Saturday, March 7, 2015

गौतम बुद्ध का काल ( Date of Gautam Buddha)

नेपाल में लुम्बिनी में 2013 में पुरातत्वविदो को एक छोटा मंदिर मिला है जिसकी छत नहीं थी और उसके मध्य में बोधि वृक्ष था ।
पुरातत्वविदो के अनुसार कार्बन डेटिंग से उस मंदिर के निर्माण का काल 550 ईसापूर्व आया है ,यानि की विश्व का सबसे प्राचीन बोध मंदिर ।
माना जाता था की पुरे भारतीय उप महाद्वीप पर बोद्ध मंदिर और मठो का निर्माण गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद बने थे ।
अजातशत्रु और सम्राट अशोक ने गौतम बुद्ध के निर्वाण प्राप्ति के बाद कई मंदिर बनवाये थे और गुप्त राजाओ ने भी इसमें अपना योगदान दिया था ।
मध्यधारा के इतिहासकार मानते है कि 480 ईसापूर्व में गौतम बुद्ध जन्मे थे और कुछ के अनुसार 560 ईसापूर्व ।पर यदि उस मंदिर का काल 550 ईसापूर्व है तो या तो वह मंदिर गौतम बुद्ध के जीवित रहते बना या फिर उनकी मृत्यु के बाद ।
बोद्ध ग्रंथो के अनुसार तो बोद्ध मंदिर और मठ तो गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद हुआ और यह मैं पहले ही बता चूका हु यानि कि गौतम बुद्ध जन्मे होंगे 630 ईसापूर्व में । गौतम बुद्ध 80 वर्ष जिए तो यदि उनकी मृत्यु 550 ईसापूर्व के आस पास हुई तो 550+80 होगा 630 ।

मैं पुराणों में वर्णित गौतम बुद्ध के जन्म काल को मानता हु जो कि है 1800 ईसापूर्व ।
यह पोस्ट कर मैं यह बताना चाहता हु कि पश्चिमी मान्यता गौतम बुद्ध को लेकर और भारतीय सभ्यता को लेकर काफी गलत है ।

अब शुरू होती है असली गड़बड़

बोद्ध ग्रंथो के अनुसार गौतम बुद्ध की मृत्यु के 218 वर्ष बाद अशोक मौर्य का राज्याभिषेक हुआ था और पश्चिमी मान्यता अनुसार अशोक का राज्याभिषेक 268 ईसापूर्व में हुआ ।
यानि कि यदि गौतम बुद्ध कि मृत्यु 550 ईसापूर्व में हुई तो अशोक का राज्याभिषेक 332 ईसापूर्व में हुआ । साथ ही अशोक जब सम्राट बना तो उसके चार वर्ष बाद उसका राज्याभिषेक हुआ था अर्थात अशोक 336 ईसापूर्व में मगध के सिंहासन पर बैठा ।

अब बड़ी गड़बड़ यह है कि सिकंदर ने भारत पर आक्रमण 326 ईसापूर्व में किया तो उस समय भारत पर शासन करने वाला सम्राट नन्द न होकर अशोक था । सिकंदर को तब भारत के सम्राट के बारे में बताया जाता है कि भारत का सम्राट एक निर्दयी और क्रूर सम्राट है और प्रजा में अप्रिय भी है । अब कुछ लोग कहेंगे कि कलिंग युद्ध से पूर्व अशोक एक क्रूर शासक था और प्रजा उसे चंदाशोक कहती थी पर यह गलत है ।
अशोक का साम्राज्य ईरान तक था न कि आज के राजस्थान तक जैसा कि यूनानी लेख कहते है ।
अब या तो पश्चिमी विद्वानों की तिथिया गलत है या फिर सिकंदर कभी भारत तक आया ही नहीं ,बस केवल ईरान तक पहोचकर वापस चला गया अशोक के बारे में सुनकर। और यवनी अपने देवता रूपी सम्राट की हार देख नहीं पाए और झेलम नदी के युद्ध की कहानी गड़ दी ,ऐसे तो सिकंदर के सिक्के आज तक कभी भारत में या सिंधु घाटी में मिले नहीं आज तक ।

यह तो तय है कि पश्चिमी विद्वानों को भारतीय उप  महाद्वीप का इतिहास दुबारा लिखना पड़ेगा अब ।

जय माँ भारती ।