Tuesday, November 26, 2013

दोरिया लोग थे द्वारका के लोग

1100 ईसापूर्व दोरिया या दोरिक लोगो ने यवन के उत्तर से आकर यवन में बसे ,उस वक़्त यवन में माईसिनी सभ्यता थी (Mycenaen Civilization ) जिसे दोरिया लोगो ने नष्ट कर दिया और तब यवन का काला युग शुरू हुआ ।
इतिहासकार इस घटना को दोरियन इनवेजन कहते है यानि दोरिया या दोरिक जन समूह का आक्रमण ,प्राचीन यूनानियो ने इसे हेराकुल के लोगो का आगमन या वापसी कहा है ।
दोरिक लोगो के यवन या यूनान में बसने के बाद ही हमें प्राचीन यूनानी भाषा के अवशेष मिलते ।
आखिर कौन थे ये दोरिक या दोरिया लोग ??
दोरिक लोगो को इतिहासकारों हिन्द यूरोपीय भाषा बोलने वाले लोग कहा है जिससे साफ़ है की वे भारत से ताल्लुक रखते है ,साथ में यूनानी भाषा भी हिन्द यूरोपीय है और संस्कृत की बहन भी ,यानि यूनानी भाषा के विकाश के पीछे भारतीयों का हाथ भी हो सकता है और दोरिक भी भारतीय रहे होंगे जो भारत से यूनान बसे ।
1400 ईसापूर्व में द्वारका के लोग द्वारका छोड़ लगे गए ,शायद 300 वर्ष बाद यही लोग यवन में पहोचे होंगे अपने साथ संस्कृत ले जो बाद में आधुनिक यूनानी भाषा बनी ।
दोरिक लोग द्वारका के ही है इस बात की पुष्टि यूनानी खुद करते है ,वे लिखते है की यूनानी देवता ज़ीउस का पुत्र हेराकुल था ,हेराकुल के वंशज राजा बने पर उनकी जमीन छीन ली गई ,बाद में यही लोग वापस यवन आए तब यूनानियो ने इसे हेराकुल के लोगो की वापसी नाम दिया ,अब जैसा बहोत लोग जानते है की हेराकुल असल में संस्कृत शब्द हरे कृष्ण या हरी कुल से आया है और हेराकुल कृष्ण का ही यूनानी नाम है ।
जब सिकंदर पुरु से लड़ रहा था तब यह कहा गया था की पुरु के सेनिको के पास हेराकुल की मूर्ति है यानि कृष्ण की ,मेगास्ठेनेस जो चन्द्रगुप्त मौर्य के युग में आया था वह लिखता है की भारत में मथुरा नाम के नगर में हेराकुल की पूजा होती है और मथुरा तो कृष्ण की ही नगरी है ।
यूनानी जानते थे की भारत के कृष्ण ही असल में हेराकुल है इसीलिए जब दोरिक लोग यवन में बसे तो यूनानियो ने उन्हें हेराकुल के लोग कहा यानि कृष्ण की नगरी के ।
साथ में दोरिक और द्वारका मिलता जुलता है जो उनके द्वारका के होने की पुष्टि करता है ।
कई इतिहासकार कहते है दोरिक लोग उत्तर यवन के लोग थे और विदेशी नहीं है पर माईसिन सभ्यता अपने पडोसी देश मिस्र,तुर्की आदि का वर्णन करता है पर दोरिक लोगो का नहीं जो पुष्टि करता है की वे भारत के थे ।
आज यूनान में कई लोग अपने भारतीय पूर्वजो की तरह सावले है ,आप फारस की सिकंदर की तस्वीर देख सकते है जिसे मेने डाला है ,उसमे सिकंदर सावला है ,अधिक जानकारी के लिए Black Athena सर्च करे ।
साथ ही कृष्ण ने कई फनो वाले कालिया नाग को मारा था ठीक उसी तरह हेराकुल ने हीड्रा नाम के कैल फनो वाले नाग को मारा था ।
जय माँ भारती

सिंधु घाटी में ऋग्वेद


सिन्धुवासी भी वेद पढते थे वे भी आर्य थे
उसका प्रमाण ये सील है
मित्रो उपर्युक्त जो चित्र है वो हडप्पा संस्कृति से
प्राप्त एक मुद्रा(सील) का फोटोस्टेट प्रतिकृति है।ये
सील आज सील नं 387 ओर प्लेट नंCXII के नाम से
सुरक्षित है,,
इस सील मे एक वृक्ष पर दो पक्षी दिखाई दे रहे
है,जिनमे एक फल खा रहा है,जबकि दूसरा केवल देख
रहा है।
यदि हम ऋग्वेद देखे तो उसमे एक मंत्र इस प्रकार
है-
द्वा सुपर्णा सुयजा सखाया समानं वृक्ष
परि षस्वजाते।
तयोरन्य: पिप्पलं स्वाद्वत्तयनश्न
न्नन्यो अभिचाकशीति॥
-ऋग्वेद 1/164/20
इस मंत्र का भाव यह है कि एक संसाररूपी वृक्ष पर
दो लगभग एक जैसे पक्षी बैठे है।उनमे एक
उसका भोग कर रहा है,जबकि दूसरा बिना उसे भोगे
उसका निरीक्षण कर रहा है।
उस चित्र ओर इस मंत्र मे इस तरह की समानता से
आप लोगो को क्या लगता है???
क्युकि हमारे कई पुराने मंदिरो पर या कृष्ण जी के
मन्दिरो पर रामायण ओर कृष्ण जी की कुछ लीलाए
चित्र रूप मे देखी होगी,जिनका आधार रामायण ओर
महाभारत जैसे ग्रंथ है।
तो क्या ये चित्र बनाने वाला व्यक्ति या बन वाने
वाले ने ऋग्वेद के इस मंत्र को चित्र रूप
दिया हो ताकि लोगो को इस मंत्र को समझा सके ।
क्या हडप्पा वासी वेद पढते थे।ऋग्वेद मे स्वस्तिक
शब्द है ओर उसका चित्र रूप जो हम आज शुभ
कार्यो मे बनाते है वो हडप्पा सभ्यता से प्राप्त हुआ
है।
तो क्या हडप्पा वासी भी वेद पढते थे।वे
वेदो को मानते थे।