Saturday, December 21, 2013

लोकतंत्र की उत्पत्ति (Origins of Democracy )

लोकतंत्र की उत्पत्ति कहा हुई थी ??
इस सवाल का जवाब हमें यूनान बताया गया था पर सच तो यह है की लोकतंत्र भारत में तबसे है जब यूनानी जंगलो में रहते थे ।
कई भारतीय विद्वानों ने कहा की लोकतंत्र की उत्पत्ति भारत में हुई पर इसे हिंदू राष्ट्रवादी सोच कहकर नकार दिया गया ।
अच्छा
यूरोपियन कहते है की कैलेंडर की खोज उन्होंने की ,पहिये की खोज उन्होंने की ,खाने में मसाले का उपयोग भी उन्होंने किया वगेरा वगेरा
वाह रे यूरोपियो
तुम करो तो खोज
और हम करे तो हिंदुत्व की बड़ाई
क्या है की भारत में पुरातात्विक खोज ज्यादा नहीं होती और न ही भारत पुरातत्व से जुड़े कामो में आगे है ,जिस दिन पुरातत्व से जुड़े कामो में भारत आगे बढेगा उस दिन सच सामने आ जायेंगा ।

अब टॉपिक पर आते है
लोकतंत्र राजतंत्र या राजशाही से भी पुराना है ,जब मानव कबीलों में रहते थे तबसे है जबकि राजशाही 5000 ईसापूर्व में शुरू हुआ ।
कबीलों में जो शिकार में माहिर होता उसे ही मुखिया बनाया जाता ,यह एक तरह से लोकतंत्र ही था जिसमे लोग अपने सरदार को चुनते ।

पहले यूनानी लोकतंत्र और भारतीय लोकतंत्र में फरक जान लेते है ।

नी लोकतंत्र
यूनान में लोकतंत्र 500 ईसापूर्व मे शुरू हुआ था और सिकंदर के काल में वहा लोकतंत्र का अंत हुआ।
आज के लोकतंत्र मे नेताओ को चुना जाता है पर प्राचीन यूनान मे चुनाव कुछ खास मुद्दों के लिए होते थे जैसे युद्ध करना चाहिए ?निर्माण कार्य होना चाहिए या नहीं और राज्य चलाने के लिए कुछ खास फैसले होते ।यूनान में सिटीजन और स्लेव यानि गुलाम ऐसे 2 भागो में लोगो को बाटा जाता था ,गुलाम अक्सर दुसरे देश या नगर के होते और सिटीजन के मुकाबले वे अधिक थे ,सिटीजन उसी नगर के मूल लोग होते थे ,यूनान के लोकतंत्र में केवल सिटीजन ही वोट कर सकते ,महिला या गुलाम नहीं यानि 20% लोग ही वोट कर सकते थे ।
यूनान में अरिस्तोतल और सोक्रेत जैसे कई विद्वान हुए जो लोकतंत्र के विरोधी थे और मानते थे की लोकतंत्र भ्रष्ट लोगो के हाथ है ।

भारतीय लोकतंत्र
लोकतंत्र भारत मे नहीं बल्कि पुरे भारतीय उपमहाद्वीप पर एक साथ फला फुला ।
ऋग्वेद में सभा और समिति का जीकर है जिसमे राजा मंत्रियो और विद्वानों से सलाह मशवरा किया करते और फैसले लेते ।
महाभारत में युधिष्ठिर बताते है की संघ या गणराज्य की शक्ति होती है उसके लोगो की एकता ,एक बार एकता टूटी तो गणराज्य का अंत ।
वैशाली के पहले राजा विशाल को भी चुनाव द्वारा चुना गया था ।
पाणिनि ने भी गणराज्यो का जीकर किया है ।
बोद्ध और जैन ग्रंथ गणराज्य का उल्लेख करते है ।
इन सबूतों के आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप में लोकतंत्र 3000 ईसापूर्व पुराना है और अगर पुरातात्विक साबुत देखे तो 700-600 ईसापूर्व जो यूनान से पहले का ही है ।
चाणक्य अर्थशास्त्र में लिखते है की गणराज्य 2 तरह के होते है ,पहला अयुध्य गणराज्य यानि की ऐसा गणराज्य जिसमे केवल क्षत्रिय ही फैसले लेते है ,दूसरा है श्रेणी गणराज्य जिसमे हर कोई भाग ले सकता है ।
यूनानी लोकतंत्र से कई गुना बेहतर था भारतीय लोकतंत्र ।
योधेय गणराज्य में 5000 राजा होते जिन्हें लोग ही चुनते और वे राज्य सँभालते थे ,लिच्छवी गणराज्य जो नेपाल और बिहार में था वह प्राचीन काल का सबसे शक्तिशाली गणराज्य था ,उसमे 7707 राजा थे ।
कहते है की सम्राट अजातशत्रु को लिच्चावियो को हराने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ा ।
अजातशत्रु से युद्ध से पहले लिछावियो ने सभा बुलाई थी ।
कई यूनानी इतिहासकार जो भारत आए थे वे भी गणराज्य और संघ का जीकर करते है ।

यूरोपी विद्वानों के सवाल के जवा

यूरोपियन प्राचीन भारतीय लोकतंत्र में खोट निकालते है की भारतीय लोकतंत्र पूरी तरह से लोकतंत्र नहीं ,जातिवाद के कारण हर एक को चुनाव का हक्क नहीं ।
साथ ही चुनाव आदि का उल्लेख है पर चुनाव से जुड़े लोगो के हक्को का वर्णन नहीं ।
यह कमी तो यूनानी लोकतंत्र की भी है ,क्या वह लोकतंत्र नहीं ??
यूरोपियन कई बात अनदेखी कर रहे है साथ ही जिन ग्रंथो का यूरोपियन उल्लेख कर रहे है जैसे अर्थशास्त्र और मनुस्मृति उनके कुछ भाग बाद में जोड़े गए वो भी तब जब राजतंत्र था ।
पहले बता दू की जातिवाद का प्राचीन भारत के लोकतंत्र से कोई लेना देना नहीं ।
कहते है की शाक्य गणराज्य ने कोलियो पर हमला किया था ,युद्ध से पहले सभा में बात चित हुई थी और बहुमत युद्ध को मिला ,फिर पुरे शाक्य गणराज्य में घोषणा हुई की जितने भी युवक 20 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र वाले है वे युद्ध के लिए तैयार हो जाये ,यानि हर वर्ग या वर्ण के लोगो को युद्ध में भाग लेने के लिए कहा था ।
जब कोशल ने शाक्य गणराज्य पर हमला किया था तब भी शाक्यो ने सभा बुलाई थी ,कोशल ने सीधे कपिलवस्तु पर हमला किया था और तब हर स्त्री पुरुष ने मिलकर कोशल के सेनिको से युद्ध किया था ।
नन्द और चन्द्रगुप्त मौर्य दासीपुत्र थे पर फिर भी उन्होंने राज किया ,तब कहा गया जातिवाद ??
सिंधु नदी किनारे शूद्रक नाम का गणराज्य था जिसे महाभारत का शुद्र राज्य कहा जाता है ,उसने भी सिकंदर से युद्ध किया था ,कहा है जातिवाद ??
अग्रेय गणराज्य ने भी सिकंदर से युद्ध किया था ,कहते है यही अग्रवाल समुदाय की उत्पत्ति हुई थी और अग्रवाल बनिए होते है यानि वैश्य वर्ण से ,यानी उनका भी गणराज्य था ।
इसमें जातिवाद कहा है ??
सम्राट अशोक ने करुवाकी से शादी की थी जो मच्वारे की लड़की थी ,देवी से शादी की जो वैश्य वर्ण से थी ,अशोक ने भी वर्ण या जाती अनुसार विवाह नहीं किया था यानि उस समय जातिवाद नहीं था ।
यूनान में स्त्रियों को वोट देने का हक्क नहीं था पर भारत में था ।कलिंग को भी एक गणराज्य कहा गया है और कलिंग युद्ध के वक़्त कलिंग के लोगो ने पद्मावती को अपनी रानी चुना था ताकि वह नेतृत्व कर सके युद्ध में ,साथ में कलिंग युद्ध में स्त्रीयों ने भी भाग लिया था ।
पद्मावती भी कलिंग के सभा की सदस्य थी और उसे भी वोट देने का हक्क था ।
यूरोपियन इन तथ्यों को क्यों अनदेखा करते है ??

इन सबूतों से पता चलता है की गणराज्यो में जातिवाद नहीं था और महिलाओ को भी समान हक्क था ।

जय माँ भारती

Monday, December 9, 2013

शव जलाना या दफनाना ??( Cremation or Burials ??)

अजीब बात है मित्रो की हमें सिखाया जाता है की भारतीयों ने शवो को जलाना 1600 ईसापूर्व के करीब शुरू  किया  ,तो उससे पूर्व लोग क्या करते थे शवो के साथ ??
इस सवाल का जवाब शायद ही मिलेगा ।
सिंधु सरस्वती सभ्यता के लोग अपने शवो के साथ क्या करते थे ???
इस प्रश्न का जवाब केवल कुछ ही लोग देते है और उनकी राय है की सिंधु सरस्वती के लोग अपने शव दफनाते थे ।
मैंने इसपर शोध की और पाया की हड़प्पा नगर में 30 हज़ार लोग रहते थे और वहा केवल 100 ही कब्र मिले है ,हड़प्पा में लोग लगभग 800 वर्षो तक रहे यानि कई पीड़िया पर फिर भी केवल 100 ही कब्रे ??
तो हजारो अन्य शवो का क्या हुआ ??
इसका उत्तर कुछ समझदार व्यक्ति देते है की सिंधु सरस्वती के लोग अपने शवो को जलाते थे ,इसका सबूत यह है की लोथल में शवो को जलाने के सबूत है ।
कुछ विद्वान कहते है की भारत ,पाकिस्तान और अफगान में कई कब्रिस्तान मिले है जो सिंधु सरस्वती सभ्यता से ताल्लुक रखते है ।
हाल ही में उत्तरप्रदेश में मेरठ और बागपत जिले में कई कब्रे मिली है पर वे उत्तर हड़प्पा काल (Late Harappan Period) के है ,कुछ विद्वान मानते थे की हड़प्पा के लोग दफनाते थे बजाए जलाने ,वे असल में शवो को नगरो के पास नहीं दफनाते थे बल्कि दूर कब्रिस्तानो में दफनाते थे और बागपत में मिले कब्र असल में कब्रिस्तान थे सिंधु सरस्वती सभ्यता के ।
पर एक सवाल है जो हमेशा उठता है की सिंधु सरस्वती सभ्यता में 50 लाख तक लोग रहते थे पर इन 90 सालो में जबसे हड़प्पा की खोज हुई है तबसे काफी कम कब्र मिले है जन संख्या के अनुपात में ।
हाल ही में मोहनजोदड़ो में एक शोध से पता चला है की मोहनजोदड़ो में भी 100 के आस पास कब्र मिले है और अधिकतर शव मोहनजोदड़ो के मूल लोगो के नहीं वे आस पास के नगर ,उत्तर पाकिस्तान और ईरान आदि देशो के व्यापारियों के है ,मोहनजोदड़ो में कई कब्रों में विदेशि व्यापारियों के साथ मोहनजोदड़ो की मूल औरतों के शव मिले है जो उन व्यापारियों की पत्नीया होंगी ।
इससे साफ़ होता है की केवल 10% ही हड़प्पा के लोग खुदके शव दफनाते जो विदेशी होते और वही के मूल लोग जिन्होंने जलाने के बजाए दफ़न होना पसंद किया हो ।
कुछ विद्वान मानते है की वे शव अमीरों के होंगे ,आम आदमी अपने शव जालाते होंगे ।
अंग्रेजो द्वारा वेदों के अनुवाद से हमें पता चलता है की वेदों में दफ़नाने और शव जलाने का जीकर है ।
इससे यह पता चलता है की सिंधु सरस्वती के लोग हिन्दू थे ।
साथ ही कई कब्रे हिन्दू परंपरा अनुसार है जो उन्हें पूरी तरह से हिन्दू साबित करती है ।
लोथल में शव जलाने के सबूत बताते है की शवो को हिन्दू परंपरा अनुसार जलाया जाता था ।
बल्थल जो आहार बसन संस्कृति (Ahar Basan Culture) का भाग था वहा 2000 ईसापूर्व पुराना एक शव मिला पद्मासन में जो समाधी का सबूत है (तस्वीर देखे)
समाधी भी हिन्दू होने का सबूत है ।

तो हमें यह पता चलता है की 90% सिंधु सरस्वती सभ्यता के लोग खुदके शव जलाते वो भी हिन्दू परंपरा अनुसार ।
जिन लोगो के शव मिले है उनमे अधिकतर विदेशी व्यापारी थे ।
भारत में शव जलाने की परंपरा 7000 ईसापूर्व से शुरू होती है ।

जय माँ भारती