कैलेंडर की खोज उन्होंने की ,पहिये की खोज उन्होंने की ,खाने में मसाले का उपयोग भी उन्होंने किया वगेरा वगेरा
वाह रे यूरोपियो
तुम करो तो खोज
और हम करे तो हिंदुत्व की बड़ाई
क्या है की भारत में पुरातात्विक खोज ज्यादा नहीं होती और न ही भारत पुरातत्व से जुड़े कामो में आगे है ,जिस दिन पुरातत्व से जुड़े कामो में भारत आगे बढेगा उस दिन सच सामने आ जायेंगा ।

अब टॉपिक पर आते है
लोकतंत्र राजतंत्र या राजशाही से भी पुराना है ,जब मानव कबीलों में रहते थे तबसे है जबकि राजशाही 5000 ईसापूर्व में शुरू हुआ ।
कबीलों में जो शिकार में माहिर होता उसे ही मुखिया बनाया जाता ,यह एक तरह से लोकतंत्र ही था जिसमे लोग अपने सरदार को चुनते ।

पहले यूनानी लोकतंत्र और भारतीय लोकतंत्र में फरक जान लेते है ।

नी लोकतंत्र
यूनान में लोकतंत्र 500 ईसापूर्व मे शुरू हुआ था और सिकंदर के काल में वहा लोकतंत्र का अंत हुआ।
आज के लोकतंत्र मे नेताओ को चुना जाता है पर प्राचीन यूनान मे चुनाव कुछ खास मुद्दों के लिए होते थे जैसे युद्ध करना चाहिए ?निर्माण कार्य होना चाहिए या नहीं और राज्य चलाने के लिए कुछ खास फैसले होते ।यूनान में सिटीजन और स्लेव यानि गुलाम ऐसे 2 भागो में लोगो को बाटा जाता था ,गुलाम अक्सर दुसरे देश या नगर के होते और सिटीजन के मुकाबले वे अधिक थे ,सिटीजन उसी नगर के मूल लोग होते थे ,यूनान के लोकतंत्र में केवल सिटीजन ही वोट कर सकते ,महिला या गुलाम नहीं यानि 20% लोग ही वोट कर सकते थे ।
यूनान में अरिस्तोतल और सोक्रेत जैसे कई विद्वान हुए जो लोकतंत्र के विरोधी थे और मानते थे की लोकतंत्र भ्रष्ट लोगो के हाथ है ।

भारतीय लोकतंत्र
लोकतंत्र भारत मे नहीं बल्कि पुरे भारतीय उपमहाद्वीप पर एक साथ फला फुला ।
ऋग्वेद में सभा और समिति का जीकर है जिसमे राजा मंत्रियो और विद्वानों से सलाह मशवरा किया करते और फैसले लेते ।
महाभारत में युधिष्ठिर बताते है की संघ या गणराज्य की शक्ति होती है उसके लोगो की एकता ,एक बार एकता टूटी तो गणराज्य का अंत ।
वैशाली के पहले राजा विशाल को भी चुनाव द्वारा चुना गया था ।
पाणिनि ने भी गणराज्यो का जीकर किया है ।
बोद्ध और जैन ग्रंथ गणराज्य का उल्लेख करते है ।
इन सबूतों के आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप में लोकतंत्र 3000 ईसापूर्व पुराना है और अगर पुरातात्विक साबुत देखे तो 700-600 ईसापूर्व जो यूनान से पहले का ही है ।
चाणक्य अर्थशास्त्र में लिखते है की गणराज्य 2 तरह के होते है ,पहला अयुध्य गणराज्य यानि की ऐसा गणराज्य जिसमे केवल क्षत्रिय ही फैसले लेते है ,दूसरा है श्रेणी गणराज्य जिसमे हर कोई भाग ले सकता है ।
यूनानी लोकतंत्र से कई गुना बेहतर था भारतीय लोकतंत्र ।
योधेय गणराज्य में 5000 राजा होते जिन्हें लोग ही चुनते और वे राज्य सँभालते थे ,लिच्छवी गणराज्य जो नेपाल और बिहार में था वह प्राचीन काल का सबसे शक्तिशाली गणराज्य था ,उसमे 7707 राजा थे ।
कहते है की सम्राट अजातशत्रु को लिच्चावियो को हराने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ा ।
अजातशत्रु से युद्ध से पहले लिछावियो ने सभा बुलाई थी ।
कई यूनानी इतिहासकार जो भारत आए थे वे भी गणराज्य और संघ का जीकर करते है ।

यूरोपी विद्वानों के सवाल के जवा

यूरोपियन प्राचीन भारतीय लोकतंत्र में खोट निकालते है की भारतीय लोकतंत्र पूरी तरह से लोकतंत्र नहीं ,जातिवाद के कारण हर एक को चुनाव का हक्क नहीं ।
साथ ही चुनाव आदि का उल्लेख है पर चुनाव से जुड़े लोगो के हक्को का वर्णन नहीं ।
यह कमी तो यूनानी लोकतंत्र की भी है ,क्या वह लोकतंत्र नहीं ??
यूरोपियन कई बात अनदेखी कर रहे है साथ ही जिन ग्रंथो का यूरोपियन उल्लेख कर रहे है जैसे अर्थशास्त्र और मनुस्मृति उनके कुछ भाग बाद में जोड़े गए वो भी तब जब राजतंत्र था ।
पहले बता दू की जातिवाद का प्राचीन भारत के लोकतंत्र से कोई लेना देना नहीं ।
कहते है की शाक्य गणराज्य ने कोलियो पर हमला किया था ,युद्ध से पहले सभा में बात चित हुई थी और बहुमत युद्ध को मिला ,फिर पुरे शाक्य गणराज्य में घोषणा हुई की जितने भी युवक 20 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र वाले है वे युद्ध के लिए तैयार हो जाये ,यानि हर वर्ग या वर्ण के लोगो को युद्ध में भाग लेने के लिए कहा था ।
जब कोशल ने शाक्य गणराज्य पर हमला किया था तब भी शाक्यो ने सभा बुलाई थी ,कोशल ने सीधे कपिलवस्तु पर हमला किया था और तब हर स्त्री पुरुष ने मिलकर कोशल के सेनिको से युद्ध किया था ।
नन्द और चन्द्रगुप्त मौर्य दासीपुत्र थे पर फिर भी उन्होंने राज किया ,तब कहा गया जातिवाद ??
सिंधु नदी किनारे शूद्रक नाम का गणराज्य था जिसे महाभारत का शुद्र राज्य कहा जाता है ,उसने भी सिकंदर से युद्ध किया था ,कहा है जातिवाद ??
अग्रेय गणराज्य ने भी सिकंदर से युद्ध किया था ,कहते है यही अग्रवाल समुदाय की उत्पत्ति हुई थी और अग्रवाल बनिए होते है यानि वैश्य वर्ण से ,यानी उनका भी गणराज्य था ।
इसमें जातिवाद कहा है ??
सम्राट अशोक ने करुवाकी से शादी की थी जो मच्वारे की लड़की थी ,देवी से शादी की जो वैश्य वर्ण से थी ,अशोक ने भी वर्ण या जाती अनुसार विवाह नहीं किया था यानि उस समय जातिवाद नहीं था ।
यूनान में स्त्रियों को वोट देने का हक्क नहीं था पर भारत में था ।कलिंग को भी एक गणराज्य कहा गया है और कलिंग युद्ध के वक़्त कलिंग के लोगो ने पद्मावती को अपनी रानी चुना था ताकि वह नेतृत्व कर सके युद्ध में ,साथ में कलिंग युद्ध में स्त्रीयों ने भी भाग लिया था ।
पद्मावती भी कलिंग के सभा की सदस्य थी और उसे भी वोट देने का हक्क था ।
यूरोपियन इन तथ्यों को क्यों अनदेखा करते है ??

इन सबूतों से पता चलता है की गणराज्यो में जातिवाद नहीं था और महिलाओ को भी समान हक्क था ।

जय माँ भारती

Monday, December 9, 2013

शव जलाना या दफनाना ??( Cremation or Burials ??)

अजीब बात है मित्रो की हमें सिखाया जाता है की भारतीयों ने शवो को जलाना 1600 ईसापूर्व के करीब शुरू  किया  ,तो उससे पूर्व लोग क्या करते थे शवो के साथ ??
इस सवाल का जवाब शायद ही मिलेगा ।
सिंधु सरस्वती सभ्यता के लोग अपने शवो के साथ क्या करते थे ???
इस प्रश्न का जवाब केवल कुछ ही लोग देते है और उनकी राय है की सिंधु सरस्वती के लोग अपने शव दफनाते थे ।
मैंने इसपर शोध की और पाया की हड़प्पा नगर में 30 हज़ार लोग रहते थे और वहा केवल 100 ही कब्र मिले है ,हड़प्पा में लोग लगभग 800 वर्षो तक रहे यानि कई पीड़िया पर फिर भी केवल 100 ही कब्रे ??
तो हजारो अन्य शवो का क्या हुआ ??
इसका उत्तर कुछ समझदार व्यक्ति देते है की सिंधु सरस्वती के लोग अपने शवो को जलाते थे ,इसका सबूत यह है की लोथल में शवो को जलाने के सबूत है ।
कुछ विद्वान कहते है की भारत ,पाकिस्तान और अफगान में कई कब्रिस्तान मिले है जो सिंधु सरस्वती सभ्यता से ताल्लुक रखते है ।
हाल ही में उत्तरप्रदेश में मेरठ और बागपत जिले में कई कब्रे मिली है पर वे उत्तर हड़प्पा काल (Late Harappan Period) के है ,कुछ विद्वान मानते थे की हड़प्पा के लोग दफनाते थे बजाए जलाने ,वे असल में शवो को नगरो के पास नहीं दफनाते थे बल्कि दूर कब्रिस्तानो में दफनाते थे और बागपत में मिले कब्र असल में कब्रिस्तान थे सिंधु सरस्वती सभ्यता के ।
पर एक सवाल है जो हमेशा उठता है की सिंधु सरस्वती सभ्यता में 50 लाख तक लोग रहते थे पर इन 90 सालो में जबसे हड़प्पा की खोज हुई है तबसे काफी कम कब्र मिले है जन संख्या के अनुपात में ।
हाल ही में मोहनजोदड़ो में एक शोध से पता चला है की मोहनजोदड़ो में भी 100 के आस पास कब्र मिले है और अधिकतर शव मोहनजोदड़ो के मूल लोगो के नहीं वे आस पास के नगर ,उत्तर पाकिस्तान और ईरान आदि देशो के व्यापारियों के है ,मोहनजोदड़ो में कई कब्रों में विदेशि व्यापारियों के साथ मोहनजोदड़ो की मूल औरतों के शव मिले है जो उन व्यापारियों की पत्नीया होंगी ।
इससे साफ़ होता है की केवल 10% ही हड़प्पा के लोग खुदके शव दफनाते जो विदेशी होते और वही के मूल लोग जिन्होंने जलाने के बजाए दफ़न होना पसंद किया हो ।
कुछ विद्वान मानते है की वे शव अमीरों के होंगे ,आम आदमी अपने शव जालाते होंगे ।
अंग्रेजो द्वारा वेदों के अनुवाद से हमें पता चलता है की वेदों में दफ़नाने और शव जलाने का जीकर है ।
इससे यह पता चलता है की सिंधु सरस्वती के लोग हिन्दू थे ।
साथ ही कई कब्रे हिन्दू परंपरा अनुसार है जो उन्हें पूरी तरह से हिन्दू साबित करती है ।
लोथल में शव जलाने के सबूत बताते है की शवो को हिन्दू परंपरा अनुसार जलाया जाता था ।
बल्थल जो आहार बसन संस्कृति (Ahar Basan Culture) का भाग था वहा 2000 ईसापूर्व पुराना एक शव मिला पद्मासन में जो समाधी का सबूत है (तस्वीर देखे)
समाधी भी हिन्दू होने का सबूत है ।

तो हमें यह पता चलता है की 90% सिंधु सरस्वती सभ्यता के लोग खुदके शव जलाते वो भी हिन्दू परंपरा अनुसार ।
जिन लोगो के शव मिले है उनमे अधिकतर विदेशी व्यापारी थे ।
भारत में शव जलाने की परंपरा 7000 ईसापूर्व से शुरू होती है ।

जय माँ भारती

Tuesday, November 26, 2013

दोरिया लोग थे द्वारका के लोग

1100 ईसापूर्व दोरिया या दोरिक लोगो ने यवन के उत्तर से आकर यवन में बसे ,उस वक़्त यवन में माईसिनी सभ्यता थी (Mycenaen Civilization ) जिसे दोरिया लोगो ने नष्ट कर दिया और तब यवन का काला युग शुरू हुआ ।
इतिहासकार इस घटना को दोरियन इनवेजन कहते है यानि दोरिया या दोरिक जन समूह का आक्रमण ,प्राचीन यूनानियो ने इसे हेराकुल के लोगो का आगमन या वापसी कहा है ।
दोरिक लोगो के यवन या यूनान में बसने के बाद ही हमें प्राचीन यूनानी भाषा के अवशेष मिलते ।
आखिर कौन थे ये दोरिक या दोरिया लोग ??
दोरिक लोगो को इतिहासकारों हिन्द यूरोपीय भाषा बोलने वाले लोग कहा है जिससे साफ़ है की वे भारत से ताल्लुक रखते है ,साथ में यूनानी भाषा भी हिन्द यूरोपीय है और संस्कृत की बहन भी ,यानि यूनानी भाषा के विकाश के पीछे भारतीयों का हाथ भी हो सकता है और दोरिक भी भारतीय रहे होंगे जो भारत से यूनान बसे ।
1400 ईसापूर्व में द्वारका के लोग द्वारका छोड़ लगे गए ,शायद 300 वर्ष बाद यही लोग यवन में पहोचे होंगे अपने साथ संस्कृत ले जो बाद में आधुनिक यूनानी भाषा बनी ।
दोरिक लोग द्वारका के ही है इस बात की पुष्टि यूनानी खुद करते है ,वे लिखते है की यूनानी देवता ज़ीउस का पुत्र हेराकुल था ,हेराकुल के वंशज राजा बने पर उनकी जमीन छीन ली गई ,बाद में यही लोग वापस यवन आए तब यूनानियो ने इसे हेराकुल के लोगो की वापसी नाम दिया ,अब जैसा बहोत लोग जानते है की हेराकुल असल में संस्कृत शब्द हरे कृष्ण या हरी कुल से आया है और हेराकुल कृष्ण का ही यूनानी नाम है ।
जब सिकंदर पुरु से लड़ रहा था तब यह कहा गया था की पुरु के सेनिको के पास हेराकुल की मूर्ति है यानि कृष्ण की ,मेगास्ठेनेस जो चन्द्रगुप्त मौर्य के युग में आया था वह लिखता है की भारत में मथुरा नाम के नगर में हेराकुल की पूजा होती है और मथुरा तो कृष्ण की ही नगरी है ।
यूनानी जानते थे की भारत के कृष्ण ही असल में हेराकुल है इसीलिए जब दोरिक लोग यवन में बसे तो यूनानियो ने उन्हें हेराकुल के लोग कहा यानि कृष्ण की नगरी के ।
साथ में दोरिक और द्वारका मिलता जुलता है जो उनके द्वारका के होने की पुष्टि करता है ।
कई इतिहासकार कहते है दोरिक लोग उत्तर यवन के लोग थे और विदेशी नहीं है पर माईसिन सभ्यता अपने पडोसी देश मिस्र,तुर्की आदि का वर्णन करता है पर दोरिक लोगो का नहीं जो पुष्टि करता है की वे भारत के थे ।
आज यूनान में कई लोग अपने भारतीय पूर्वजो की तरह सावले है ,आप फारस की सिकंदर की तस्वीर देख सकते है जिसे मेने डाला है ,उसमे सिकंदर सावला है ,अधिक जानकारी के लिए Black Athena सर्च करे ।
साथ ही कृष्ण ने कई फनो वाले कालिया नाग को मारा था ठीक उसी तरह हेराकुल ने हीड्रा नाम के कैल फनो वाले नाग को मारा था ।
जय माँ भारती

सिंधु घाटी में ऋग्वेद


सिन्धुवासी भी वेद पढते थे वे भी आर्य थे
उसका प्रमाण ये सील है
मित्रो उपर्युक्त जो चित्र है वो हडप्पा संस्कृति से
प्राप्त एक मुद्रा(सील) का फोटोस्टेट प्रतिकृति है।ये
सील आज सील नं 387 ओर प्लेट नंCXII के नाम से
सुरक्षित है,,
इस सील मे एक वृक्ष पर दो पक्षी दिखाई दे रहे
है,जिनमे एक फल खा रहा है,जबकि दूसरा केवल देख
रहा है।
यदि हम ऋग्वेद देखे तो उसमे एक मंत्र इस प्रकार
है-
द्वा सुपर्णा सुयजा सखाया समानं वृक्ष
परि षस्वजाते।
तयोरन्य: पिप्पलं स्वाद्वत्तयनश्न
न्नन्यो अभिचाकशीति॥
-ऋग्वेद 1/164/20
इस मंत्र का भाव यह है कि एक संसाररूपी वृक्ष पर
दो लगभग एक जैसे पक्षी बैठे है।उनमे एक
उसका भोग कर रहा है,जबकि दूसरा बिना उसे भोगे
उसका निरीक्षण कर रहा है।
उस चित्र ओर इस मंत्र मे इस तरह की समानता से
आप लोगो को क्या लगता है???
क्युकि हमारे कई पुराने मंदिरो पर या कृष्ण जी के
मन्दिरो पर रामायण ओर कृष्ण जी की कुछ लीलाए
चित्र रूप मे देखी होगी,जिनका आधार रामायण ओर
महाभारत जैसे ग्रंथ है।
तो क्या ये चित्र बनाने वाला व्यक्ति या बन वाने
वाले ने ऋग्वेद के इस मंत्र को चित्र रूप
दिया हो ताकि लोगो को इस मंत्र को समझा सके ।
क्या हडप्पा वासी वेद पढते थे।ऋग्वेद मे स्वस्तिक
शब्द है ओर उसका चित्र रूप जो हम आज शुभ
कार्यो मे बनाते है वो हडप्पा सभ्यता से प्राप्त हुआ
है।
तो क्या हडप्पा वासी भी वेद पढते थे।वे
वेदो को मानते थे।

Tuesday, September 24, 2013

अशोक्वंदाना का भंडाफोड़ (Ashokavandana Exposed)

आप सोच रहे होंगे की मैं अशोकवंदन का भंडाफोड़ क्यों कर रहा हु ?
जवाब सरल है
हिन्दुओ ने कभी दुसरे धर्मो को नुकसान नहीं पहोचाया पर अशोकवंदन में जीकर मिलता है की पुष्यमित्र शुंग ने बोद्ध भिक्षुओ की हत्या की
यह केवल एक ही घटना है
पर इसी एक घटना से ही हिन्दू विरोधियो ने कई कहानिया लिख दी
इससे हिंदुत्व बदनाम हो रहा
श्री जमनादास जिन्होंने Tirupati Balaji was a Buddhist Shrine नाम की हिन्दू विरोधी किताब लिखी है
इन्होने ही एक लेख में लिखा है की होली असल में पुष्यमित्र शुंग ने शुरू की थी ताकि बोद्ध भिक्षुओ को जलाया जा सके और आज वह एक त्यौहार है
अब जमनादास जी तहरे अम्बेडकरवादी
उनका यह लिखना लाजमी है ।
अब बात करते है अशोकवंदन की
अशोकवंदन 2 इसवी में मथुरा में लिखी गई थी
यह दिव्यवंदन का एक भाग है
अशोकवंदन सम्राट अशोक की जीवनी कह सकते है ।
हिन्दू विरोधी हमेशा हिन्दू ग्रंथो को नकारते है यह कहकर की हिन्दू ग्रन्थ काल्पनिक है ,इसमें जादू वगेरा है
तो अशोकवंदन कौनसी सत्यकथा है
इसमें हजारो चमत्कार है
सिद्धार्थ गौतम भविष्यवाणी करते है की जय नाम का बालक अगले जन्म में सम्राट अशोक बनेगा ।
जादू से ऑंखें ठीक करना
जादू से असली नर मुंडी बनाना
और वगेरा वगेरा
अब हिन्दू विरोधी इस पुस्तक को कैसे ले सकते है साबुत के तौर पर ?
साथ ही इस पुस्तक का मुख्य पात्र ही हत्यारा है
यानि अशोक मौर्य
अशोकवंदन के अनुसार एक ऐसी घटना घटी पाटलिपुत्र में जिससे अशोक को खूब गुस्सा आया ।
हुआ यु की एक जैन धर्मी ने एक चित्र बनाया जिसमे गौतम बुद्ध वर्धमान महावीर के पैर छुकर आशीर्वाद ले रहे है
क्युकी जैन मानते थे की गौतम बुद्ध भी जैन अनुयायी है
गौतम बुद्ध के गुरु थे उदक रामपुत्र, जिन्होंने े गौतम बुद्ध के राज्य छोड़ने के बाद उन्हें ध्यान,योग आदि सिखाया ।
अब कुछ बोद्ध भिक्षुओ ने इसकी शिकायत की अशोक से
अशोक ने उसी दिन पाटलिपुत्र  में उस चित्रकार और  अन्य 18 हज़ार जैन अनुयायियों को जला दिया ।
इसके बाद यह ऐलान किया की जो व्यक्ति किसी जैन भिक्षु का सर लेकर आएंगा उसे मुहरे मिलेंगी ।
क्या तभी कोई था नहीं अशोक को रोकने वाला ?
इससे पता चलता है की बोद्ध भिक्षु भी कट्टर धर्मवादी है
साथ में वे गौतम बुद्ध के सिधांत भी भूल गए
इस नरसंहार के बाद अशोक को धर्मरक्षक कहा गया बोद्ध भिक्षुओ द्वारा ।
तो क्यों केवल लोगो को पुष्यमित्र ही नजर आता है जबकि उससे बड़ा हत्यारा अशोक था ।
अब आते पुष्यमित्र की कहानी पर
केवल थोड़ा ही लिखा गया है पुष्यमित्र पर
"पुष्यमित्र अपनी सेना के साथ आया और उसने पाटलिपुत्र के स्तूप तबाह कर दिए ।"
"पुष्यमित्र ने सगल (सालकोत) में हजारो स्तूप तोड़े ,हजारो भिक्षुओ को जला कर मार दाला ।"
"पुष्यमित्र ने ऐलान किया की जो भी व्यक्ति उसे बोद्ध भिक्षु का सर लाकर देगा उसे मुहर मिलेगी ,यह सुन एक अरहंत(एक सिद्ध बोद्ध भिक्षु) ने अपनी शक्तियों से असली सर बनाकर लोगो को दिए ताकि बोद्ध भिक्षुओ की हत्या न हो ।"

अब बोद्ध धर्मियो को बोद्ध भिक्षुओ की हत्या नरसंहार लग रहा है पर जैन अनुयायियों की हत्या पर अशोक को धर्मरक्षक कहा जा रहा है ।
और क्या अशोक के वक़्त कोई अरहंत नहीं था जो नकली सर बनाकर हजारो जैन अनुयायियों की जान बचा सकता था
पर आपने एक बात देखि ?
पुष्यमित्र की कहानी असल में अशोक की कहानी की कॉपी है
जैसे अशोक ने जैन धर्मियो को जलाया और उनके सर की मांग की उसी कदर पुष्यमित्र ने भी बोद्ध भिक्षुओ को जलाया और सरो की मांग की थी
अब कॉपी है तो यह बात झूठ ही होगी
साथ में केवल अशोकवंदन में ही लिखा है की पुष्यमित्र मौर्य वंश का राजा था और उसका साम्राज्य सगल (सालकोत) तक था
पर अन्य ग्रंथो के अनुसार पुष्यमित्र के जीते जी उसका साम्राज्य जालंधर तक था
साथ में पुष्यमित्र के सिक्के केवल जालंधर तक ही मिले है
और तो और सगल(सालकोत) कोई ऐरी गैरी जगह नहीं थी
वह हिन्द-यूनानियो (Indo-Greeks) की राजधानी थी
साथ में हिन्द यूनानियो से पुष्यमित्र ने लड़ाई की ही नहीं
केवल उसके पुत्र अग्निमित्र और पोते वसुमित्र ने लड़ाई की हिन्द यूनानियो से और उन्हें खदेड़ दिया वह भी पुष्यमित्र की मृत्यु के बाद
यानि की जब पुष्यमित्र जीवित था तो वह सगल गया ही नहीं और नाही वह उसके साम्राज्य का हिस्सा था
यह तो अग्निमित्र था जिसने सगल जीता
तो क्या अशोकवंदन के लेखक ने गलती से अग्निमित्र के बजाए पुष्यमित्र का नाम लिख दिया ?
यदि ऐसा है तब तो यह पुस्तक ही गलत है
अशोकवंदन पुष्यमित्र के 200 वर्ष बाद लिखी गई
और लेखक को यह भी नहीं पता की सगल पुष्यमित्र के राज्य में नहीं था
साफ़ है
अशोकवंदन एक उपन्यास की तरह है
इसमें केवल काल्पनिक कहानिया है
अशोक का बोद्ध धर्म के लिए प्रेम दिखाने के लिए उसके हाथो हजारो जैन धर्मियो को मरवा दिया गया
अरहंत की शक्ति दिखाने के लिए पुष्यमित्र का नाम ख़राब कर दिया लेखक ने
बरुच और सांची के स्तूपो पर शुंग वंश के कई राजाओ का नाम है और उन्हें देवप्रिय आदि नाम दिए गए है क्युकी शुंग वंश राजाओ ने इन स्तूपो की मरम्मत कराइ थी
इसमें पुष्यमित्र का भी नाम है
और शुंग वंश की बोद्ध धर्म से कोई दुश्मनी नहीं थी ।
यदि पुष्यमित्र ने भिक्षुओ की हत्या की तो इसके पीछे वजह क्या थी ?
अशोकवंदन में पुष्यमित्र के इस कार्य की वजह नहीं दी गई है
और यदि वह बोद्ध धर्म से घृणा करता था तो स्तूपो पर उसका नाम क्यों है ?
हिन्दू धर्म ने हमेशा अन्य धर्मो का सम्मान किया है पर अन्य धर्म ऐसे नहीं है
बोद्ध ग्रन्थ महावंश में वित्तागामिनी जो लंका का राजा था उसके द्वारा एक जैन मठ को तबाह करने का जीकर है
जैन कथाओ में भी जीकर है बोद्ध भिक्षुओ को बहस में हराने के बाद जैन धर्मियो ने बुद्ध की प्रतिमा को लात मारकर गीरा दिया
हाल ही में श्री लंका में बोद्ध धर्मियो ने एक हिन्दू मंदिर तोड़ दिया ।
हिन्दुओ के किलाफ़ एक ही ऐसा आरोप है जिसे मैंने गलत साबित कर दिया है
आज मुसलमानों ने अफगान में और उत्तरप्रदेश में बुद्ध की मूर्ति तोड़ दी
पर क्या हिन्दुओ ने ऐसा किया ?
नहीं
आज बोद्ध, जैन और इस्लामिक तीर्थो पर जो जाते है उनमे अधिक हिन्दू है ।
यानि हिन्दुओ से ज्यादा कट्टर अन्य धर्मो के लोग है ।
हिन्दुओ का कोई मित्र नहीं सिवाय हिन्दुओ के ।
अन्य धर्म के लोग हिन्दुओ के नहीं
क्युकी वेही आज हिन्दुओ पर आरोप लगा रहे है ।

जय माँ भारती

Monday, August 5, 2013

सिन्धु सरस्वती सभ्यता, एक हिन्दू सभ्यता (InduSaraswathi civilization ,a Hindu Civilization)

एक योगी जिसके 3-4 सर है ,यह असल में भगवान शिव है |


सिन्धु घाटी सभ्यता और मेवाड़ के एकलिंगनाथ जी 
आप देख सकते है की सिन्धु घाटी सभ्यता  के शिव और मेवाड़ के एकलिंगनाथ यानि भगवान शिव में कितनी समानता है ,एक समय मेवाड़ में भी सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग रहते थे और आज भी वह के लोग 4 सर वाले शिव की पूजा करते है 



भगवान् शिव प्रजापति दक्ष को बकरे का सर लगते और जीवन दान देते हुए 
इस चित्र में आप देखेंगे की लाल घेरे के बिच में एक मानव का सर है ,कुछ इसे बलि देते हुए दर्शाते है पर मेरे अनुसार वह सर असल में प्रजापति दक्ष का है ,भगवान् शिव से देवताओ ने प्राथना की और प्रजाति को जीवित करने हेतु बकरा लाया गया है ताकि उसका सर प्रजापति को लगाया जाए |


ॐ  

यह चित्र असल में घुमा दिया गया है और साफ़ पता चलता है की यह ॐ ही है ,शायद पहले ॐ इसी कदर लिखा जाता |


शिवी नरेश 

आप अगर देखे तो इस मूर्ति में उस व्यक्ति ने एक कपडा बाँध रखा है ,दसराजन युद्ध में इस बात का जीकर है की राजा इस कदर सर पर कपड़ा बांधते जो की सच्चाई का प्रतिक था |
दस्राजन युद्ध की कथा पड़ने हेतु यहाँ क्लिक करे


कृष्ण और वृक्ष से निकलते 2 यक्ष 

आपको वह कहानी तो पता ही होगी की भागवान कृष्ण अनजाने में 2 वृक्ष उखाड़ देते है जिसमे से 2 यक्ष निकलते है ,यह सील वही कहानी बता रहा है ,आप 2 वृक्ष देख सकते है जो उखाड़ गए है (विद्वान् अनुसार ) और उनके बिच एक व्यक्ति नजर आ रहा है जो यक्ष हो सकता है ,दूसरा यक्ष शायद इस सील के दुसरे भाग में हो क्युकी यह सील टुटा हुआ है |





भारत में रथ थे और घोड़े भी ,सच तो यह है की आज जो घोड़े यूरोप और एशिया में है वे 70 साल पहले भारतीय घोड़ो से विकसित हुए है |

गणेश 
नंदी से लड़ते गणेश या नंदी संग युद्ध कला सीखते कार्तिक 


जय  माँ भारती