पश्चिमी भाषावैज्ञानिक और इतिहासकारों ने यह पाया की यूनानी ,लैटिन और संस्कृत में कई समानता है और इन तीनो भाषाओ की एक ही जननी है जिसे इन्होने प्रोटो इंडो यूरोपियन यानि हिंदी में आदिम या प्राचीन हिंद यूरोपीय भाषा कहते है ।
पश्चिमी इतिहासकारों का मानना है की पश्चिम यूरोप और मध्य एशिया की सीमा के आसपास रहने वाले लोग प्रोटो इंडो यूरोपियन बोलते थे ,फिर वे लोग अलग अलग बट गए और कई अन्य भाषाओ में बदल गए और प्रोटो इंडो यूरोपियन विलुप्त हो गई । अब कई वर्ष तक संस्कृत पर काम करने के बाद भाषावैज्ञानिको ने प्रोटो इंडो यूरोपियन को दुबारा बना लिया है ,क्युकी संस्कृत अन्य आर्य भाषाओ में प्रोटो इंडो के सबसे करीबी है इसीलिए उसे चुना गया ।
पर इस सिधांत में कई खामिया है । मैं कोई भाषा वैज्ञानिक नहीं हु और इस बारे में ज्यादा नहीं जनता ,पर जितना जनता हु उसी से इन पश्चिमी इतिहासकारों की पोल खोलूँगा ।
सच यह है की संस्कृत ही सभी भाषाओ की जननी है और हिमालय आर्यों की जन्मभूमि ।प्रोटो इंडो यूरोपियन जैसी कोई भाषा ही नहीं है, अब जब प्रोटो इंडो यूरोपीय भाषा लुप्त हो चुकी है तो आपको कैसे पता की संस्कृत उसके सबसे करीबी है ?? और यदि प्रोटो इंडो यूरोपीय भाषा थी और संस्कृत उसके करीबी है तो प्रोटो इंडो यूरोपियन भाषा का गढ़ भारत होना चाहिए ,क्युकी पश्चिम यूरोप और मध्य एशिया की भाषाए प्रोटो इंडो से दूर है तो साफ़ है की आर्य भारत से निकले और कास्पियन सागर जो मध्य एशिया और पश्चिमी यूरोप के पास है वहा बसे ,अब उन्हें वहा पहोचने के लिए कई वर्ष लगे इसीलिए उनकी भाषाओ में कई विकृतिया आई गई और वह प्रोटो इंडो यूर्प्पियन भाषा से अलग हो गई ।
पश्चिमी इतिहासकारों को यह बिलकुल पसंद नहीं की उनके पूर्वज भारत के हो । ईसायत और इस्लाम मे उत्तर अफ्रीका से लेकर इराक तक के भाग को इश्वर का बाग़ यानी ईडन गार्डन कहा गया है जहा आदम रहा था ,और पश्चिमी इतिहासकार या तो इसाई है या मुस्लमान इसीलिए उन्होंने अफ्रीका को मानव के जन्म का स्थान बताया है ।
पश्चिमी इतिहासकार और भाषावैज्ञानिको को संस्कृत का बहोत कम ज्ञान है और कई लोगो ने तो संस्कृत में पीएचडी तक की है ,पर फिर भी संस्कृत के मामले में वे लोग पिछड़े हुए है ।
अब मैं आपको बताऊंगा की अपने संस्कृत के कम ज्ञान के सहारे भाषावैज्ञानिको ने जिस प्रोटो इंडो यूरोपियन भाषा का निर्माण किया है वह कई खामियों से भरी पड़ी है ।
भाषावैज्ञानिको ने ऋग्वेद के द्यौस ,यूनानी ज़ीउस और रोम के जुपिटर में समानता देखि और इस निर्णय पर आये की ये तीनो एक ही शब्द से उत्पन्न हुए है ,जो की प्रोटो इंडो यूरोपियन शब्द द्येउस (Dyeus) से है और संस्कृत का द्यौस उसका सबसे करीबी है ।
प्रोटो इंडो यूरोपियन भाषा सुनने के लिए यहाँ क्लिक करे : प्रोटो इंडो यूरोपियन
भाषावैज्ञानिको ने यह पाया की ज़ीउस ,जुपिटर और द्यौस तीनो ही देवताओ के राजा है (ग्रिफ्फित के अनुवाद अनुसार ), पर ऋग्वैदिक मंत्रो में द्यौस पिता को कही भी देवताओ का राजा नहीं कहा गया ,यह केवल भाषावैज्ञानिको का अनुमान था | यदि आप ग्रिफ्फित का ऋग्वेद का अनुवाद पड़े तो ऋग्वेद का मंडल 4 सूक्त 17 का मंत्र 4 के अनुसार द्यौस पिता इंद्र के पिता है और यदि हम आर्य समाज जामनगर का अनुवाद पड़े इसी मंत्र का तो उसके अनुसार द्यौस का अर्थ शूरवीर है | जबकि हम दुबारा ग्रिफ्फित का अनुवाद देखे और उसमे पुरुष सूक्त देखे तो उसके अनुसार इंद्र पुरुष के नेत्र से उत्पन्न हुए है तो द्यौस पुरुष के माथे से , अर्थात इंद्र द्यौस के पुत्र नहीं ,और यदि आर्य समाज जामनगर अनुवाद ले तो यहाँ द्यौस का अर्थ आकाश लोक है |
जब आर्य अभारत से बहार गए तो धीरे धीरे उन्होंने अपना नया धर्म बनाया ,प्राचीन ,फिर प्राचीन इराक यानि सुमेरिया में पुत्र अपने पिता की हत्या कर सिंहासन पर बैठने लगे, राजा द्वारा किये गए इस पाप को छुपाने के लिए कवियों ने एक कहानी गड़ी की जब देवता पापी हो जाते तो उनके पुत्र उनकी हत्या कर गद्दी पर बैठते और न्याय को सदा कायम रखते |
अब यही कहानी कई देशो में गई ,ज़ीउस ने भी अपने पिता क्रोनुस की और जुपिटर ने अपने पिता सैटर्न की हत्या की थी | पश्चिमी भाषावैज्ञानिको ने यही सोचा की द्यौस इंद्र का पिता है और इंद्र भी अपने पिता की हत्या कर देवताओ का राजा बना |
असल में यह बृहस्पति है जो यूनान में ज़ीउस बना और रोम में जुपिटर ,बृहस्पति और जुपिटर दोनों ही बृहस्पति ग्रह से जुड़े हुए है और ज़ीउस ,जुपिटर और बृहस्पति यह तीनो शब्द एक दुसरे से मिलते जुलते है ।
तो भाषावैज्ञानिको ने जिस द्यौस के आधार पर प्रोटो इंडो यूरोपियन शब्द द्येउस (Dyeus) वह गलत है | इससे हम यह अनुमान लगा सकते है इनकी बनाई 70% भाषा गलत है |
जय माँ भारती
पश्चिमी इतिहासकारों का मानना है की पश्चिम यूरोप और मध्य एशिया की सीमा के आसपास रहने वाले लोग प्रोटो इंडो यूरोपियन बोलते थे ,फिर वे लोग अलग अलग बट गए और कई अन्य भाषाओ में बदल गए और प्रोटो इंडो यूरोपियन विलुप्त हो गई । अब कई वर्ष तक संस्कृत पर काम करने के बाद भाषावैज्ञानिको ने प्रोटो इंडो यूरोपियन को दुबारा बना लिया है ,क्युकी संस्कृत अन्य आर्य भाषाओ में प्रोटो इंडो के सबसे करीबी है इसीलिए उसे चुना गया ।
पर इस सिधांत में कई खामिया है । मैं कोई भाषा वैज्ञानिक नहीं हु और इस बारे में ज्यादा नहीं जनता ,पर जितना जनता हु उसी से इन पश्चिमी इतिहासकारों की पोल खोलूँगा ।
सच यह है की संस्कृत ही सभी भाषाओ की जननी है और हिमालय आर्यों की जन्मभूमि ।प्रोटो इंडो यूरोपियन जैसी कोई भाषा ही नहीं है, अब जब प्रोटो इंडो यूरोपीय भाषा लुप्त हो चुकी है तो आपको कैसे पता की संस्कृत उसके सबसे करीबी है ?? और यदि प्रोटो इंडो यूरोपीय भाषा थी और संस्कृत उसके करीबी है तो प्रोटो इंडो यूरोपियन भाषा का गढ़ भारत होना चाहिए ,क्युकी पश्चिम यूरोप और मध्य एशिया की भाषाए प्रोटो इंडो से दूर है तो साफ़ है की आर्य भारत से निकले और कास्पियन सागर जो मध्य एशिया और पश्चिमी यूरोप के पास है वहा बसे ,अब उन्हें वहा पहोचने के लिए कई वर्ष लगे इसीलिए उनकी भाषाओ में कई विकृतिया आई गई और वह प्रोटो इंडो यूर्प्पियन भाषा से अलग हो गई ।
पश्चिमी इतिहासकारों को यह बिलकुल पसंद नहीं की उनके पूर्वज भारत के हो । ईसायत और इस्लाम मे उत्तर अफ्रीका से लेकर इराक तक के भाग को इश्वर का बाग़ यानी ईडन गार्डन कहा गया है जहा आदम रहा था ,और पश्चिमी इतिहासकार या तो इसाई है या मुस्लमान इसीलिए उन्होंने अफ्रीका को मानव के जन्म का स्थान बताया है ।
पश्चिमी इतिहासकार और भाषावैज्ञानिको को संस्कृत का बहोत कम ज्ञान है और कई लोगो ने तो संस्कृत में पीएचडी तक की है ,पर फिर भी संस्कृत के मामले में वे लोग पिछड़े हुए है ।
अब मैं आपको बताऊंगा की अपने संस्कृत के कम ज्ञान के सहारे भाषावैज्ञानिको ने जिस प्रोटो इंडो यूरोपियन भाषा का निर्माण किया है वह कई खामियों से भरी पड़ी है ।
भाषावैज्ञानिको ने ऋग्वेद के द्यौस ,यूनानी ज़ीउस और रोम के जुपिटर में समानता देखि और इस निर्णय पर आये की ये तीनो एक ही शब्द से उत्पन्न हुए है ,जो की प्रोटो इंडो यूरोपियन शब्द द्येउस (Dyeus) से है और संस्कृत का द्यौस उसका सबसे करीबी है ।
प्रोटो इंडो यूरोपियन भाषा सुनने के लिए यहाँ क्लिक करे : प्रोटो इंडो यूरोपियन
भाषावैज्ञानिको ने यह पाया की ज़ीउस ,जुपिटर और द्यौस तीनो ही देवताओ के राजा है (ग्रिफ्फित के अनुवाद अनुसार ), पर ऋग्वैदिक मंत्रो में द्यौस पिता को कही भी देवताओ का राजा नहीं कहा गया ,यह केवल भाषावैज्ञानिको का अनुमान था | यदि आप ग्रिफ्फित का ऋग्वेद का अनुवाद पड़े तो ऋग्वेद का मंडल 4 सूक्त 17 का मंत्र 4 के अनुसार द्यौस पिता इंद्र के पिता है और यदि हम आर्य समाज जामनगर का अनुवाद पड़े इसी मंत्र का तो उसके अनुसार द्यौस का अर्थ शूरवीर है | जबकि हम दुबारा ग्रिफ्फित का अनुवाद देखे और उसमे पुरुष सूक्त देखे तो उसके अनुसार इंद्र पुरुष के नेत्र से उत्पन्न हुए है तो द्यौस पुरुष के माथे से , अर्थात इंद्र द्यौस के पुत्र नहीं ,और यदि आर्य समाज जामनगर अनुवाद ले तो यहाँ द्यौस का अर्थ आकाश लोक है |
आर्य समाज जामनगर ,ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त ९० मंत्र 14 |
जब आर्य अभारत से बहार गए तो धीरे धीरे उन्होंने अपना नया धर्म बनाया ,प्राचीन ,फिर प्राचीन इराक यानि सुमेरिया में पुत्र अपने पिता की हत्या कर सिंहासन पर बैठने लगे, राजा द्वारा किये गए इस पाप को छुपाने के लिए कवियों ने एक कहानी गड़ी की जब देवता पापी हो जाते तो उनके पुत्र उनकी हत्या कर गद्दी पर बैठते और न्याय को सदा कायम रखते |
अब यही कहानी कई देशो में गई ,ज़ीउस ने भी अपने पिता क्रोनुस की और जुपिटर ने अपने पिता सैटर्न की हत्या की थी | पश्चिमी भाषावैज्ञानिको ने यही सोचा की द्यौस इंद्र का पिता है और इंद्र भी अपने पिता की हत्या कर देवताओ का राजा बना |
असल में यह बृहस्पति है जो यूनान में ज़ीउस बना और रोम में जुपिटर ,बृहस्पति और जुपिटर दोनों ही बृहस्पति ग्रह से जुड़े हुए है और ज़ीउस ,जुपिटर और बृहस्पति यह तीनो शब्द एक दुसरे से मिलते जुलते है ।
तो भाषावैज्ञानिको ने जिस द्यौस के आधार पर प्रोटो इंडो यूरोपियन शब्द द्येउस (Dyeus) वह गलत है | इससे हम यह अनुमान लगा सकते है इनकी बनाई 70% भाषा गलत है |
जय माँ भारती
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