Thursday, January 21, 2016

पाणिनि का समयकाल

इंटरनेट पर कई लोग मिल जाएँगे जो कई तरह की उल जलूल बातें करते है। मैं भी एक सज्जन से मिला जिनके अनुसार संस्कृत यूनानी भाषा का Lingua Franca है और पाणिनि जी ने यूनानी भाषा के प्रभाव में आकर सस्कृत व्याकरण लिखा। वे सज्जन एक स्वघोषित इतिहासकार है और उनका कहना है की वे श्वेत यूरोपीय इतिहासकारो के झूठे इतिहास की पोल खोलते है और अश्वेत लोगो का सच्चा इतिहास बताते है, क्योंकि वे सज्जन एक अफ़्रीकी अमेरिकन है इसलिए वे अश्वेत लोगो के इतिहास का गौरवपूर्ण सच बताने की कोशिश  करते है।

उनका कहना था की हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार का कोई अस्तित्व ही नहीं और यह केवल यूरोपीय इतिहासकारो का झूठ है ताकि वे श्वेत आर्य नस्ल की महानता बता सके। उनके अनुसार संस्कृत और यूनानी भाषा और अन्य दूसरी यूरोपिय भाषाओ में इतनी समानताए इसलिए है क्योंकि पाणिनि ने यूनानी भाषा का अध्यन कर संस्कृत में कई परिवर्तन किये और बाद में संस्कृत पुरे भारत में फैली। उनके अनुसार तो संस्कृत का 500 ईसापूर्व से पहले अस्तित्व ही नहीं था और वेद भी इस काल से पहले लिखे नहीं गए थे। उन सज्जन का यह सिद्धान्त केवल एक ही बात पर टिका हुआ था, वह था की पाणिनिजी ने अष्टाध्यायी में "यवनानि" शब्द मिला है जिसका अर्थ ज्यादातर विद्धवान बताते है "यवनो की लिपि" या "यवनी स्त्री"। महर्षि पतंजलि ने यवनानि शब्द का अर्थ "यवनो की लिपि" बताया है, तो मैं भी इसी बात के साथ चलता हु।
चुकी पाणिनिजी तक्षिला में ज्ञानप्राप्ति के लिए गए थे और तक्षिला में विश्वभर से लोग आते थे तो शायद पाणिनिजी को किसी यवनी से ही उनकी लिपि के बारे में पता चला होगा।

चुकी मैं भी पश्चिमी इतिहासकारो के इतिहास पर विश्वास नहीं रखता तो मैंने सोचा की इन साहब की बातें सुन कर देख लेते है।
उन सज्जन ने एक वीडियो बनाया था जिसके अनुसार गांधार में यवनो का शासन था, तब पाणिनि जी ने उनसे उनका व्याकरण सीखा और उसका उपयोग अष्टाध्यायी की रचना के लिए किया।

वीडियो शुरू हुए 1 मिनट भी नहीं हुआ था की मैंने वीडियो रोका और उन साहब से पूछा: " पाणिनि जी के काल में यवनी भारत में थे ही नहीं, वे तो बाद में आये थे सिकंदर के आने के बाद।"
मैंने वीडियो देखना शुरू किया तो उसमे आया की पाणिनि जी ने अष्टाध्यायी में यवनानि शब्द का उपयोग किया है, साथ ही पाणिनि से पहले सस्कृत का कुछ अता पता ही था, वह तो Lingua Franca था। Lingua Franca उस भाषा को कहते है जो दो व्यक्तियो के लिए वार्तालाप के उपयोग में आता है जब वे दोनों एक दूसरे की भाषा समझ नहीं सकते, उधारण: अंग्रेजी ।

अगले दिन उन साहब का रिप्लाय आया, उन्होंने कहा: "यवनी पाणिनि से पहले से गांधार में रह रहे थे। फारसियों ने गांधार विजय के बाद वहा यवनियो को बसाया था।"

तो मैंने रिप्लाय किया: " यवनी तो फारसियों के दुश्मन थे तो वे अपने ही दुश्मन को अपने ही राज्य में क्यों बसाएंगे?

तो वे महाशय बोले: "तुम्हे किसी चीज़ का ज्ञान नहीं है वगेरा वगेरा।"

तो मैंने उन्हें लिखा: "आपको ही किसी चीज़ का ज्ञान नहीं है, आप केवल नस्लवाद फैला रहे है और अश्वेतों का झूठा इतिहास फैला रहे है। किसी भी फ़ारसी लेख में इस बात का ज़िक्र नहीं है की उन्होंने यूनानियो को गांधार में बसाया था। पाणिनि ने यह बात कही नहीं कही है की उन्होंने यवनो से ज्ञान प्राप्त किया है और तब संस्कृत का निर्माण किया। पाणिनि महाजनपदों का उल्लेख किया है पर किसी यवन देश का नहीं, उन्होंने सिंधु घंटी में लगभग 500 गाँवो का उल्लेख किया है पर किसी भी यवनी बस्ती का नहीं। सिकंदर के इतिहासकारो ने भारत में किसी यवन बस्ती का उल्लेख नहीं किया।( प्लुटार्च ने लिखा था की भारत में यवनो की कुछ बस्तिया थी जब सिकंदर वहा आया था, पर प्लुटार्च सिकंदर के मारने के लगभग 300 वर्ष बाद पैदा हुआ था तो उसकी बातों को सही नहीं मान सकते।)"

तब उनका रिप्लाय आया: "मैंने कब कहा की पाणिनि ने सस्कृत का निर्माण किया है, मैंने कहा की पाणिनि ने यूनानी भाषा से ससंस्कृत व्याकरण का निर्माण किया।"

मैंने जवाब दिया: "पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण का निर्माण नहीं किया अपितु उसमे कई सुधार किये। पाणिनि से पहले कई वैयाकरण हुए जैसे की यास्क आदि, तो यह कहना की पाणिनि ने संस्कृत के व्याकरण का निर्माण किया यह गलत है।" (यह महाशय अपने वीडियो में कह चुके है की पाणिनि ने संस्कृत का निर्माण किया पर बाद में पलट गए।)

उनका जवाब: "मैंने यह नहीं कहा की संस्कृत व्याकरण का निर्माण पाणिनि ने किया( यह व्यक्ति दुबारा से पलट गया), मैंने कहा उन्होंने यवनी व्याकरण का उपयोग संस्कृत में किया। और संस्कृत का 500 ईसापूर्व से पहले कोई अस्तित्व ही नहीं था और नाही इसका कोई साबुत है।"

मैंने जवाब दिया: "भाई यहाँ बात यवनी भाषा की हो रही है और आप संस्कृत पर आ टपके, पर आपकी कही बात गलत है। मित्तानि साम्राज्य और हित्तिते साम्राज्य के बिच में हुए संधि पत्र में इंद्र,वरुण,अग्नि आदि देवो का उल्लेख है जो सिद्ध करता है की संस्कृत 1500 उसपूर्व से भी पुरानी है।"

मैं एक के बाद एक जवाब दिए जा रहा था और उसके नसलवादि सिद्धान्तों की धज्जिया उड़ा रहा था।वह इतना तिलमिलिया की उसके अगले जवाब में उसका गुस्सा नज़र आ रहा था।

उसने भेजा: "आर्य नस्ल के लोग 1000 ईसापूर्व पहले भारत आये थे और उन्होंने द्रविड़ों के नगरो को ध्वस्त कर दिया था। भारतीय पुरातत्वशास्त्री बी.बी.लाल ने भी कहा है की आर्य भूरे मृद्भांड संस्कृति( Painted Grey Ware Culture) से तालुक रखते थे। साबित करो संस्कृत 4000 ईसापूर्व पुरानी है।"

मैं समझ गया की यह बंदा बात पलटने की कोशिश कर रहा है, मैंने उसे लिख भेजा: " भाई मैंने कब दावा किया की संस्कृत 4000 ईसापूर्व पुरानी है जो में साबित करू। मैं तुम्हे कई सबूत दे चूका हु की तुम्हारी बातें गलत है और वे केवल नस्लवादी है। तुम मुझे सबूत अपने सिद्धान्त को सिद्ध करने के लिए।"

उनका जवाब: "पाणिनि ने अष्टाध्यायी में यवनानि शब्द का उपयोग किया है।"

यह पड़कर मुझे काफी गुस्सा आया। मैं पहले ही साबित कर चूका था की यवनी पाणिनि के काल में थे ही नहीं फिर भी यह मुर्ख उसी बात पर टिक हुआ है। मैंने फैसला किया की मैं अब इसे उत्तर नहीं दूंगा क्योंकि मैं इसके सवालो के जवाब दे चूका हु और दुबारा देकर क्या फायदा जब इस व्यक्ति के मस्तिक्ष में कुछ जाये ही नहीं। यह व्यक्ति अपने काल्पनिक दुनिया में रहता है और मेरे समझाने का इसपर कोई असर नहीं होगा।

जय माँ भारती।