"हो लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन
लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर
हो लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन
लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर
हो लाल मेरी..हो लाल मेरी..
हो चार चराग तेरे बलां हमेशा
हो चार चराग तेरे बलां हमेशा
चार चराग तेरे बलां हमेशा
पंजवा में बलां आई आन बला झूले लालन
हो पंजवान में बालन
हो पंजवान में बालन आई आन बलां झूले लालन
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर
हो लाल मेरी..हाय लाल मेरी..
हो झनन झनन तेरी नोबत बाजे
हो झनन झनन तेरी नोबत बाजे
झनन झनन तेरी नोबत बाजे
नाल बाजे घड्याल बलां झूले लालन
हो नाल बाजे..
नाल बजे घड़ियाल बला झूले लालन
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर
कलंदर..(हो लाल मेरी, हाय लाल मेरी..)"
हिंदी में अर्थ :
" ओ सिंध के राजा ,झुलेलाल , शेवन के पिता
लाल पगड़ी वाले ,तुम्हारी महिमा सदा कायम रहे
कृपया मुझपर सदा कृपा बनाये रखना
तुम्हारा मंदिर सदा प्रकाशमय रहता है उन चार चिरागों के कारण
इसीलिए मैं पंचा चिराग जलाने आया हु आपकी पूजा के लिए
आपका नाम हिंद और सिंध में गूंजे
आपके संमान में घंटिया जोर जोर से बजे
ओ मेरे इश्वर , आपकी महिमा यु ही बदती रहे हर बार ,हर जगह
मैं आपसे प्राथना करता हु की आप मेरी नाव नदी के पार लगा दे "
आज कल या कवाली हिंदी फिल्मो में काफी प्रसिद्ध हो रही है और कई फिल्मो में यह कवाली ली जा चुकी है | यह कवाली है पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सूफी शाहबाज़ कलंदर की , कहते है की वे बड़े नेक दिल थे और हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करते थे |पर सच कुछ और है , यह कवाली असल में सिंध के हिंदू संत श्री झुलेलाल का भजन था जिसे कवाली का रूप दे दिया गया है |
संत झुलेलालसंत झुलेलाल का जन्म सिंध में 1007 इसवी में हुआ था |वे नसरपुर के रतनचंद लोहालो और माता देवकी के घर जन्मे थे , मान्यता यह है की वे वरुण के अवतार थे | उस समय सिंध पर मिर्कशाह नाम का मुस्लिम राजा राज कर रहा था जिसने यह हुक्म दिया था हिन्दुओ को की मरो या इस्लाम काबुल कर लो | तब सिंध के हिंदुओ ने 40 दिनों तक उपवास रखा और इश्वर से प्राथना की ,इसीलिए वरुण देव झुलेलाल के रूप में अवतरित हुए | संत झुलेलाल ने गुरु गोरखनाथ से 'अलख निरंजन ' गुरु मन्त्र प्राप्त किया | जब मिर्कशाह ने संत झुलेलाल के बारे में सुना तो उसने उन्हें अपने पास बुलवाया , उस समय संत झुलेलाल 13 वर्ष के ही थे |मिर्कशाह के सामने आने पर मिर्कशाह ने उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया पर तभी मिर्कशाह का महल आग की लपटों से घिर गया , तब मिर्कशाह को अपनी गलती कहा एहसास हुआ और उसने संत झुलेलाल से क्षमा मांगी ,इसके बाद पास ही के गाँव थिजाहर में 13 वर्ष की आयु में संत झुलेलाल ने समाधी ले ली |
सिंध प्राचीन काल से ही हिन्दुओ की भूमि थी ,इसका एक उधारण है काफ़िर किला जो पहले एक शिव मंदिर था ,700 इसवी के बाद अरबी मुसलमानों भारत पर हमला किया और अफगान और सिंध में इस्लाम का प्रचार शुरू कर दिया |
यह काम तलवार की नोक पर होता और इस काम के लिए सूफियो का सहारा भी लिया जाता था |
संत झुलेलाल सिंध में काफी प्रसिद्ध थे और वहा इस्लाम फ़ैलाने के लिए मुसलमानों ने शहबाज़ कलंदर को झुलेलाल जैसा बनाने की कोशिस की |
अब यदि आप उस कवाली का अर्थ पड़े तो आपको घंटियों का उल्लेख मिलेगा और दरगाह ,मस्जिद या मजार में तो घंटिया होती ही नहीं ,यह तो मंदिरों में होती है ,साथ ही चिराग या दियो से किसी सूफी की पूजा नही की जाती |
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की इस कवाली में झुलेलाल शब्द भी है सो प्रमाण है की यह कवाली असल में झुलेलाल का भजन था और मुसलमानों ने संत झुलेलाल के इस्लामीकरण की कोशिस की |
आज कई हिंदू इस कवाली को गा रहे है जबकि कई इस कवाली का अर्थ तक नहीं पता (क्युकी कवाली हिंदी में नहीं है ) ,वे नहीं जानते की एक तरह से वे इस्लामीकरण को बढावा दे रहे है |
जय माँ भारती
लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर
हो लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन
लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर
हो लाल मेरी..हो लाल मेरी..
हो चार चराग तेरे बलां हमेशा
हो चार चराग तेरे बलां हमेशा
चार चराग तेरे बलां हमेशा
पंजवा में बलां आई आन बला झूले लालन
हो पंजवान में बालन
हो पंजवान में बालन आई आन बलां झूले लालन
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर
हो लाल मेरी..हाय लाल मेरी..
हो झनन झनन तेरी नोबत बाजे
हो झनन झनन तेरी नोबत बाजे
झनन झनन तेरी नोबत बाजे
नाल बाजे घड्याल बलां झूले लालन
हो नाल बाजे..
नाल बजे घड़ियाल बला झूले लालन
सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर
दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर
दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर
कलंदर..(हो लाल मेरी, हाय लाल मेरी..)"
हिंदी में अर्थ :
" ओ सिंध के राजा ,झुलेलाल , शेवन के पिता
लाल पगड़ी वाले ,तुम्हारी महिमा सदा कायम रहे
कृपया मुझपर सदा कृपा बनाये रखना
तुम्हारा मंदिर सदा प्रकाशमय रहता है उन चार चिरागों के कारण
इसीलिए मैं पंचा चिराग जलाने आया हु आपकी पूजा के लिए
आपका नाम हिंद और सिंध में गूंजे
आपके संमान में घंटिया जोर जोर से बजे
ओ मेरे इश्वर , आपकी महिमा यु ही बदती रहे हर बार ,हर जगह
मैं आपसे प्राथना करता हु की आप मेरी नाव नदी के पार लगा दे "
आज कल या कवाली हिंदी फिल्मो में काफी प्रसिद्ध हो रही है और कई फिल्मो में यह कवाली ली जा चुकी है | यह कवाली है पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सूफी शाहबाज़ कलंदर की , कहते है की वे बड़े नेक दिल थे और हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करते थे |पर सच कुछ और है , यह कवाली असल में सिंध के हिंदू संत श्री झुलेलाल का भजन था जिसे कवाली का रूप दे दिया गया है |
संत झुलेलाल |
संत झुलेलालसंत झुलेलाल का जन्म सिंध में 1007 इसवी में हुआ था |वे नसरपुर के रतनचंद लोहालो और माता देवकी के घर जन्मे थे , मान्यता यह है की वे वरुण के अवतार थे | उस समय सिंध पर मिर्कशाह नाम का मुस्लिम राजा राज कर रहा था जिसने यह हुक्म दिया था हिन्दुओ को की मरो या इस्लाम काबुल कर लो | तब सिंध के हिंदुओ ने 40 दिनों तक उपवास रखा और इश्वर से प्राथना की ,इसीलिए वरुण देव झुलेलाल के रूप में अवतरित हुए | संत झुलेलाल ने गुरु गोरखनाथ से 'अलख निरंजन ' गुरु मन्त्र प्राप्त किया | जब मिर्कशाह ने संत झुलेलाल के बारे में सुना तो उसने उन्हें अपने पास बुलवाया , उस समय संत झुलेलाल 13 वर्ष के ही थे |मिर्कशाह के सामने आने पर मिर्कशाह ने उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया पर तभी मिर्कशाह का महल आग की लपटों से घिर गया , तब मिर्कशाह को अपनी गलती कहा एहसास हुआ और उसने संत झुलेलाल से क्षमा मांगी ,इसके बाद पास ही के गाँव थिजाहर में 13 वर्ष की आयु में संत झुलेलाल ने समाधी ले ली |
काफ़िर किला ,प्राचीन शिव मंदिर |
सिंध प्राचीन काल से ही हिन्दुओ की भूमि थी ,इसका एक उधारण है काफ़िर किला जो पहले एक शिव मंदिर था ,700 इसवी के बाद अरबी मुसलमानों भारत पर हमला किया और अफगान और सिंध में इस्लाम का प्रचार शुरू कर दिया |
यह काम तलवार की नोक पर होता और इस काम के लिए सूफियो का सहारा भी लिया जाता था |
संत झुलेलाल सिंध में काफी प्रसिद्ध थे और वहा इस्लाम फ़ैलाने के लिए मुसलमानों ने शहबाज़ कलंदर को झुलेलाल जैसा बनाने की कोशिस की |
अब यदि आप उस कवाली का अर्थ पड़े तो आपको घंटियों का उल्लेख मिलेगा और दरगाह ,मस्जिद या मजार में तो घंटिया होती ही नहीं ,यह तो मंदिरों में होती है ,साथ ही चिराग या दियो से किसी सूफी की पूजा नही की जाती |
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की इस कवाली में झुलेलाल शब्द भी है सो प्रमाण है की यह कवाली असल में झुलेलाल का भजन था और मुसलमानों ने संत झुलेलाल के इस्लामीकरण की कोशिस की |
आज कई हिंदू इस कवाली को गा रहे है जबकि कई इस कवाली का अर्थ तक नहीं पता (क्युकी कवाली हिंदी में नहीं है ) ,वे नहीं जानते की एक तरह से वे इस्लामीकरण को बढावा दे रहे है |
जय माँ भारती
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