Saturday, February 8, 2014

वैशाली का युद्ध ( Battle of Vaishali )

{{ज्ञानसन्दूक युद्ध
काल = 490 ईसापूर्व।
स्थल = गंगा घाटी और वैशाली।
सेना = दोनों सेना के पास लगभग समान संख्या है सेना की ।शायद बड़ा चड़ाकर पेश किया है ,दोनों सेना के पास 1 लाख के करीब सेना होगी पर फिर भी जैन ग्रंथ में दिए अकड़े देखते है ।
57000 हाथी दोनों सेना के पास
57000 घोड़े दोनों ही सेना के पास
57000 रथ दोनों ही सेना के पास
और 5 लाख 70 हज़ार सेनिक दोनों ही सेना के पास ।

सेना का नेतृत्व :-
मगध राज्य
अजातशत्रु
10 कलाकुमार
वस्सकर

णसंघ
चेतक
विरुधक
मनुदेव

युद्ध का परिणाम :-
अजातशत्रु की वैशाली,मल्ल ,काशी,कोसल आदि राज्यों पर जीत ।

वैशाली का युद्ध या जैन ग्रंथो में इसे महासिलाकंताका कहा गया है । भारत के इतिहास में यह युद्ध काफी महत्त्व रखता है क्युकी इस युद्ध में अजातशत्रु ने तलवार वाले रथ ,गुलेल और झूलने वाली गदा का उपयोग पहली बार किया था ।इस युद्ध ने मगध की सीमाए दूर दूर तक फैलाई ।
जैन ग्रंथो में इस युद्ध की वजह हल्ला और विहल्ला कुमार को बिम्बिसार के दिए तोफे कहे गए है जो की एक हीरे का हार था और सेचानक नाम का हाथी था ,अजातशत्रु सम्राट बन गया और तब अजातशत्रु ने हल्ला और विहल्ला को वे तोफे उसे देने को कहा पर दोनों राजकुमारों ने मना कर दिया और अपने नाना चेतक के पास गए जो वैशाली के राजा थे ,अजातशत्रु ने राजा चेतक को उन दोनों कुमारो को उसे सोपने को कहा पर चेतक ने मना कर दिया ,इसीलिए यह युद्ध हुआ ।
बोध ग्रंथ अनुसार इस युद्ध का कारन हीरो की खदान पर अधिकार को लेकर था ।
यदि इन दोनों बातो को को सही माने और इन्हें जोड़े तो यह बात सामने आती है की हीरो की खदान अजातशत्रु को चाहिए थी पर क्युकी मगध और वैशाली के पारिवारिक संबंध थे इसीलिए अजातशत्रु कुछ नहीं कर पाया पर जब हल्ला और विहल्ला ने वैशाली में शरण ली तब उसे एक अच्छा मौका मिल गया और फिर युद्ध शुरू हुआ ।

युद्ध :-
अजातशत्रु ने अपने प्रधान मंत्री वस्सकर और अपने सोतेले भाइ कालकुमारो के साथ युद्ध की रणनीति बनाना शुरू की  । अजातशत्रु जानता था की वैशाली पर पहले भी हमले हुए है और वैशाली अबतक नहीं हारा इसीलिए उसने काफी बड़ी सेना जमा की ।
मगध इरादा था गंगा घाटी के मैदानों का लाभ उठाना और इसके लिए इस युद्ध में अजातशत्रु ने हाथी,रथ और घोड़े उतारे।
यही निति वैशाली की भी थी ,वैशाली मगध के मुकाबले छोटा था इसीलिए उसने 9 लिच्चावी राजा जिसमे मनुदेव भी थे उन्हें अपने साथ ले लिया,9 मल्ल राजाओ को और काशी -कोशल के नरेश विरुधक को अपने साथ ले लिया,चुकी विरुधक और अजातशत्रु में काशी को लेकर विवाद था इसीलिए विरुधक ने राजा चेतक का साथ दिया ।
सेना का ढाचा आम था ,आगे पैदल सेना ,पीछे घुड़सवार ,उनके पीछे रथ और सबसे पीछे हाथी ।
राजा चेतक धनुर विद्या में उस्ताद था ,उसके बाणों से बचना नामुमकिन था और इसी कारण राजा चेतक को को अजय कहा जाता था पर राजा चेतक जैन बन गए थे और उन्होंने वर्धमान महावीर को वचन दिया था की वे एक दिन में एक ही बाण चलाएंगे ।
युद्ध शुरू हुआ और अजातशत्रु के गुलेल(Catapult) ने आतंक मचा दिया वैशाली संघ के सेनिको में ,पर राजा चेतक ने 10 कालकुमारो में से एक को अपने बाण से मार डाला ।
इसिकादर अगले 9 दिन में एक एक कर कालकुमार मरते गए और मगध कमजोर पड़ गया ।
3 दिन अजातशत्रु ने इंद्र की आराधना की और फिर रथ मुसल नाम का रथ युद्धभूमि पर उतरा ।
उसके पहियों पर तलवार लगी थी और लटकने वाली गदा जो एक बार में कई सेनिको को मार डालती ।
अब बाज़ी अजातशत्रु के हाथ में आ गई थी और राजा चेतक बुरी तरह हार गए।
राजा चेतक अपने बचे सेनिको के साथ वैशाली नगर पहोचे और उसके द्वार बंद कर दिए ,अजातशत्रु ने वैशाली पर आक्रमण किया पर उसकी मजबूत दिवार अभेद्य थी इसीलिए वह पीछे हट गया ।
वस्सकर को एक युक्ति सूजी और उसने कुलावक नाम के जैन भिक्षु के पास एक स्त्री भेजी जिसका नाम मगधिका था ।
कुलावक मगधिका के प्रेम में पड गया और मगधिका ने कुलावक को अजातशत्रु के लिए काम करने के लिए राजी किया ।
वस्सकर ने कुलावक को वैशाली में जाने को कहा और यह अफवाह फ़ैलाने को कहा की वैशाली के लोग जिस चैत्य को पूज्य मानते है वही वैशाली के दुर्गति का कारण है।
कुलावक अपने काम में सफल हुआ और इसीलिए कुछ लोगो ने उस चैत्य को उखाड़ फेका ,पर कई इस बात के विरोध में थे इसी कारण वैशाली के लोगो में आपस में ही झगडा हो गया ।
इस अवसर का लाभ उठा अजातशत्रु ने वैशाली पर हमला किया और विजय प्राप्त की ।

जय माँ भारती

Thursday, February 6, 2014

हिंदू सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य (Hindu Emperor Chandragupta Maurya)

चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसापूर्व को पाटलिपुत्र में हुआ था ,वह पहला मौर्य सम्राट था और अखंड भारत पर भी राज करने वाला  करने वाला पहला सम्राट था ।
जन्म से ही वह गरीब था ,उसके पिता की मृत्यु उसके जन्म से पहले ही हो गई थी,कुछ लेखो के अनुसार वह अंतिम नंद सम्राट धनानंद का पुत्र था और उसकी माँ का नाम मुरा था ।
हर ग्रंथ में मतभेद है चंद्रगुप्त की उत्पत्ति को लेकर ।
बोद्ध ग्रंथ अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य मोरिया नाम के काबिले से ताल्लुक रखता था जो शाक्यो के रिश्तेदार थे ।
मुरा या तो काबिले के सरदार की लड़की थी या धनानंद की दासी थी ।
10 वर्ष की उम्र में उसकी माँ मुरा की मृत्यु हो गई थी और तब चाणक्य नाम के ब्राह्मण ने अनाथ चंद्रगुप्त को पाला ।
चाणक्य को धनानंद से बदला लेना था और नंद के भ्रष्ट राज को ख़त्म करना था ।
चाणक्य ने चंद्रगुप्त सम्राट जैसी बात देखि और इसीलिए वे उसे तक्षिला ले गए ।
तक्षिला में ज्ञान प्राप्ति के बाद चाणक्य और चंद्रगुप्त ने पहले तो तक्षिला पर विजय पाई और आस पास के कई कबीलों और छोटे राज्यों को एक कर पाटलिपुत्र पर हमला किया ।
सिक्किम के कुछ काबिले मानते है की उनके पुरखे चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में थे ।
320 ईसापूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य मगध का सम्राट बन चूका था ।
इसके बाद उसने कई युद्ध लड़े और सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप पर एकछत्र राज किया ।
298 ईसापूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु हो गई ।
हिंदू और बोद्ध ग्रंथ चंद्रगुप्त मौर्य के अंतिम दिनों के बारे में कुछ नहीं लिखते पर कुछ जैन लेखो के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य जैन भिक्षु बन गया था और कई दिनों तक उपवास रखने के कारण उसकी मृत्यु हो गई ।
पर केवल जैन ग्रंथ के आधार पर कैसे कहे की चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म अपना लिया था ??
जैन ग्रंथो में राम को जैन कहा गया है,सम्राट भारत को भी ,सम्राट अजातशत्रु को भी और प्राचीन काल में कुछ जैन तो गौतम बुध को भी जैन मानते थे पर यह सब जैन नहीं थे ।
हो सकता हो की जैन ग्रंथो की बात सही हो या गलत भी हो सकती है ।
जैन कथाओ के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने 16 सपने देखे थे और उन सपनो का अर्थ जानने चंद्रगुप्त दिगंबर पंथ के जैन गुरु भद्रबाहु के पास गए ।
भद्रबाहु ने चंद्रगुप्त को उन सपनो का अर्थ बताया फिर चंद्रगुप्त मौर्य जैन बन गया ।
इसके बाद अपने पुत्र बिंदुसार को राजा बना कर चंद्रगुप्त मौर्य भद्रबाहु के साथ चले गए ।
पर जैन कवी हेमचन्द्र के अनुसार भद्रबाहु की मृत्यु चंद्रगुप्त मौर्य के राज के 12वे वर्ष में ही हो गई थी ,तो चंद्रगुप्त किसके साथ गए थे ??
बचपन से ही चंद्रगुप्त चाणक्य के साथ रहा था और हिंदू धर्म का उसपर काफी असर था ।
चाणक्य के अर्थशास्त्र में विष्णु की आराधना करने की बात कही गई है ।
चंद्रगुप्त के काल के सिक्को पर हमें जैन प्रभाव कही नज़र नहीं आता जबकि हमें उसके सिक्को पर राम,लक्ष्मन और सीता के चित्र मिलते है ।
चित्र नंबर 1,2 और 3 देखे
इनमे आपको 3 मानवों की आकृति दिखेगी जो राम,लक्ष्मन और सीता के है ।(नंबर 1 चित्र का नाम है GH 591)
अब सम्राट अशोक ने बोद्ध धर्म अपनाया था और उसके सिक्को पर आप बोद्ध प्रभाव देख सकते है ।
चित्र नंबर 4 देखे ,आपको बोद्ध धर्म चक्र नज़र आयेगा ।
यदि चंद्रगुप्त जैन था तो उसके सिक्को में जैन चिन्ह क्यों नहीं है ??

केवल एक मत के आधार पर चंद्रगुप्त मौर्य को जैन कहना ठीक नहीं  ।

जय माँ भारती