Monday, October 10, 2016

सोम उर्जा है न की शराब।

पश्चिमी इतिहासकारों ने जब आर्यों का इतिहास लिखना शुरू किया तब उन्होंने ईरानी ग्रंथो और वेदों में समानता देखि। इसका कारण यह था की ईरानी लोग आर्य ही थे जिन्होंने अपना धर्म त्याग दिया था पर उसके बावजूद उनके नए धर्म में आर्य धर्म के कई अंश बचे हुए थे और उनमे सोम भी है। ईरानी ग्रंथो में सोम को होम कहा गया है जो की किसी वनस्पति का रस था जिसे ईरानी अपने अनुष्ठानो में उपयोग करते थे। ईरानी ग्रंथो यस्न में ही लिखा है कि होम एक वनस्पति है [यस्न १०.५] और यह शराब की तरह मादक है [यस्न १०.८] साथ है होम रस को सबसे पहले यिम के पिता विवान्ह्वंत ने बनाया था [९.४]।

पश्चिमी इतिहासकारों ने इन्ही सब को पढ़ कर कल्पना कर ली कि होम या सोम असल में किसी वनस्पति का रस है जो मादक है। पश्चिम के श्री श्री डेविड अन्थोनी ने अपनी पुस्तक में इसी कल्पना के आधार पर लिखा है कि आर्य यूरेशिया से आकार वक्शु नदी के पास बसे और वक्शु सभ्यता का निर्माण किया। यहाँ आर्य और अनार्य मध्य एशियाई लोगो का मिश्रण हुआ जिस कारण आर्यों ने उन मध्य एशियाई लोगो के कई रीत अपना ली जिनमे सोम रस का सेवन भी शामिल था। अपनी बातों को सिद्ध करने के लिए श्री श्री डेविड जी बताते है कि वक्शु सभ्यता के नगरो में कई जगह ऐसे बर्तन मिले है जिसे सोम अनुष्ठानो के लिए उपयोग किया जाता होगा। श्री श्री वेंडी दोनिगेर जिन्हें पता नहीं संस्कृत में डिग्री कहा से मिल गयी लिखती है कि आर्य शराबी लोग थे और जिन ऋषियों को वेदों का ज्ञान मिला वह असल में सोम रस के नशे और भ्रम के कारण उत्पन हुआ था। [The Hindus: An Alternative History]  

फिर भी यह महाज्ञानी लोग सोम की पहचान करने में असफल रहे। जब इन्हें अपने शोधो से यह पता चल गया कि सोम अनुष्ठानो की उत्पत्ति कहा हुई और किस कदर आर्य ऋषियों को वेद का ज्ञान प्राप्त हुआ तो आप उस वनस्पति की पहचान क्यों न कर सके? आज टेक्नोलॉजी इतनी आगे है प्राचीन काल के बर्तन की खुरचन से या मानव के मॉल से पता चल जाता है की वे क्या खाते थे। तो फिर वक्शु सभ्यता के उन तथाकथित बर्तनों को जिनमे सोम रस रखा जाता था उसका विश्लेषण कर पता क्यों नहीं करते की सोम किस वनस्पति से आया है?

यह इसलिए संभव नहीं है क्युकी पश्चिमी इतिहासकार भी जानते है की उनकी बातें केवल कल्पना मात्र है। सोम असल में वह दिव्य उर्जा है जो सभी जीवो में है। यह उर्जा वृक्ष आदि सूर्य और चन्द्र से प्राप्त करते है और यही उर्जा हमें भोजन में प्राप्त होती है। पुरानो के अनुसार सोम देव या चन्द्र चन्द्र ग्रह और जंगल और जानवरों के पालनहार है। वे ही है जो सूर्य की उर्जा को शीतल कर इस संसार को देते है और हमारा पालन पोषण करते है। ऋग्वेद के ४ मंडल ४० सूक्त के मंत्र २ अनुसार सोम और पूषण अर्थात चन्द्र और सूर्य के कारण इस संसार में अन्धकार गायब हो गया और इन्ही दोनों के कारण फासले अच्छी और गाय पौष्टिक दूध देती है वेदों के अंग्रेजी अनुवाद अनुसार, वही स्वामी दयानंद सरस्वतीजी के अनुसार यहाँ सोम का अर्थ चन्द्र और औषिधि है। 

Sunday, August 21, 2016

मोहनजोदड़ो पर उठाये गए सवालो का उत्तर


ऋतिक रोशन के फ़िल्म आई थी अभी मोहनजोदड़ो नाम की जो सिंधु सभ्यता के नगर मोहनजोदड़ो पर आधारित है। फ़िल्म आई नहीं की स्वघोषित इतिहासकार और अन्य सभी लोग फ़िल्म की आलोचना करने लगे, कहने लगे की फ़िल्म में गलत इतिहास दिखाया गया है। मैं ऋतिक रोशन का प्रशंसक नहीं हु पर जो आरोप इस फ़िल्म पर लगे है उनके विरुद्ध हु। भाई फ़िल्म है यह कोई इतिहास संबंधी डॉक्यूमेंट्री नहीं। फ़िल्म है तो उसमे कुछ भी बताये क्या फरक पड़ता है। अब हॉलीवुड की फ़िल्म 300 ही ले लीजिये, उसमे कई खामिया है पर फिर भी सबने मज़े से देखि, किसी को यवन या ईरान के इतिहास का कुछ पता नहीं और फिर भी देख ली। फ़िल्म में ईरानियो को राक्षसो सा दिखाया,  जो की गलत है पर हमें क्या। लेकिन मोहनजोदड़ो आई तो बन गए इतिहासकार।

अब कुछ आरोपो का मैं खंडन करता हूँ।

1) मोहनजोदड़ो के लोग अहिंसावादी थे पर फ़िल्म में हिंसा के कई दृश्य बताये गए थे।

ऊ: मोहनजोदड़ो या सिंधु सभ्यता के लोग अहिंसावादी नहीं थे। सिंधु सभ्यता के लोगो को अहिंसावादी समझ जाता है क्योंकि सिंधु सभ्यता में आज तक एक में प्रमाण नहीं मिले है युद्ध के या कोई चित्र मिला है युद्ध पर आधारित। पर हमें कुछ प्रमाण मिले है जैसे कि कुछ कंकालो पर निशान मिले है जो हिंसा के प्रमाण थे और उनकी मृत्यु किसी झड़प में हुई थी। साथ ही हमें कई हथियार भी मिले है। कुछ लोगो के अनुसार वे हथियार केवल जानवरो से सुरक्षा के लिए था पर अहिंसावादी व्यक्ति जानवरो पर भी हथियार इस्तेमाल नहीं करेगा। कुछ के अनुसार सिंधु के नगरो में सुरक्षा दीवारे है जो युद्ध से बचाती है। पर यह जरुरी नहीं की सुरक्षा दीवार न होना सिंधु सभ्यता के लोगो को शांतिप्रिय सिद्ध करे। 300 के मुख्य पात्र स्पार्टा नाम के नगर राज्य से थे। स्पार्टा के लोग लड़ाकू और जंगी किस्म के थे पर उनके नगर स्पार्टा में एक भी सुरक्षा दीवार नहीं थी।

2) फ़िल्म में लोगो को हिंदी बोलते हुए बताया गया है वो भी शुद्ध हिंदी जिसमे कई संस्कृत शब्द है और मोहनजोदड़ो के लोग आर्य भाषा नहीं बोलते थे।

ऊ: भाई जब फ़िल्म हिंदी बोलने वाले लोगो के लिए है तो किरदार हिंदी में ही बोलेंगे न और चुकी फ़िल्म प्राचीन काल पर आधारित है तो शुद्ध हिंदी का प्रयोग होगा ही। अब मोहनजोदड़ो के लोग कोनसी भाषा बोलते थे इस बारे में पता नहीं इसीलिए केवल हिंदी का प्रयोग हुआ है। यदि हमें मोहनजोदड़ो की प्राचीन भाषा क्व बारे पता चल भी जाये तो पूरी फ़िल्म उस भाषा में तो बना नहीं सकते क्योंकि आम जनता को वह समझ आएगी नहीं। और हमें यह भी नहीं पता की मोहनजोदड़ो के लोगो की भाषा ईरानी एलामि भाषा से संभंधित थी या आर्य भाषाओ से, तो यह कहना की मोहनजोदड़ो के लोग गैर-आर्य भाषा बोलते थे गलत है।

3) मोहनजोदड़ो फ़िल्म में नायिका और अन्य किरदारों को जो वस्त्र दिए है वैसे वस्त्र मोहनजोदड़ो के लोग पहनते ही नहीं थे।

ऊ: इस बारे में सेंट ज़ेवियर कॉलेज की एक इतिहास की प्रोफेसर ने कहा था कि सिंधु सभ्यता की लोग फ़िल्म में दिखाए गए जैसी वस्त्र पहनते ही नहीं थे अपितु मोहनजोदड़ो से प्राप्त मूर्तियो में महिलाएं नग्न दिखाई गयी है केवल आभूषणों से उनके कुछ अंग ढके हुए है। तो हम यह मान ले की सिंधु सभ्यता में लोग नग्न ही घूमते थे? भाई में पंजाब गया हु, रात में जो ठण्ड लगती है उसमे 2 कम्बल भी कम लगते है और यहाँ यह लोग हमें बता रहे है की सिंधु सभ्यता के लोग ठण्ड में भी नग्न घूमते थे। मूर्तियो में लोगो को नग्न बताने का अर्थ यह नहीं की मोहनजोदड़ो के लोग सच में नग्न घूमते थे। अब यवन में भी कई मुर्तिया नग्न ही है पर यवनी कपड़े पहनते थे। साथ ही सिंधु सभ्यता के लोग कपास भी उगाते थे जो वस्त्र बनाने में काम आता है तो उस कपास से वे वस्त्र बनाते ही होंगे। हैम ठीक से जानते नहीं है उस काल की वेश भूषा क्या थी इसलिए फ़िल्म में कुछ भी बता दिया, अब क्या फ़िल्म की नायिका को नग्न दिखाएंगे फ़िल्म में क्योंकि हमें वस्त्र के अधिक प्रमाण नहीं मिले?

4) मोहनजोदड़ो फ़िल्म में अश्व को दिखाया गया है जब कि अश्व उस समय भारत में थे ही नहीं।

ऊ: भारत में अश्व के एक पूर्वज के अवशेष मिले है जो 70 हज़ार वर्ष पुराने है और सिंधु सभ्यता के एक नगर लोथल में अश्व के प्रमाण मिले है करीब 2000 ईसापूर्व के आसपास के। तो यह कहना की भारत में उस समय अश्व थे ही नहीं बिलकुल गलत है। फ़िल्म के अनुसार वह फ़िल्म 2016 ईसापूर्व के मोहनजोदड़ो पर है जो कि लोथल में मिले घोड़े के प्रमाणों के आसपास ही है। लोथल मोहनजोदड़ो के काफी दक्षिण में है। यदि इतने दक्षिण में घोड़े पहोच गए तो मोहनजोदड़ो में क्यों नहीं?शायद सिंधु सभ्यता के लोगो ने अश्व पालना बादमे शुरू किया जिसका अर्थ यह नहीं की भारत में अश्व थे ही नहीं। अब विश्वप्रसिद्ध एकसिंघे या Unicorn को ही ले लीजिये जो सिंधु सभ्यता में काफी प्रसिद्ध था। हम जानते है की एकसिंघा जैसा कोई जिव नहीं है और नाही उसके प्रमाण है फिर भी सिंधु सभ्यता के लोगो ने उसे अपने कलाकृतियों में बताया। जरुरी नहीं की सिंधु सभ्यता के लोगो ने जो अपनी कलाकृतियों में दिखाया हो वह सही हो।

5) मोहनजोदड़ो फ़िल्म का खलनायक जो है वो राजा या नेता है पर इस बात का कोई प्रमाण नहीं कि वहा कोई राजा या नेता राज करता था।

उ: इस सवाल में ही उत्तर है। हमें नहीं पता कि मोहनजोदड़ो नगर की व्यवस्था कैसी थी और न ही उसके अधिक प्रमाण है। क्योंकि मैं पहले भी बता चूका हूँ कि यह केवल एक फ़िल्म है जो काल्पनिक कहानी पर आधारित है तो इसमें सही इतिहास की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उद्धरण के लिए फ़िल्म 300, इस फ़िल्म में स्पार्टा नगर राज्य का केवल एक ही राजा, राजा लियोनाइदास ही दिखाया गया है पर सच यह है की स्पार्टा के 2 अलग अलग राजा होते थे अलग अलग राजवंश के जो साथ मिलकर राज करते थे। पर फ़िल्म में दूसरा राजा गायब है। तब क्यों किसी ने सवाल नहीं उठाये?
क्योंकि भाई फ़िल्म है
जयादा दिमाग मत लगाओ।

जय माँ भारती

Friday, May 20, 2016

आर्य आक्रमण सिधांत का अंत

अंग्रजो के भारत में आने के बाद उन्होंने अपने संस्कृत वाहियाद ज्ञान के बदोलत एक ऐसा इतिहास खड़ा किया जो 200 वर्षो से अधिक तक रहा और भारतीयों को खुदको विदेशी समझने पर मजबूर करता रहा। अंग्रेजो ने वेदों और उपनिषदों के अपने कम ज्ञान के कारण न जाने क्या क्या गप्प रचे। आर्यों को यूरोपीय साबित कर दिया, आर्यों को असभ्य और जंगली बना दिया, आर्यों को मांसाहारी बना दिया और तो और आर्यों को क्रूर और बर्बर लूटेरे बना दिया जिन्होंने भारत के मूल लोगो पर अत्याचार किये।
यूरोपीय  द्वारा आर्यों का अपमान 

पर भला असभ्य और जंगली लोग भारत के मूल लोगो को कैसे हरा सकते है जो उनसे अधिक सभ्य और व्यवस्तिथ थी। यह बात पुराणी हो चुकी है की सिन्धु घाटी के लोग शांतिप्रिय लोग थे और उनके पास हथियार, फ़ौज और घोड़े नहीं थे जिस कारण वे आर्यों से हारे। यदि आप यूरोपीय गप्प जैसे दशाराज्ञ युद्ध  और अन्य काल्पनिक युद्ध पढ़े, जो कि यूरोपियो द्वारा निर्मित और वेदों में गुशैड़ी हुई गप्प है, उसमे आर्यों के अलावा दास या अन्य गैर आर्यों राजाओ के पास सेना, हथियार और घोड़े बताए गए है। दास और अन्य गैर आर्य राजा जिन्हें पश्चिमी विद्वान अक्सर सिन्धु घाटी के लोगो से जोड़ते है उनके पास हथियार, फ़ौज और घोड़े कहा से आये? जबकि इनका खुदका यह कहना है कि सिन्धु घाटी के लोग शांतिप्रिय थे। और दशाराज्ञ युद्ध गप्प से तो लगता है आर्य और अनार्य लोगो में ज्यादा अंतर नहीं था। 

अमेरिका के विद्वान रिचर्ड एच. मीडो शांतिप्रिय सिन्धु घाटी मिथ्या पर कहते है:-

"विश्व में आज तक ऐसी कोई सभ्यता नहीं हुई जिसमे किसी प्रकार की हिंसा या झड़प न रही हो। पहले माया सभ्यता या मध्य अमेरिकी सभ्यता को भी शांतिप्रिय माना जाता था। जब उनके लेखो को पढ़ा गया और उनके जीवाश्मो की जाच हुई तो पता चला की बात कुछ और ही है और यह बिना किसी आधार के है। सिन्धु घाटी के मामले में हमारे अधिक सबूत नहीं है जैसे की उनकी भाषा का ज्ञान और चित्र। खड़ी  फौजे तो आज के युग की दें है, पहले लड़ाईया लूट के मकसद से या समय अनुसार तय किये जाते थे। प्रारंभिक युद्ध तालाब और ज़मीन के लिए आपसी लड़ाईया रही होंगी जो राजा और सरदारों द्वारा लड़े जाते थे। विश्व का पहला साम्राज्य  अक्कदी  साम्राज्य ने अपने सभी पड़ोसी राज्यों को जीता था जो अधिकतर दीवार द्वारा सुरक्षित होती थी तो दीवार होना कोई मायने नहीं रखता। यहाँ मुश्किल यह है है कि हमें सिन्धु घाटी के लोगो के बारे में अधिक ज्ञान नहीं है जितना अन्य सभ्यताओ के बारे में है। सिन्धु घाटी से हमें ताम्बे और मिश्रित धातुओ के हथियार प्राप्त हुए है और एक छवि में एक पुरुष के हाथ में भाला दिखाया गया हैजिससे वह एक सांड को मार रहा है।"
सिन्धु घाटी से प्राप्त हथियार

आर्य असभ्य तो बिलकुल नहीं थे, यदि वे होते तो वेदों का ज्ञान कैसे संझोते? वेदों में राजा और राष्ट्र का उल्लेख है जो बताता है की आर्य काफी सभ्य थे और उनके राज्य भी थे। यदि आर्य कबीलाई और जंगली होते तो फिर उनके ग्रंथो में राष्ट्र शब्द क्यों है जिसका अर्थ देश है जबकि कबीलाई लोग छोटे छोटे कबीलों में रहते है। 


आज अमेरिका सहित कई अन्य देशो में आर्य आक्रमण सिधांत को हटाकर सिन्धु घाटी के पतन का कारण प्राकृतिक विपदा कर दिया गया है इतिहास की पुस्तकों में। पर फिर भी आर्यों को विदेशी ह कहा गया है और एक नया सिधांत आर्य प्रवास सिधांत बना दिया गया  है।

Thursday, January 21, 2016

पाणिनि का समयकाल

इंटरनेट पर कई लोग मिल जाएँगे जो कई तरह की उल जलूल बातें करते है। मैं भी एक सज्जन से मिला जिनके अनुसार संस्कृत यूनानी भाषा का Lingua Franca है और पाणिनि जी ने यूनानी भाषा के प्रभाव में आकर सस्कृत व्याकरण लिखा। वे सज्जन एक स्वघोषित इतिहासकार है और उनका कहना है की वे श्वेत यूरोपीय इतिहासकारो के झूठे इतिहास की पोल खोलते है और अश्वेत लोगो का सच्चा इतिहास बताते है, क्योंकि वे सज्जन एक अफ़्रीकी अमेरिकन है इसलिए वे अश्वेत लोगो के इतिहास का गौरवपूर्ण सच बताने की कोशिश  करते है।

उनका कहना था की हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार का कोई अस्तित्व ही नहीं और यह केवल यूरोपीय इतिहासकारो का झूठ है ताकि वे श्वेत आर्य नस्ल की महानता बता सके। उनके अनुसार संस्कृत और यूनानी भाषा और अन्य दूसरी यूरोपिय भाषाओ में इतनी समानताए इसलिए है क्योंकि पाणिनि ने यूनानी भाषा का अध्यन कर संस्कृत में कई परिवर्तन किये और बाद में संस्कृत पुरे भारत में फैली। उनके अनुसार तो संस्कृत का 500 ईसापूर्व से पहले अस्तित्व ही नहीं था और वेद भी इस काल से पहले लिखे नहीं गए थे। उन सज्जन का यह सिद्धान्त केवल एक ही बात पर टिका हुआ था, वह था की पाणिनिजी ने अष्टाध्यायी में "यवनानि" शब्द मिला है जिसका अर्थ ज्यादातर विद्धवान बताते है "यवनो की लिपि" या "यवनी स्त्री"। महर्षि पतंजलि ने यवनानि शब्द का अर्थ "यवनो की लिपि" बताया है, तो मैं भी इसी बात के साथ चलता हु।
चुकी पाणिनिजी तक्षिला में ज्ञानप्राप्ति के लिए गए थे और तक्षिला में विश्वभर से लोग आते थे तो शायद पाणिनिजी को किसी यवनी से ही उनकी लिपि के बारे में पता चला होगा।

चुकी मैं भी पश्चिमी इतिहासकारो के इतिहास पर विश्वास नहीं रखता तो मैंने सोचा की इन साहब की बातें सुन कर देख लेते है।
उन सज्जन ने एक वीडियो बनाया था जिसके अनुसार गांधार में यवनो का शासन था, तब पाणिनि जी ने उनसे उनका व्याकरण सीखा और उसका उपयोग अष्टाध्यायी की रचना के लिए किया।

वीडियो शुरू हुए 1 मिनट भी नहीं हुआ था की मैंने वीडियो रोका और उन साहब से पूछा: " पाणिनि जी के काल में यवनी भारत में थे ही नहीं, वे तो बाद में आये थे सिकंदर के आने के बाद।"
मैंने वीडियो देखना शुरू किया तो उसमे आया की पाणिनि जी ने अष्टाध्यायी में यवनानि शब्द का उपयोग किया है, साथ ही पाणिनि से पहले सस्कृत का कुछ अता पता ही था, वह तो Lingua Franca था। Lingua Franca उस भाषा को कहते है जो दो व्यक्तियो के लिए वार्तालाप के उपयोग में आता है जब वे दोनों एक दूसरे की भाषा समझ नहीं सकते, उधारण: अंग्रेजी ।

अगले दिन उन साहब का रिप्लाय आया, उन्होंने कहा: "यवनी पाणिनि से पहले से गांधार में रह रहे थे। फारसियों ने गांधार विजय के बाद वहा यवनियो को बसाया था।"

तो मैंने रिप्लाय किया: " यवनी तो फारसियों के दुश्मन थे तो वे अपने ही दुश्मन को अपने ही राज्य में क्यों बसाएंगे?

तो वे महाशय बोले: "तुम्हे किसी चीज़ का ज्ञान नहीं है वगेरा वगेरा।"

तो मैंने उन्हें लिखा: "आपको ही किसी चीज़ का ज्ञान नहीं है, आप केवल नस्लवाद फैला रहे है और अश्वेतों का झूठा इतिहास फैला रहे है। किसी भी फ़ारसी लेख में इस बात का ज़िक्र नहीं है की उन्होंने यूनानियो को गांधार में बसाया था। पाणिनि ने यह बात कही नहीं कही है की उन्होंने यवनो से ज्ञान प्राप्त किया है और तब संस्कृत का निर्माण किया। पाणिनि महाजनपदों का उल्लेख किया है पर किसी यवन देश का नहीं, उन्होंने सिंधु घंटी में लगभग 500 गाँवो का उल्लेख किया है पर किसी भी यवनी बस्ती का नहीं। सिकंदर के इतिहासकारो ने भारत में किसी यवन बस्ती का उल्लेख नहीं किया।( प्लुटार्च ने लिखा था की भारत में यवनो की कुछ बस्तिया थी जब सिकंदर वहा आया था, पर प्लुटार्च सिकंदर के मारने के लगभग 300 वर्ष बाद पैदा हुआ था तो उसकी बातों को सही नहीं मान सकते।)"

तब उनका रिप्लाय आया: "मैंने कब कहा की पाणिनि ने सस्कृत का निर्माण किया है, मैंने कहा की पाणिनि ने यूनानी भाषा से ससंस्कृत व्याकरण का निर्माण किया।"

मैंने जवाब दिया: "पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण का निर्माण नहीं किया अपितु उसमे कई सुधार किये। पाणिनि से पहले कई वैयाकरण हुए जैसे की यास्क आदि, तो यह कहना की पाणिनि ने संस्कृत के व्याकरण का निर्माण किया यह गलत है।" (यह महाशय अपने वीडियो में कह चुके है की पाणिनि ने संस्कृत का निर्माण किया पर बाद में पलट गए।)

उनका जवाब: "मैंने यह नहीं कहा की संस्कृत व्याकरण का निर्माण पाणिनि ने किया( यह व्यक्ति दुबारा से पलट गया), मैंने कहा उन्होंने यवनी व्याकरण का उपयोग संस्कृत में किया। और संस्कृत का 500 ईसापूर्व से पहले कोई अस्तित्व ही नहीं था और नाही इसका कोई साबुत है।"

मैंने जवाब दिया: "भाई यहाँ बात यवनी भाषा की हो रही है और आप संस्कृत पर आ टपके, पर आपकी कही बात गलत है। मित्तानि साम्राज्य और हित्तिते साम्राज्य के बिच में हुए संधि पत्र में इंद्र,वरुण,अग्नि आदि देवो का उल्लेख है जो सिद्ध करता है की संस्कृत 1500 उसपूर्व से भी पुरानी है।"

मैं एक के बाद एक जवाब दिए जा रहा था और उसके नसलवादि सिद्धान्तों की धज्जिया उड़ा रहा था।वह इतना तिलमिलिया की उसके अगले जवाब में उसका गुस्सा नज़र आ रहा था।

उसने भेजा: "आर्य नस्ल के लोग 1000 ईसापूर्व पहले भारत आये थे और उन्होंने द्रविड़ों के नगरो को ध्वस्त कर दिया था। भारतीय पुरातत्वशास्त्री बी.बी.लाल ने भी कहा है की आर्य भूरे मृद्भांड संस्कृति( Painted Grey Ware Culture) से तालुक रखते थे। साबित करो संस्कृत 4000 ईसापूर्व पुरानी है।"

मैं समझ गया की यह बंदा बात पलटने की कोशिश कर रहा है, मैंने उसे लिख भेजा: " भाई मैंने कब दावा किया की संस्कृत 4000 ईसापूर्व पुरानी है जो में साबित करू। मैं तुम्हे कई सबूत दे चूका हु की तुम्हारी बातें गलत है और वे केवल नस्लवादी है। तुम मुझे सबूत अपने सिद्धान्त को सिद्ध करने के लिए।"

उनका जवाब: "पाणिनि ने अष्टाध्यायी में यवनानि शब्द का उपयोग किया है।"

यह पड़कर मुझे काफी गुस्सा आया। मैं पहले ही साबित कर चूका था की यवनी पाणिनि के काल में थे ही नहीं फिर भी यह मुर्ख उसी बात पर टिक हुआ है। मैंने फैसला किया की मैं अब इसे उत्तर नहीं दूंगा क्योंकि मैं इसके सवालो के जवाब दे चूका हु और दुबारा देकर क्या फायदा जब इस व्यक्ति के मस्तिक्ष में कुछ जाये ही नहीं। यह व्यक्ति अपने काल्पनिक दुनिया में रहता है और मेरे समझाने का इसपर कोई असर नहीं होगा।

जय माँ भारती।