Thursday, March 27, 2014

स्वामी दयानंद का इतिहास चिंतन

स्वामी दयानंद का इतिहास चिंतन
क्रांतिगुरु स्वामी दयानंद के विशाल
चिंतन में एक महत्वपूर्ण कड़ी इतिहास
रुपी मिथ्या बातों का खंडन एवं सत्य
इतिहास का शंखनाद हैं।
स्वामी जी का भागीरथ प्रयास
था कि विदेशी इतिहासकारों द्वारा
अपने स्वार्थ हित एवं ईसाइयत के
पोषण के लिए विकृत इतिहास द्वारा
भारत वासियों को असभ्य, जंगली,
अंधविश्वासी आदि सिद्ध करने के लिए
किया जा रहा था उसे न केवल सप्रमाण
असत्य सिद्ध करे अपितु उसके स्थान पर
सत्य इतिहास कि स्थापना कर भारत
वासियों को संसार कि श्रेष्ठतम,
वैज्ञानिक, अध्यात्मिक रूप से सबसे
उन्नत एवं प्रगतिशील सिद्ध करे।
इसी कड़ी में स्वामी जी द्वारा अनेक
तथ्य अपनी लेखनी द्वारा प्रस्तुत किये
गये जिन पर आधुनिक रूप से शौध कर
उन्हें संसार के समक्ष सिद्ध कर
अनुसन्धान कर्ताओं कि सोच को बदलने
कि कि अत्यंत आवश्यकता हैं।
स्वामी जी द्वारा स्थापित कुछ
इतिहास अन्वेषण तथ्यों को यहाँ पर
प्रस्तुत कर रहे हैं।
१. आर्य लोग बाहर से आये हुए
आक्रमणकारी नहीं थे, जिन्होंने
यहाँ पर आकर यहाँ के मूल
निवासियों पर जय पाकर उन पर
राज्य किया था। वे यही के मूल
निवासी थे और इस देश का नाम
आर्यव्रत था।
२. वेदों में आर्य दस्यु युद्ध
का किसी भी प्रकार का कोई उल्लेख
नहीं हैं और यह नितांत कल्पना हैं
क्यूंकि वेद इतिहास पुस्तक नहीं हैं।
३. प्राचीन काल में
नारी जाति अशिक्षित एवं घर में चूल्हे
चौके तक सिमित न रहने वाली होकर
गार्गी, मैत्रयी जैसी महान
विदुषी एवं शास्त्रार्थ करने
वाली थी। वेदों में तो मंत्र
द्रष्टा ऋषिकाओं का भी उल्लेख
मिलता हैं।
४. वेदों में एक ईश्वर कि पूजा और
अर्चना का विधान हैं। एक ईश्वर के
अनेक गुणों के कारण अनेक नाम हो सकते
हैं और यह सभी नाम गुणवाचक हैं मगर
इसका अर्थ यह हैं कि ईश्वर एक हैं और
अनेक गुणों द्वारा जाना जाता हैं।
५. वेदों का उत्पत्ति काल २०००-३०००
वर्ष नहीं हैं अपितु सूर्य सिद्धांत
शिरोमणि ग्रंथों के आधार पर
अरबों वर्ष पुराना हैं।
६. रामायण, महाभारत आदि काल्पनिक
ग्रन्थ नहीं हैं अपितु राजा परीक्षित
के पश्चात आर्य राजाओं कि प्राप्त
वंशावली से सिद्ध होता हैं कि वह
सत्य इतिहास हैं।
७. श्री कृष्ण का जो चरित्र महाभारत
में वर्णित हैं वह आपत अर्थात श्रेष्ठ
पुरुषों वाला हैं। अन्य सब गाथायें
मनगढ़त एवं असत्य हैं।
८. पुराणों के रचियता व्यास
जी नहीं हैं अपितु पंडितों ने
अपनी अपनी बातें इसमें
मिला दी थी और व्यास जी का नाम
रख दिया था।
९. रामायण, महाभारत, मनु
स्मृति आदि में जो कुछ वेदानुकूल हैं वह
मान्य हैं प्रक्षिप्त अर्थात
मिलावटी हैं।
१०. वैदिक ऋषि मन्त्रों के
रचियता नहीं अपितु मंत्र द्रष्टा थे।
११. वेदों में यज्ञों में पशु बलि एवं
माँसाहार आदि का कोई विधान
नहीं हैं। वेदों कि इस प्रकार
कि व्याख्या मध्य कालीन
पंडितों का कार्य हैं जो वाममार्ग से
प्रभावित थे।
१२. मूर्ति पूजा कि उत्पत्ति जैन मत
द्वारा आरम्भ हुई थी। न वेदों में और न
ही इससे पूर्व काल में
मूर्ति पूजा का कोई प्रचलन था।
१३. वेदों में जादू टोना,काला जादू
आदि का कोई विधान नहीं हैं। यह सब
मनघड़त कल्पनाएँ हैं।
१४. वेदों में अश्लीलता आदि का कोई
वर्णन नहीं हैं। यह सब मनघड़त
कल्पनाएँ हैं।
१५. सृष्टि कि उत्पत्ति के काल में बहुत
सारे युवा पुरुष और
नारी का त्रिविष्टप पर
अमैथुनी प्रक्रिया से जन्म हुआ था और
चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य एवं
अंगिरा को ह्रदय में ईश्वर
द्वारा वेदों का ज्ञान प्राप्त
करवाया गया था।
१६. वेदों का ज्ञान बहुत काल तक
श्रवण परम्परा द्वारा सुरक्षित रहा,
कालांतर में इक्ष्वाकु के काल में
वेदों को सर्वप्रथम लिखित रूप में
उपलब्ध करवाया गया था।
१७. आर्य वैदिक सभ्यता प्राचीन काल
में सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित थी और
आर्यव्रत देश संसार का विश्व गुरु था।
१८. प्राचीन काल में विदेश गमन पर
कोई प्रतिबन्ध नहीं था और न
ही विदेश जाने से कोई भी धर्म से च्युत
हो जाता था।
१९. शुद्धि आदि का विधान गोभिल
आदि ग्रंथों में विद्यमान था इसलिए
जो भी कोई वैदिक धर्म त्याग कर
विधर्मी हो चुके हैं उन्हें वापिस
स्वधर्मी बनाया जा सकता हैं।
२०. गुजरात के सोमनाथ में
मुसलमानों कि विजय का कारण
मूर्ति पूजा एवं अवतारवाद से सम्बंधित
पाखंड था नाकि हिंदुओं में
वीरता कि कमी था।
ऐसे और उदहारण देकर एक पूरी पुस्तक
लिखी जा सकती हैं जिसका उद्देश्य
स्वामी दयानंद को अपने समय का सबसे
बड़े इतिहासकार, अनुसन्धान कर्ता के
रूप में सिद्ध करना होगा।

डॉ विवेक आर्य

जय माँ भारती

Friday, March 7, 2014

हिंदू धर्म की पुनः स्थापना (Re-establishment of Hinduism)

सम्राट अशोक के बोद्ध धर्म अपनाने के बाद पूरा उत्तर भारत बोद्ध बन गया और मौर्य कालीन नगरो में मथुरा बोद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन गया था ।
तक़रीबन 500 वर्ष तक वह बोद्ध केंद्र बना रहा ,हा कुछ काल के लिए शुंग वंश का राज रहा मथुरा में , पर शुंग राजा धर्मनिरपेक्ष थे ।
अशोक के काल से पहले मथुरा वैदिक धर्म का केंद्र था जिसकी पुष्टि हिंदू ग्रंथ करते है ।
मेगास्ठेनेस जो यूनानी लेखक था और चंद्रगुप्त मौर्य के काल में भारत आया था ,वह लिखता की  मथुरा में 'हेराकल्स' नाम के देवता की पूजा होती है और हेराकल्स श्री कृष्ण का यूनानी नाम है ।
मौर्य,ग्रेसो बक्ट्रिया ,शक , हिंद पार्थिया और कुषाण यह बोद्ध वंश थे जो मथुरा पर राज करते थे ।
कुषाणों ने नागवंशियो को अपना सामंत नियुक्त किया और कुषाणों के पतन के वक़्त यह नागवंशी स्वतंत्र हुए और मथुरा पर इन्होने राज किया ।
यह नागवंशी भारशिव कहलाये और ये शिव भक्त थे ,वाकातक ताम्र पत्र अनुसार भारशिवो ने खुदको गंगा के पवित्र जल से शुद्ध किया था और काशी में 10 अश्वमेध यज्ञ किये थे ।
वायु पुराण अनुसार 7 नागवंशी पाटलिपुत्र पर राज करेंगे गुप्ताओ से पहले ।
पुष्यमित्र शुंग के बाद भारशिवो ने अश्वमेध यज्ञ किया जो बोद्ध राज में बंद हो गया था ।
भारशिवो ने मथुरा को राजधानी बनाई थी और फिर धीरे धीरे अपने पडोसी राज्यों को जीतते गए जो बोद्ध बन गए थे ।
भारशिव वंश के पहले राजा वीरसेन के सिक्के पंजाब और उत्तर प्रदेश में मिलते है और उनमे लक्ष्मी और नंदी की तस्वीर है ।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार वीरसेन नागवंशी नहीं था साथ ही भारशिव राजाओ के नामो पर भी विवाद है क्युकी भारशिवो के कई सिक्को पर राजाओ के नाम स्पष्ट नहीं नज़र आते साथ ही विष्णु पुराण अनुसार मथुरा ,पद्मावती (आज के ग्वालियर में ) और कांतिपुर ( आज के मिर्ज़ापुर में ) 9 नागवंशी राजा राज करेंगे
हमें पद्मावती में 9 नाग राजाओ के सिक्के मिलते है जो और विवाद खड़ा करता है ।
पर वीरसेन के सिक्को और वायु पुराण अनुसार मैंने भारशिवो के साम्राज्य का नक्षा बनाया है जो पूरी गंगा घाटी में फैला था ।
न केवल मथुरा बल्कि पाटलिपुत्र को भी भारशिवो ने यूनानी बोद्ध राजाओ से आजाद कराया था ।
कुषाणों के यूनानी सामंत कुषाण वंश के पतन के बाद भी वहा राज कर रहे थे पर भारशिवो ने उन्हें भी परास्त किया ।
भारशिवो के बाद गुप्त वंश का राज आया ,वे भी वैदिक थे पर हर धर्म का सम्मान करते थे ।
समुद्र गुप्त और चंद्र गुप्त (द्वितीय) के अधीन गुप्त साम्राज्य ने पुरे भारत में हिंदू धर्म फैलाया ।
उनकी निति धर्म विजय की थी जिसके अनुसार वे किसी राज्य को जीतते पर उसे स्वतंत्र करते लेकिन कर या टैक्स लेते है ,और यदि समुद्र गुप्त और चंद्र गुप्त धर्मविजय का मार्ग न अपनाते तो उनका साम्राज्य मौर्य साम्राज्य से भी बड़ा होता ।
पर स्कंद गुप्त के बाद जो गुप्त राजा हुए उन्होंने बोद्ध धर्म अपना लिया था ,लेकिन उन गुप्त राजाओ का राज्य केवल बिहार और बुंदेलखंड तक ही था ,साथ ही यशोधर्म ,राष्ट्रकूट आदि कई बड़े हिंदू राजा अपना प्रभुत्व कायम कर चुके थे गुप्त काल के अंतिम दिनों में ।
दक्षिण में भी बोद्ध धर्म अपने पैर जमा चूका था कलाभ्रस के राज में ।
300 इसवी तक दक्षिण पर चोल,चेर और पांड्यन वंश राज करते थे पर तब कलाभ्रस वंश का उदय हुआ जिसने इन दिनों वंश को अपने अधीन कर लिया ।
कलाभ्रस बोध थे और दक्षिण के हिंदू राजाओ द्वारा ब्राह्मणों को मिली जमीं उन्होंने छीन ली थी वो भी जबरन जो की सही नहीं था क्युकी किसी की जमीं छीन लेना गलत है ।
नेदुजदैयन नाम के पांड्यन वंश के एक अभिलेख से इसकी पुष्टि होती है ।
कलाभ्रस के अंतिम राजा हिंदू बन गए और दुबारा चोल,चेरा और पांड्यन वंश उदय हुआ और दक्षिण में फिरसे हिंदू राज आया ।

जय माँ भारती