{{ज्ञानसन्दूक युद्ध
काल = 490 ईसापूर्व।
स्थल = गंगा घाटी और वैशाली।
सेना = दोनों सेना के पास लगभग समान संख्या है सेना की ।शायद बड़ा चड़ाकर पेश किया है ,दोनों सेना के पास 1 लाख के करीब सेना होगी पर फिर भी जैन ग्रंथ में दिए अकड़े देखते है ।
57000 हाथी दोनों सेना के पास
57000 घोड़े दोनों ही सेना के पास
57000 रथ दोनों ही सेना के पास
और 5 लाख 70 हज़ार सेनिक दोनों ही सेना के पास ।
सेना का नेतृत्व :-
मगध राज्य
अजातशत्रु
10 कलाकुमार
वस्सकर
गणसंघ
चेतक
विरुधक
मनुदेव
युद्ध का परिणाम :-
अजातशत्रु की वैशाली,मल्ल ,काशी,कोसल आदि राज्यों पर जीत ।
वैशाली का युद्ध या जैन ग्रंथो में इसे महासिलाकंताका कहा गया है । भारत के इतिहास में यह युद्ध काफी महत्त्व रखता है क्युकी इस युद्ध में अजातशत्रु ने तलवार वाले रथ ,गुलेल और झूलने वाली गदा का उपयोग पहली बार किया था ।इस युद्ध ने मगध की सीमाए दूर दूर तक फैलाई ।
जैन ग्रंथो में इस युद्ध की वजह हल्ला और विहल्ला कुमार को बिम्बिसार के दिए तोफे कहे गए है जो की एक हीरे का हार था और सेचानक नाम का हाथी था ,अजातशत्रु सम्राट बन गया और तब अजातशत्रु ने हल्ला और विहल्ला को वे तोफे उसे देने को कहा पर दोनों राजकुमारों ने मना कर दिया और अपने नाना चेतक के पास गए जो वैशाली के राजा थे ,अजातशत्रु ने राजा चेतक को उन दोनों कुमारो को उसे सोपने को कहा पर चेतक ने मना कर दिया ,इसीलिए यह युद्ध हुआ ।
बोध ग्रंथ अनुसार इस युद्ध का कारन हीरो की खदान पर अधिकार को लेकर था ।
यदि इन दोनों बातो को को सही माने और इन्हें जोड़े तो यह बात सामने आती है की हीरो की खदान अजातशत्रु को चाहिए थी पर क्युकी मगध और वैशाली के पारिवारिक संबंध थे इसीलिए अजातशत्रु कुछ नहीं कर पाया पर जब हल्ला और विहल्ला ने वैशाली में शरण ली तब उसे एक अच्छा मौका मिल गया और फिर युद्ध शुरू हुआ ।
युद्ध :-
अजातशत्रु ने अपने प्रधान मंत्री वस्सकर और अपने सोतेले भाइ कालकुमारो के साथ युद्ध की रणनीति बनाना शुरू की । अजातशत्रु जानता था की वैशाली पर पहले भी हमले हुए है और वैशाली अबतक नहीं हारा इसीलिए उसने काफी बड़ी सेना जमा की ।
मगध इरादा था गंगा घाटी के मैदानों का लाभ उठाना और इसके लिए इस युद्ध में अजातशत्रु ने हाथी,रथ और घोड़े उतारे।
यही निति वैशाली की भी थी ,वैशाली मगध के मुकाबले छोटा था इसीलिए उसने 9 लिच्चावी राजा जिसमे मनुदेव भी थे उन्हें अपने साथ ले लिया,9 मल्ल राजाओ को और काशी -कोशल के नरेश विरुधक को अपने साथ ले लिया,चुकी विरुधक और अजातशत्रु में काशी को लेकर विवाद था इसीलिए विरुधक ने राजा चेतक का साथ दिया ।
सेना का ढाचा आम था ,आगे पैदल सेना ,पीछे घुड़सवार ,उनके पीछे रथ और सबसे पीछे हाथी ।
राजा चेतक धनुर विद्या में उस्ताद था ,उसके बाणों से बचना नामुमकिन था और इसी कारण राजा चेतक को को अजय कहा जाता था पर राजा चेतक जैन बन गए थे और उन्होंने वर्धमान महावीर को वचन दिया था की वे एक दिन में एक ही बाण चलाएंगे ।
युद्ध शुरू हुआ और अजातशत्रु के गुलेल(Catapult) ने आतंक मचा दिया वैशाली संघ के सेनिको में ,पर राजा चेतक ने 10 कालकुमारो में से एक को अपने बाण से मार डाला ।
इसिकादर अगले 9 दिन में एक एक कर कालकुमार मरते गए और मगध कमजोर पड़ गया ।
3 दिन अजातशत्रु ने इंद्र की आराधना की और फिर रथ मुसल नाम का रथ युद्धभूमि पर उतरा ।
उसके पहियों पर तलवार लगी थी और लटकने वाली गदा जो एक बार में कई सेनिको को मार डालती ।
अब बाज़ी अजातशत्रु के हाथ में आ गई थी और राजा चेतक बुरी तरह हार गए।
राजा चेतक अपने बचे सेनिको के साथ वैशाली नगर पहोचे और उसके द्वार बंद कर दिए ,अजातशत्रु ने वैशाली पर आक्रमण किया पर उसकी मजबूत दिवार अभेद्य थी इसीलिए वह पीछे हट गया ।
वस्सकर को एक युक्ति सूजी और उसने कुलावक नाम के जैन भिक्षु के पास एक स्त्री भेजी जिसका नाम मगधिका था ।
कुलावक मगधिका के प्रेम में पड गया और मगधिका ने कुलावक को अजातशत्रु के लिए काम करने के लिए राजी किया ।
वस्सकर ने कुलावक को वैशाली में जाने को कहा और यह अफवाह फ़ैलाने को कहा की वैशाली के लोग जिस चैत्य को पूज्य मानते है वही वैशाली के दुर्गति का कारण है।
कुलावक अपने काम में सफल हुआ और इसीलिए कुछ लोगो ने उस चैत्य को उखाड़ फेका ,पर कई इस बात के विरोध में थे इसी कारण वैशाली के लोगो में आपस में ही झगडा हो गया ।
इस अवसर का लाभ उठा अजातशत्रु ने वैशाली पर हमला किया और विजय प्राप्त की ।
जय माँ भारती
अमन जी आपसे बात करना चाहता हूँ यदि आप अपना इ-मेल मेरे पर पर दें तो बड़ी कृपा होगी
ReplyDeleteअरुण कुमार झा
मेरा e-mail hai - wgmrak@gmail.com, drishtipathindi@gmail.cm
DeleteI am reqested to you use Virudhaka in stead of Virudhak.विरूढाका को विरूधक न लिखें ।
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