चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसापूर्व को पाटलिपुत्र में हुआ था ,वह पहला मौर्य सम्राट था और अखंड भारत पर भी राज करने वाला करने वाला पहला सम्राट था ।
जन्म से ही वह गरीब था ,उसके पिता की मृत्यु उसके जन्म से पहले ही हो गई थी,कुछ लेखो के अनुसार वह अंतिम नंद सम्राट धनानंद का पुत्र था और उसकी माँ का नाम मुरा था ।
हर ग्रंथ में मतभेद है चंद्रगुप्त की उत्पत्ति को लेकर ।
बोद्ध ग्रंथ अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य मोरिया नाम के काबिले से ताल्लुक रखता था जो शाक्यो के रिश्तेदार थे ।
मुरा या तो काबिले के सरदार की लड़की थी या धनानंद की दासी थी ।
10 वर्ष की उम्र में उसकी माँ मुरा की मृत्यु हो गई थी और तब चाणक्य नाम के ब्राह्मण ने अनाथ चंद्रगुप्त को पाला ।
चाणक्य को धनानंद से बदला लेना था और नंद के भ्रष्ट राज को ख़त्म करना था ।
चाणक्य ने चंद्रगुप्त सम्राट जैसी बात देखि और इसीलिए वे उसे तक्षिला ले गए ।
तक्षिला में ज्ञान प्राप्ति के बाद चाणक्य और चंद्रगुप्त ने पहले तो तक्षिला पर विजय पाई और आस पास के कई कबीलों और छोटे राज्यों को एक कर पाटलिपुत्र पर हमला किया ।
सिक्किम के कुछ काबिले मानते है की उनके पुरखे चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में थे ।
320 ईसापूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य मगध का सम्राट बन चूका था ।
इसके बाद उसने कई युद्ध लड़े और सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप पर एकछत्र राज किया ।
298 ईसापूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु हो गई ।
हिंदू और बोद्ध ग्रंथ चंद्रगुप्त मौर्य के अंतिम दिनों के बारे में कुछ नहीं लिखते पर कुछ जैन लेखो के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य जैन भिक्षु बन गया था और कई दिनों तक उपवास रखने के कारण उसकी मृत्यु हो गई ।
पर केवल जैन ग्रंथ के आधार पर कैसे कहे की चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म अपना लिया था ??
जैन ग्रंथो में राम को जैन कहा गया है,सम्राट भारत को भी ,सम्राट अजातशत्रु को भी और प्राचीन काल में कुछ जैन तो गौतम बुध को भी जैन मानते थे पर यह सब जैन नहीं थे ।
हो सकता हो की जैन ग्रंथो की बात सही हो या गलत भी हो सकती है ।
जैन कथाओ के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने 16 सपने देखे थे और उन सपनो का अर्थ जानने चंद्रगुप्त दिगंबर पंथ के जैन गुरु भद्रबाहु के पास गए ।
भद्रबाहु ने चंद्रगुप्त को उन सपनो का अर्थ बताया फिर चंद्रगुप्त मौर्य जैन बन गया ।
इसके बाद अपने पुत्र बिंदुसार को राजा बना कर चंद्रगुप्त मौर्य भद्रबाहु के साथ चले गए ।
पर जैन कवी हेमचन्द्र के अनुसार भद्रबाहु की मृत्यु चंद्रगुप्त मौर्य के राज के 12वे वर्ष में ही हो गई थी ,तो चंद्रगुप्त किसके साथ गए थे ??
बचपन से ही चंद्रगुप्त चाणक्य के साथ रहा था और हिंदू धर्म का उसपर काफी असर था ।
चाणक्य के अर्थशास्त्र में विष्णु की आराधना करने की बात कही गई है ।
चंद्रगुप्त के काल के सिक्को पर हमें जैन प्रभाव कही नज़र नहीं आता जबकि हमें उसके सिक्को पर राम,लक्ष्मन और सीता के चित्र मिलते है ।
चित्र नंबर 1,2 और 3 देखे
इनमे आपको 3 मानवों की आकृति दिखेगी जो राम,लक्ष्मन और सीता के है ।(नंबर 1 चित्र का नाम है GH 591)
अब सम्राट अशोक ने बोद्ध धर्म अपनाया था और उसके सिक्को पर आप बोद्ध प्रभाव देख सकते है ।
चित्र नंबर 4 देखे ,आपको बोद्ध धर्म चक्र नज़र आयेगा ।
यदि चंद्रगुप्त जैन था तो उसके सिक्को में जैन चिन्ह क्यों नहीं है ??
केवल एक मत के आधार पर चंद्रगुप्त मौर्य को जैन कहना ठीक नहीं ।
जय माँ भारती
भाई अशोक ने जब बुध अपनाया तब राज्य नही त्यागा था ओर चन्द्रगुप्त ने राज्य त्याग दिया था कही ये कारण तो नही चन्द्रगुप्त के सिक्को पर जैन चिन्ह न मिलने का,,
ReplyDeleteबिंदुसार ही था जिसने धर्म नही बदला था
bhai dhyaan se pado
Deletehemchandra anusar bhadrabahu ki mrityu chandragupt ke raja banne ke 12 varsh baad hui thi
to fir chandragupt kiska shishya bana aur kiske sath gaya ??
sath hi bhadrabahu aur varahmihir ko bhai kaha gaya hai jain grantho me
bhadrabahu aur varahmihir dono hi ujjain ke the
aur varahmihir chandragupt ke kaal me bilkul nahi tha
maine abhi aur thode sabut jama kiye hai aur me is post me unhe daal dunga
There were two bhadrabahu (first who was shrut kevali who were happened in Bengal (Pundravardhan) at the time of Chandragupt and other was happened at Ujjain at time of Varah Mihir (6th century).
DeleteSo, not to confuse man.
सम्राट चान्द्रगुप्तमौर्य एक गडेरिया(भेड चराने वाले) का पूत्र था ! सबूत के लिए दिल्ली की संसंद के प्रांगण में दिए गए शिला को देखिए जहा अंग्रेजी में लिखा है द शेफर्ड बॉय सम्राटचंद्रगुप्तमौर्य और महाराष्ट्र के धनगर समाज के लोग जो भेड चराने का काम करते है वे सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य को अपना आदी पुरूष मानकर पूजते है परमपिता मानते है...|
ReplyDeleteजी सिकंदर महान को मकदूनिया और यूनान(ग्रीस) इन दोनों देशो में पूजते है|
Deleteऔर इन दोनों देशो के लोग आपस में लड़ते है की सिकंदर उनके देश का था|
अब देखे तो सिकंदर यूनानी था पर जन्मा मकदूनिया में और उस समय मकदूनिया यूनान के अधीन था|
कहने का मतलब है की आपकी बात या दिल्ली संसद के शिला लेख की बात सही हो जरुरी नहीं|
अब उत्तर प्रदेश में कुशवाहा लोग भी चन्द्रगुप्त को अपना पुरखा मानते है|
बिहार में कुछ ब्राह्मण भी चन्द्रगुप्त को अपना पूर्वज कहते है|
जितने लोग उतनी बातें
आपकी बात सच भी हो सकती है या कुशवाहा लोगो की, किसे पता सच क्या है|
पर इतना जरुर है की चन्द्रगुप्त मौर्य एक सच्चा भारतीय था|
संसद कि ज्यो जगह है वहा चंन्द्रगुप्त का नाम जुडा था उनके वंशज कि जगह थी और वह महसूल रेकॉर्ड मे दर्ज थी इसलिये उंक ना शिलालेख पर लिखा गया.रही बात शेफेर्ड होणे कि तों पुराणे जमाणे मे महसूल ,रेव्हेनु रेकॉर्ड मे पेशा याने जात लिखते थे जैसे तुकाराम कुणबी ,बिरोबा धनगर,सावंता माळी ,गोरा कुंभार,नरहरी सोनार ,सरनेम बाद मे आये.इसलिये शेफेर्ड यह रेकॉर्ड मे है बाकी कुछ भी नाही रेकॉर्ड मे . .
Deleteज्ञानेश्वर साव नागपूर 7719996281
DeleteBhagavan Shree Krishna BHI gay charane vale the
Deletesefard boy ka ye matlab nahi ki 'mahan chakravartin samrat chandragupta maurya' gadariya hai . gadariya damptti ne sirf pach saal unhe pala tha. agar ese gadariya hota koi to ye 'yaduwahshi krishna' bhi gadariya hota.
DeleteBaat aati hai yaduvanshi ki toh Bharat Main yadav (ahir) Gujar gaderiya ke upnaam hai hote Tino Ek hi tino ka ek hi kaam tha pashu Palan karna
DeleteSamrat Chandragupta Maurya Suryavanshi Kshatriya the na ki gadariya ha gadariya unki najayaj aulade ho skti h
DeleteChandragupta maurya is from Shepard(dhangar) community
DeleteIndia
ReplyDeleteचन्द्रगुप्त मौर्य सूर्यवंशीय क्षत्रिय था चूँकि उनके आने वाले पीढ़ी ने बौध्द धर्म को विस्तारित किया इसी कारण नाराज ब्राह्मणों ने उलटी पुलटी बाते प्रचारित कर दी।
ReplyDeleteचन्द्रगुप्त मौर्य सूर्यवंशीय क्षत्रिय था चूँकि उनके आने वाले पीढ़ी ने बौध्द धर्म को विस्तारित किया इसी कारण नाराज ब्राह्मणों ने उलटी पुलटी बाते प्रचारित कर दी।
ReplyDeletekuchh bhi ho chandrgupt mory hindu hi the
ReplyDeleteअखंड भारत के राजा की जय
ReplyDeleteचन्द्रगुप्त मौर्य निस्संदेह जैन सम्राट थे इसके प्रमाणिक उल्लेख श्रवणबेलगोळा में मिलते है साथ ही उसका राज्याभिषेक भी जैन विधि से हुआ राजनाथ सिंह ने भी अभी यह बात श्रवणबेलगोळा में कही थी
ReplyDeleteदरअसल, सारा खेल वर्चस्व का है। दूसरों को नीच और नालायक साबित कर कैसे अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी जाए, यही इतिहास लेखन की मूल चेतना रही है। जिस प्रकार अंग्रेजों का ऐसा व्यवहार आश्चर्य का विषय नहीं है, उसी प्रकार भारतीय इतिहासकारों का यहे प्रयास भी आश्चर्य का विषय नहीं है। भारत में इतिहास के शोध और लेखन में रत इतिहासकारों में से अधिकतर तथाकथित उच्च जातियों से संबंधित हैं। वे सिर्फ ऐसे विषयों पर शोध करते हैं, जो उनके अनुकूल हों और तथ्यों को अपने पक्ष में तोड़मरोड़ भी लेते हैं। तमाम बौद्ध एवं जैन ग्रंथों में चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय बताये जाने के बाद भी ब्राह्मण ग्रंथों के आधार पर उन्हें शूद्र क्यों मान लिया जाता है। बिना किसी तार्किक-वैज्ञानिक आधार के हर इतिहास की पुस्तक में यह क्यों लिखा रहता है कि ‘ऐसा माना गया है कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य तथा पैर से शूद्र की उत्पति हुई है’। दरअसल, प्राचीनकाल से आज तक, जब भी ब्राह्मणों द्वारा इतिहास लिखा गया, हर उस जाति को पतित घोषित करने का प्रयास किया गया, जो ब्राह्मणों के विरोध में थी या उनके विरोधियों का समर्थन करती थी। यही कारण है की जब मौर्य वंश के शासक,ब्राह्मणों के विरोधी सम्प्रदायों-जैन, बौद्ध, आजीवक आदि का समर्थन करने लगे तो उन्हें अधम और नीच साबित करने के लिए शूद्र कहा जाने लगा। चन्द्रगुप्त मौर्य के मुकाबले चाणक्य के व्यक्तित्व को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया मानो मौर्य वंश की स्थापना का सारा श्रेय चाणक्य (जो ब्राह्मण थे) को ही हो। आज जब हम इतिहास लेखन की बारीकियों को समझने लगे हैं तो ऐसी स्थापनाओं पर हमें हँसी भी आती है और रोष भी।
ReplyDeleteBraman ki uttaptti Ka rahasya
DeleteJab bramha ne apana do jhat upar ke feka to dubedi paida huye aur jab tin jhat upar ke feka to trivedi paida huye jab char jhat upar ke feka to chatrvedi paida huye jab jyada jhat upar ke feka to Mishra paida huye ye hai bramhan Ka history
Those are not Rama, Lakshamana and Sita, but trio of conduct "Samyak Darshan", "Samyak Gyan" , and "Samyak Charitra". Which gives a message that be "Samyak" not be "Mithya" means be earn from Truth and honesty.
ReplyDeleteBhadrabahu was died just before death of ChandraGupta in 297 B.C.at Shravnbelagola. There are inscriptions at many places which prove this fact.
ReplyDeleteYou can also read book "Inscriptions at Sravana Belgola"
By Benjamin Lewis Rice. You will get exact date and other your answers.
Thanks.
सबसे पहले तो चद्रगुप्त मोर्य भारतीय सम्राट था। और हम सब भारतीय है चद्रगुप्त मोर्य नद वंश का ही था। लेकिन वह उसकी दासी का पुत्र था। कुछ इतिहासकारो के अनुसार उसे नद राजा ने अपने राज्य से निकाल दिया था। और जिस प्रकार चद्रगुप्त राजा बना उसे ग्रह युध्द कह सकते है और कुछ नही कह सकते। नंद कि विशाल सेना से सिकन्दर भी घबरा गया था। ऐसे मे उस उसकी सेना को हराना आसान कार्य नहीं था।
ReplyDeletejat nadekh guru ki puch lijie gyan jo jat ki dekhe o jat na hi jat
ReplyDeletejat nadekh guru ki puch lijie gyan jo jat ki dekhe o jat na hi jat
ReplyDeleteचंद्रगुप्त जैन था या और कौन था यह मुझे नही पता लेकिन भगवान ऋषभदेव के दो पुत्र थे एक भरत और दुसरे बाहुबली भरत चक्रवर्ती सम्राट के नाम से हि भारतवर्ष का नाम पड़ा यह मैंने वैदीक ग्रंथ श्रीमद्भग्वत गीता मे पढ़ा है। अब इतना ही नही तो भगवान ऋषभदेव कहते है मैं ही ब्रम्हा हु मैं ही विष्णु हु मेरे से बड़ा और कौन हो सकता है उनकी तपोभुमी बद्रीकाश्रम है अर्थात ब्रद्रीनाथ धाम भगवान ऋषभदेव तपोभुमी है। वैदीक धर्म के प्राचीन साहित्य वेदों है ऐसा मानते है। उसमें भगवान ऋषभदेव भगवान अरिष्टनेमी का उल्लेख पाया जाता है तथा अन्य वैदीक पुरोणो मे भी जैन धर्म के तिर्थंकरो का उल्लेख मीलता इसे स्पष्ट होता है की जैन धर्म दुनीया का प्रचितम वेदपुर्वकालसेही अस्तीत्व मे है। इसलिए जैन धर्म प्राचीन और सनातन भी है। यह वैदीक धर्म ग्रंथों से प्रमानीत होता है।
ReplyDeleteChandragupta maurya gadariya tha
ReplyDeleteचंद्रगुप्त मौर्य की जीवनी शेयर करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteAre ye History hi galat bata saala bol rha sikko pe ram or seeta ki pratima h..
Deletelekin aisa kuch h hi nhi ye brahman kuch bhi bolte uspe buddh ki pratima thi..
or mata mura or pta ni kya kya bolte h k wo shudra thi jabki koi praman mila hi nhi h k chandragupta k maata pita kaun the..
or na hi us kaal me aaye kisi bhi vidheshi writer ne likha h k chankya naam ka koi person bhi tha...
or na hi khudai me chankya k hone ka koi praman mila h..
ye chankya k farzi kirdar ko brahmno ne 200 saalo k andar ghusaya h..
or ye brahman bolte sanskrit sabse purani india ki language h..
agar h to Ashok ke time ek bhi shila lekh kyu nhi sanskrit me milte sare sila lekh to pali lipi me mile h sanskrit ka dur dur koi namo nishan nhi mila h..
sanskrit hone ka praman 9 se 10 century me mila h....
ye sare brahman khud ka credit lene k liye sari galat galat afwahe faila rakhi h..
or ye Arth shastra bhi 200 salo k bheetar hi ghusaya gya isse pehle iska koi zikr nhi h..
or jab shila lekh mila tha Ashok to in brahmno se mughal sasko ne padhwaya tha to koi bolta ye mahabharat kal ka h to koi bolta ramayan kal ka h..
is lipi ko bad me ko ek videshi writer ne translate kiya tha..
usse pehle in brahmno ko ye tak pta nhi tha k chandragupta or Ashok naam k koi king bhi thy..
Or reh gai vishakha dutt ki mudra rakshas ki bat jo bolte h 4 se 18 vi century k bich likhi gai h..
ye bhi bat jhoot h mudra rakshas ko bhi inhi 200 aalo me brahmno ne khud se bana ghusaya h..
Samrat Chandragupta Maurya Suryavanshi Kshatriya the aur gadariya unki najayaj aulad h 😂😂😂😂😂
ReplyDeleteBeta proof pr baat kr ek hi raja nhi hai gadariyao ke saale bhot hai proof bhi hai hamare pr Tu dede proof bta
DeleteBeta proof pr baat kr ek hi raja nhi hai gadariyao ke saale bhot hai proof bhi hai hamare pr Tu dede proof bta
DeleteSaare Maurya kachi gadariya ki paidaish hai gadariya toh bholenaath baghwan ki Shaadi Mai bhi gye thae aur baijunath gadariya ki nhi pta Kitna bhi jor laga lo baap hai tum sabke
ReplyDeleteBharat Samrat Chandra Gupta Maurya Shepherd Kshatriya Boy Yaani Gadariya Kshatriya the Yaani Pal Kshatriya the Aur ye Surya Vanshi Gadariya Kshatriya the , Gadariya Kshatriya me Suryavanshi Va Chandra Vanshi va Agni Vanshi va Yadu Vanshi(Chandra Vanshi)ye Sabhi hote hai.
ReplyDeleteJai Hind
Jai Bharat