Wednesday, April 24, 2013

क्यों है शिव पारवती की जोड़ी सफल

By Aman
आपने लोगो को कहते सुना ही होगा की जोड़ी हो तो शिव पारवती जैसी। हिंदुत्व में शिव पारवती सफल पति पत्नी का प्रतिक है ।
पर कभी कभी मैं सोचता हु ऐसा क्यों ।
इसका उत्तर मुझे विज्ञान से मिला।
आपने वह तस्वीर तो देखि ही होगी जिसमे शिव का दाया शारीर और पारवती का बाया शारीर मिल कर एक शारीर बनता है।
यही है मेरा उत्तर।
विज्ञानं कहता है की मनुष्य के दो दिमाग होते है पर एक दुसरे से जुड़े हुए।
जिस तरफ के दिमाग का प्रभुत्व ज्यादा हो उसी के आधार पर मनुष्य का चरित्र तय होता है।
दाया दिमाग कला,साहित्य के लिए होता है। इस दिमाग के प्रभुत्व वाले आदमी को समाज का ज्यादा भय नहीं होता।वह बेखोफ होता है ।जैसे भगवन शिव ।वे प्रेतों के साथ रहते है और मानव समाज के अनुसार नहीं रहते नाही दुसरे देवताओ की तरह सज धज के।
अब बाया दिमाग गणित या विज्ञानं के लिए होता है।
इस दिमाग के प्रभुत्व वाले मनुष्य समाज अदि के अनुसार जीते है। यदि आप उन्हें कुछ बताये तो वे पहले सोच विचार के ही उसे मानेंगे।
बाया दिमाग पारवती को दर्शाता है ।पारवती शिव से उलट ज्यादा सामाजिक है। वे एक पतिव्रता स्त्री है और हर कार्य में निपूर्ण है। घर घ्राहस्ती भली बहती सभाल सकती है।
यदि आप निचे दिए गए चित्र को देखे तो शिव दाए ओर है और पारवती बाए ओर।
यदि विवाह हो रहा हो तो युवक हमेशा दाए दिमाग का हो और युवती बाए दिमाग के प्रभुत्व वाली। यही जोड़ी सर्वोतम है।
चलिए आपको आसन भाषा में समझाता हु।
यदि दो चुम्बक हो और आप उन दोनों का उत्तरी भाग या दक्षिणी भाग मिलाये तो वे एक दुसरे को धकेल देंगे।
यदि आप उत्तरी भाग और दक्षिणी भाग मिलाये तो जुड़ जायेंगे।
यही सिधांत यहाँ भी लागु होता है।
पति हमेशा दाए दिमाग का या शिव जैसा इसीलिए होना चाहिए क्युकी ऐसा व्यक्ति समाज की कभी नहीं सोचता। यदि उसकी पत्नी से गलती हो जाये और पूरा समाज ही उसके किलाफ़ हो जाये तो अगर पति को लगता है नहीं मेरी पत्नी ने कोई गुनाह नहीं किया तो वह पुरे समाज के विरुद्ध खड़े होने की ताकत रखता है अपनी पत्नी के लिए।
पत्नी बाए दिमाग या पारवती जैसी इसीलिए हो ताकि वो अपना हर कर्त्तव्य निभाए।
अब देखिये ,भगवन राम को हमेशा मर्यादा पुरसोत्तम कहा गया पर उनकी शादी ज्यादा देर न टिक सकी |
इसका कारण यह की श्री राम भी मर्यादा में रहते और माता सीता था |
अब एक जैसे व्यक्ति कहा टिक सकते है |
इसीलिए तो एक धोबी के कहने पर शररे राम ने माता सीता को छोड़ दिया |
यह असल में उस लीलाधर की ही लीला थी तक वे मानव को बता सके की पति चाहे जैसे भी हो पर भगवन शिव की तरह और समाज की न मानने वाला हो बिलकुल भगवन शिव की तरह |
आज केवल कुछ दिन साथ गुजारने और अपनी बाते मिल जाने भर से ही विवाह होने लगे है पर सब टिक नहीं पाते ,इसका यह कारण नहीं की माँ बाप की पसंद के बिना शादी करने पर ऐसा होता है इसका अर्थ है की अति और पत्नी एक दुसरे को समझ नहीं पाते |
पति पत्नी का रिश्ता तभी सफल होता है जब वे एक दुसरे को समझे .इसमें दोनों का चरित्र बड़ा काम निभाता है पर इससे ये साबित नहीं होता की केवल चरित्र से ही शादिय टिकती है ,इसके लिए जरुरी है की पति अपती एक दुसरे को समझे जैसे शिव और पारवती |

अर्धनारेश्वर 

जय माँ भारती
Note :(यह ज्ञान मुझे मेरे गुरु श्री रामचंद्र नन्द द्वारा दिया गया है और यह उन्ही की खोज है।)

Friday, April 19, 2013

हनुमान थे निएंडरथल (Neanderthal)

निएंडरथल 
By Aman
रामायण में हनुमान मुख्य किर्दारो में से एक है। कई लोग कई तर्क दे चुके है हनुमान पर,कुछ के लिए वे केवल एक मंघदत कहानी का किरदार है तो कुछ के लिए भगवन।
कई लोग कई तर्क दे चुके है की हनुमान असल  येती या हिममानव है और कुछ उन्हें परग्रही या एलियन कह चुके है।पर मुझे ये कुछ जमा नहीं इसीलिए लग गया खोज में।
मुझे मेरी शोध से  मिला की हनुमान निएंडरथल नामक मानव की एक उप प्रजाति हो सकती है ।

कहा जाता है निएंडरथल और आज के मानवो के पूर्वज आज 30 हज़ार साल पहले एक साथ रहा करते थे फिर धीरे धीरे 15000 ईसापूर्व तक वे विलुप्त हो गए।
निएंडरथल यूरोप और मध्य एशिया में रहते थे,इनका मध्य और दक्षिण भारत में रहने के सबूत भी मिले है।
ये दिखने में बन्दर जैसे थे पर मानव जैसे समझदार और मानवो से अधिक बलशाली। ये कपडा पहना करते और औजारों का उपयोग करना जानते थे।वे बोल भी सकते थे और वे मानवों की तरह ही एक साथ रहते थे |
यदि देखे तो रामायण अनुसार अंजन प्रदेश या किष्किन्धा दक्षिण भारत में ही स्थित थे |
     
निएंडरथल और हनुमान जी में समानता 
उस समय लोगो ने निएंडरथल का बंदरो से मिलता जुलता चहरा देख उन्हें वानर कहा हो ,
रामायण अनुसार वानरो और मानवों की शादी का भी उल्लेख है ,वैज्ञानिक भी मानते है की निएंडरथल और मानव मे क्रॉस ब्रीडिंग हुआ करती थी और हम में भी निएंडरथल के अंश है |

जय माँ भारती

Thursday, April 18, 2013

पश्चिमी मानव विकास की कहानी पर सवाल

यदि आप 19  वि सदी में यूरोप में किसी आदमी से मानव विकास के बारे में पूछते तो वो यही जवाब देता की हम आदम और हव्वा की संताने है ,यही कहानी मुस्लमान भी आपको बताते और यहूदी भी।
आज जब Evolution का सिधांत सामने आया है फिर भी कई लोग आदम और हव्वा की कहानी पर विश्वास रखते है जो की केवल एक मनघडंत कहानी है।
विग्यानुसार मनुष्य केवल एक स्त्री पुरुष से नहीं आ सकता कम से कम आदिमानवो 10 हज़ार की संताने है आज के मनुष्य।
यदि हम आदम और हव्वा की संतान होते तो अपने भाई बहन से शादी कर हम अपना DNA नस्त कर कबके विलुप्त हो गए होते।
चलिए जरा आदम और हव्वा की कहानी पर गौर फरमाते है साथ ही इसके साथ उठते सवालो के जवाब भी देंगे।
आदम और हव्वा की कहानी शुरू होती है  इसराइल के देवता Yehweh की दुनिया की रचना के बाद ।इश्वर पृथ्वी पर 'Eden Garden ' नाम का बाग़ बनाते  है जिसे चार नदिया बाटती  वे नदिया है टिगरिस ,यूफ्रातेस,पिशों और गिहों।
आज टिगरिस और यूफ्रातेस का अस्तित्व है। ये दोनों नदिया आज के इराक में बहती है बाकि दोनों नदिया आजतक नहीं मिली।
यही वजह है की विदेशी जो इसाई, म्मुसलमन और यहूदी है वे इराक को ही सबसे पुराणी सभ्यता बनते है इस सच्चाई को नकार की भारतीय सभ्यता सबसे पुराणी है।
यहाँ इश्वर आदम को बनाते है फिर उसकी फस्लियो से हव्वा को। इश्वर इस दुनिया के हर प्राणी को आदम के पास लाता है  और उनका नामकरण करने कहता है।
कम्करण केबाद इश्वर आदम को कहता है की अब से ये बाग़ तुम्हारा तुम कौनसा भी फल खा सकते हो और किसी भी जानवर का मास खा सकते हो पर याद रखना की ज्ञान के फल  वाले पेड़ का फल न खाना वरना तुम अमृतवा खो दोंगे साथ ही अच्व्हे बुरे की समाज पा लोंगे जिस कारन तुम इस बाग़ में नहीं रह पोंगे।
बाइबिल,कुरान और तोर्रें में साफ़ लिखा है की इश्वर दर गया की फल खाने के बाद वह सब जान जायेंगा और इश्वर की जगह ले लेंगा इसीलिए इश्वर आदम को फल खाने से रोकता है।
ऐसे ही कई दिन बिट गए ।एक साप जो की सैतान था वो हव्वा को अपनी बातो में फसा लेता की फल खालो ।
यहाँ भी लिखा है की केवल औरत जात ही है जो दुसरो की बातो में फसती है।पुरुष कभी नहीं फास्ता।
सैतान की बात मान हव्वा फल खा लेती है और उसकी देख हव्वा भी ।
हव्वा को इस बात के लिए खूब कोस जाता है और इस दुनिया में बुरे लाने वाली खा जाता है।
यह बात जान की आदम ने फल खा लिया इश्वर उन दोनों को बाग़ से निकल देता है।
अब आदम और हव्वा अमृतवा खोने के करे इश्वर से गुहार लगते है।
तरस खाकर इश्वर कहता है की मेरा बेटा मानव बन जन्म लेगा जो तुम्हारे कास्ट दूर करेगा ।
इसाई उस बेटे को ईसा कहते है ,मुस्लमान उसे मुहम्मद और यहूदी उसे मूसा कहते है।
अब इससे कई प्रस्न आते है ।

प्र 1 यदि Yehweh जानता था की आदम फल खायेंग तो अनर्थ हो जायेंगा तो ऐसा पेड बनाया ही क्यों और बनाया तो उसे उस बाग़ में क्यों लगाया ?
उ . क्युकी नहीं Yehweh था या कोई और ये केवल एक मंघदत कहानी है।

प्र 2 यदि फल खाने के बाद ही मानव में समझ आती तो मानव कैसे जीवित था।
उ . ये केवल बकवास है।

प्र 3 यदि हव्वा या औरत दुसरो की बातो में जल्दी फस जाती है और आदम या मर्द नहीं तो हव्वा के पीछे आदम ने भी फल क्यों खाया।
उ. ये झूठ है की केवल औरत ही दुसरो की बातो में जल्दी फसती है ताकि औरतो को दबाकर रखा जाये आपने हाथो के निचे।

प्र 4 यदि वो इश्वर का बेटा ईसा, मुहम्मद या मूसा है तो अबतक लोग अमर क्यों नहीं हुए और उनके कस्त क्यों दूर नहीं हुए।
उ. क्युकी ये सब झूठ है।

प्र5 यदि हव्वा ने फल खा कर मानव को ज्ञान और समझ दी तो उसे पहला पैगम्बर कहना चाहिए न ही आदम को ?
उ. ये धर्म केवल पुरुष प्रधान है इसीलिए ये उमीद छोड़ दो।
ये थी मानव विकास की झूठी कहानी  जो की केवल अन्धविश्वास है ताकि लोगो को मस्सिहा का झासा दे उनसे मन चाह काम कराया जाये।

जय माँ भारती

Sunday, April 14, 2013

अमेज़न महिला हत्यारानो का राज्य

By Dev (Blog Writer)

इतिहास उठाकर देखले आज तक जितने राज्य साम्राज्य हुए उनमे अधिकतर पुरुष प्रधान राज्य थे पर कुछ ही थे जिन्हें महिलाये चलती थी।
इन्ही में से एक ऐसा राज्य था जो आज के तुर्क से लेकर साका (Synthia) तक था।
इनकी रानी महिला तो थी ही पर पूरी फ़ौज ही हसींन महिला हत्यारानिनो की थी जिनकी तलवारे पुरुषो के रक्त के लिए प्यासी थी।
ये थी अमेज़न राज्य की महिला योध्याये जिनका जीकर अक्सर यूनानी मिथकों और कहानियो में मिलता है।
यूनानी में अमेज़न का अर्थ है योधा ।
इन लड़ाकू महिलाओ के बारे में यूनानी लिखते है की ये अप्सराओ सी सुन्दर पर पुरुषो सी तलवार चलाती थी इसीलिए यूनानी उन्हें Androktones कहते यानि पुरुषो को मरने वाली।
इनका जीकर यूनानी महागाथा Iliad में भी है साथ ही जब सको का आक्रमण हुआ था भारत पर तो साका योद्धओ के साथ महिला योद्धाओ का भी उल्लेख है।
अमेज़न यु तो स्वतंत्र तरीके से युद्ध लड़ता या किसी के सहायक राज्य के तौर पर भी।
इनके समाज में केवल औरते ही होती ,पुरुष केवल नौकर होते उनका कोई औदा नहीं था उनके समाज में।
महिलाये खेती,शिकार आदि जैसे अनेक कामे करती।
अपना वंश बनाये रखने हेतु  वर्ष में केवल एक बार ये पास के कबीलों में जाकर पुरुषो  से सम्भोग करती और यदि लड़का होता तो उसे मार दिया जाता या अपने पिता के पास भेज देते या फिर उन्हें कुछ वर्ष पलकर जंगले में छोड़ देती।
लडकियों को वे अपने पास रखती और हर काम सिखाती।
युद्ध के दौरान जिन पुरुषो को बंधी बनाया जाता उन्हें ये अपने नौकर के तौर पर रख लेती। ये उनका काम करते या फिर मनोरजन करते। कियो को सम्भोग हेतु भी रखा जाता।
कई सालो तक इनके अस्तित्व पर शक किया जाता पर हाल ही में तुर्क और यूक्रेन में कुछ कब्र मिले है महिला योधो के जो इनके सच्चाई पर मोहर लगाती है।
उस वक़्त पुरुषो के लिए तो अमेज़न नर्क के बराबर ही होगा।
आज की महिलाओ को इन औरतो से बहादुरी की सिख लेनी चाहिए की कैसे अपनी रक्षा की जाये और समाज में महिलाओ को आगे लाया जाये।
जय माँ भारती
Note(अश्लील सब्दो का प्रयोग करने के लिए कृपया शमा करे)

Saturday, April 13, 2013

काब्बा के काले पत्थर का राज़ और आल्हा की सचाई।

By Aman and Dev ( Blog Writers)

यु तो मेने कई बार मुसलमानों को यह कहते सुना है की पत्थर की पूजा हराम है। पर जब में इनसे पूछता हु की काब्बा में जो काला पत्थर है उसकी पूजा क्यों करते हो तुम ?
कई जवाब नहीं दे पाते और कुछ बोलते है ये पत्थर पैग़म्बर आदम के ज़माने का है ,वे पहले आदमी थे और पैगम्बर इसीलिए हम उनकी याद में इसकी पूजा करते है।
कई तो पूजा करने की बात नहीं करते पर बोलते है की ये अल्लहा की दें है इसीलिए हम चक्कर कटते है इसकी,इससे हमें उर्जा मिलती है पर हम इसकी पूजा नहीं करते।
मुझे और मेरे साथी देव को ये बात पति नहीं इसीलिए हमने छानबीन की और एक राज़ सामने आया जिसे आजतक छुपाये रखा गया।
ये छानबीन दो भाग की है एक मेरा और मेटे मित्र देव की है।

काल पत्थर अल्लह की दें नहीं ( Aman)

मेने काले पत्थर पर कई तर्क सुन रखे थे जैसे ये शिव लिंग है या शनि देव की मूर्ति पर मुझे ये पसंद नहीं आया और यदि वो लिंग है तो उसके साथ योनि होनी चाहिए जो की है नहीं साथ ही शनि देव की मूर्ति तो कतए नहीं क्युकी ये कुछ गोल सी है और शनि देव की मूर्ति तो विशाल चौकोणं होती है ।
तो ये है क्या ?
ये असल में एक उल्का है जो मुहम्मद के जन्म के कई सौ साल पहले अरब में गिरा  था।
600 ई. से पहले यानि इस्लाम से पहले अरब के लोग कुदरत की पूजा करते थे।
ये लोग बंजारे हुआ करते थे और इनके हर काबिले का एक कुल देव होता था।
मक्का और  मदीना उस वक़्त भी अरब के मुख्या शहर थे।
अरबियो के भी कई देवता थे जिसमे मुख्या था चन्द्र देवता इलाह जिसके बारे में आपको देव बतायेंगा।
कुरान में इस  धर्म का जीकर है की इस धर्म के लोग अंध श्रद्धालु थे ,वे पेड़ो को पूजते थे और आमिर सौदागरों को भी ,कुरान अनुसार  आमिर सौदागर अपनी मूर्तिय बनवाते और खुदको भगवन कहते ।
पर अब तक इस बात के सबूत नहीं मिले।
हां वे पैडो की पूजा करते पर मानव की तो बिलकुल नहीं।
पुरातत्व वैज्ञानिको को केवल अभी तक प्राचीन अरब धर्म के देवताओ की मूर्ति मिली है ।अब तक ऐसी नहीं मिली जो सौदागर की है।
पर देखे तो मुहम्मद भी आमिर सौदागर था क्या पता उसने कुरान में उल्लेख कार्य किया हो ?और खुद के बजाये अल्लह नाम का इश्वर बनाया हो।
खैर अब असली बात पर आते है।
जब वह उल्का मेक्का शहर में गिरा  तो सब ने उसे चन्द्र देव इलाह की देन समझी ।
ये लोग इस उल्का की पूजा करने लगे ताकि उन्हें बरकत मिले पर मुहम्मद ने प्राचीन अरब धर्म के सारे के सारे मंदिर तुडवा दिए और बंद करवा दिए तो केवल इसे ही क्यों बक्शा ?
ये आपको देव बतायेंग।

मुहम्मद का पाखंड और पत्थर की सचाई (Dev)

जैसा आपको अमन ने बताया की प्राचीन अरबी उस उल्का को चन्द्र देव की देन समझ पूजा जाता तो इस्लाम में इसे इतना महत्व क्यों है ।
इसका उत्तर है की मुहम्मद एक क्रूर और अत्याचारी आमिर सौदागर था।
वह भी प्राचीन अरबी धर्म को मानता था।
उसके अनेक रिश्तेदार अनेक धर्म का पालन करते।कोई इसाई ,कोई यहूदी यहातक की एक रिश्तेदार को हिन्दू तक कहा गया है।
जिन सौदागरों का उल्लेख कुरान में है वो असल में है ही नहीं बल्कि वह सौदागर खुद मुहम्मद था।
मुहम्मद की क्रूरता को छुपाये रखने हेतु इन सौदागरों की कहानी रची गयी।
मुहम्मद प्राचीन अरबी धर्म के इलाह देवता का भक्त था ।वह मानता की केवल इलाह ही इश्वर है और कोई नहीं और यही इलाह  बाद में जाकर अल्लह बना।
क्युकी वह पत्थर इलाह यानि अल्लह की दें थी करके इस्लाम में उसे पूजने की इज़ाज़त है। रही बात इलाह के मंदिर की तो वो भी उसने नस्त कर दिए क्युकी  वह इलाह का वजूद मिटाकर केवल अल्लह का वजूद चाहता था।
मुहम्मद ने अपनी अमीरी के दम पर मेक्का कब्जाया फिर तो आप जानते ही है।
इलाह की मूर्ति की तस्वीर निचे दी गयी है

जय माँ भारती

Thursday, April 11, 2013

शुन्य की खोज असम में हुई।

By Aman and Vikramaditya

यूनानी और रोमन यूरोप को कई महान अविष्कार देने के लिए महसूर है। यूनान ने डेमोक्रेसी दी तो रोम ने नालियों और सोचालय व्यवस्ता दी।
पर फिर भी ये देश शुन्य की खोज में असफल रहे।
जब शून्य पहली यूनान और रोम पंहुचा तो उन लोगो ने कहा की कैसे कोई वास्तु न होकर भी हो सकती है?
अब आप सोचेंगे की ये तो भारत के महान गनित्याग्य अर्याभात्त थी जिन्होंने कुछ नहीं को कुछ है कहा पर सच यह है की शुन्य की खोज अर्याभात्त से पहले असाम में हो चुकी थी।
हाल ही में असाम में एक पत्थर पर कुछ अंक अंकित मिले है जो 200 ई. के है यानि अर्याभात्त के 300 वर्ष पूर्व।
वे अंक है 2,3,1,0,7 और 8।
डॉ एच.एन भुयान जो की प्रशिध पुरातत्व वैज्ञानिक है इस बात की पुस्ती की है।
अभी जाच चल रही है उस आदमी के बारे में पता करने की जिसने शुन्य की खोज की।

आदिवासी भी आर्य है।

By Dev (CO-WRITER)

आदिवासी उन्हें कहा जाता है जो आदिकालीन ज़माने की तरह रहते थे। भारत में आज भी आदिवासी है बहोत से जंगले में रहते है और बहोत से नगरो ,छोटे शहरों में बस गए है ।
यदि वेद का अध्यन करे तो कई आदिवासी कबीलों को क्षत्रिय मन गया है।
यदि असज देखे तो राजनीती और वोट हेतु इन्हें निचली जात का बताया जाता है और वोट पाया जाता है।
आर्य आक्रमण की थ्योरी के अनुसार आदिवासी भारत के असली मूलनिवासी है साथ ही दलित भी इन्ही के साथ है। पर ये सरासर झूठ है।
रामायण और महाभारत में भील आदि को क्षत्रिय कहा गया है।
गोंड के राजवंश ने मध्यप्रदेश में राज भी किया है।
इन्हें हमसे अलग करती है इनका रहन सहन क्युकी ये विकशित आर्यों के उलट अपनी परंपरा के अनुसार रहना चाहते है।
यदि धर्म देखा जाये तो कई हिन्दू है ,कई मुस्लिम और इसाई पर पहले ये हिन्दू थे।
इस बात को भी नकार दिया जाता है क्युकी आदिवासी अपने पूर्वज और पदों की पूजा करते है।
यदि देखे तो वेदो में अपने पूर्वज और पेड़ो की पूजा को सम्मानित स्थान है ।साथ ही आज भी कई आदिवासी भगवन शिव और नाग की पूजा करते है।
DNA शोध से पता चला है की आदिवासी भी भारतीय है ब्राह्मण या शुद्र के ही परिवार से।
यदि वेदों में देखे तो हमें ये भी पता चलता है की आदिवासी और हम एक ही है। वो इस कदर है की जब मानव धरती पर फ़ैल गए तो उन्होंने सर्वप्रथम अपने अपने काबिले बनाये। धीरे धीरे ये छोटे छोटे काबिले बड़े हो बड़े काबिले बने फिर राज्य बन गए।
कुछ काबिले ही रहे।
इसका प्रमाण दसराजन युद्ध में है। इस युद्ध में राजाओं के साथ कई कबीलों के सरदार भी थे।

Wednesday, April 10, 2013

सिन्धु सरस्वती सभ्यता का पतन।

By Aman (Blog Writer)

थोड़ी जानकारी

सिन्धु सरस्वती सभ्यता सिन्धु नदी और सरस्वती नदी के बिच में बसी सभ्यता थी। ये अफगानिस्तान से भारत तक फैली दुनिया की सबसे बड़ी सभ्यता थी।
आज आधे भारत या पाकिस्तान से भी बड़ी जगह में ये सभ्यता भारत में फैली थी ।
यु तो पुरातत्व वैज्ञानिक कहते है ये सभ्यता 6000 ईसापूर्व में बसी और इसने 3000 ईसापूर्व में इसने अपना स्वर्ण युग देखा पर 1900 ईसापूर्व के आते ही इसका पतन शुरू हो गया।
पर यही शोध से पता चला है की ये सभ्यता 9000 ईसापूर्व में बसी और इसका स्वर्ण युग 5000 ईसापूर्व से 1900  ईसापूर्व तक था।
ये द्दुनिया की सबसे पुराणी सभ्यता है पर विदेशी इसे नकारते हुए मेसोपोटामिया (5000- 300 ईसापूर्व) को सबसे प्राचीन बताते है वो भी केवल इस तर्क पर की मेसोपोटामिया ने खुदके सभ्यता की तारिक लिखी थी जो 10000 ईसापूर्व तक जाती है। पर कुछ भी हो सरस्वती सभ्यता सबसे प्राचीन है।
इस सभ्यता के व्यापर मिस्र(केमेथ मिर्स का असली नाम है) मेसोपोटामिया,दक्षिण भारतीय सभ्यता ,अफगान अदि से था।
जब मेसोपोटामिया और केमेथ(मिस्र) में आलीशान घर बनाना शुरू हुआ था तब  सरस्वती सभ्यता के नगरो में उस वक़्त के पहले महानगर थे।
यूरोपियन सभ्यता में रोम सभ्यता ही थी जोसने नाले उपयोग उससे पहले सरस्वती सभ्यता थी जो अपने नालो,मोरियो और स्वच्चाता के लिए महासुर थे ।
सरस्वती सभ्यता के हर नगर में हर घर में सोचालय थे जबकि मेसोपोटामिया और केमेथ बड़ी बड़ी इमारतो का निर्माण कर रहे थे फिर भी उनके घरो में यहाँ तक की रजा के महल में भी सोचालय की सुविधा नहीं थी।
यही सभ्यता थी जिसने पहली बार लिखना शुरू किया मेसोपोटामिया से 100 वर्ष पहले साथ ही पहली भासा भी विकशित यही हुई।
सर्जरी,दातके इलाज के तरीके ,वजन ,बटन  अदि कई वसतो यही की दें है।
दुनिया का पहला बंदरगाह लोथल में है।

पतन

इस सभ्यता के पतन की पहली सबको तब से गुथी में दल रही है जबसे इसकी खोज हुई थी।
1900 में धीरे धीरे लोग यहाँ के नगर छोड़ जाने लगे पर उसके बाद भी कई नगर बनाये गए जो लेट हरप्पा के समय के है ।ये नए नगर लोगो को केवल कुछ 500 से अधिक वर्ष ही रोक पाए।
200 ईसापूर्व तक यहाँ लोग बचे हुए थे।यहाँ कुषाण वंस का एक स्तम्ब मिला जो ये बताता है की कुषाण के समय भी यहाँ लोग थे पर बाद में ये नगर पूरी तरह खली हो गए।
इसके बाद केवल विदेशी आक्रमणकारी ही यहाँ बसे।
हड़प्पा अदि शुरवाती नगरो की टूटी फूटी हालत देख लोगो ने अंदाजा लगाया की किसी विदेशी अक्रमंकरियो ने इन पर हमला किया। तब ज्यादातर पुरातत्व वैज्ञानिक इसाई थे।
उनकी मान्यता थी की इस्वर ने दुनिया 4000 ईसापूर्व में बनाई ,2000 ईसापूर्व में बाड़ आई जिसके बाद ये सभ्यता बसी यानि 1500 ईसापूर्व के करीब अक्रमंकरियो ने यहाँ हमला किया।
हिटलर वेदों में कहे गए सर्वोच्च आदमी आर्य से बहोत प्रवाहित था इसीलिए उसने घोसना की की वह और सारे जर्मन आर्य नस्ल के है।
फिर क्या था पुरातत्व वैज्ञानिको ने कह दिया की विदेशी अर्यो ने सरस्वती सभ्यता का अंत किया। साथ ही अंगेजो के लिए हिन्दुओ को बटने का अच्छा तरीका था ये इसीलिए इसे मान्यता दे दी गई।
पर 1990 के करीब करीब इस तर्क को लोग अभी नकारना शुरू कर रहे है।
ये कैसे हो सकता है की कुछ हज़ार विदेशी 5 लाख की जनसँख्या वाली सभ्यता पर कब्ज़ा करे। इसका तर्क ये दिया गया की सरस्वती सभ्यता के लोग शांति प्रिय थे और हटिया का इस्तेमाल नहीं करते थे वे पर यह तर्क 2005 के करीब टूट गया जब उत्तरप्रदेश में सरस्वती संह्यता के लोगो की कब्रे मिली जोसमे तलवार,कवच सही धनुष भी मिले यानि ये लोग शत्र रखा करते थे।
जल्द ही एक नया तर्क आया की 1900 के करीब मेसोपोटामिया मसे व्यापर टूटने के करे यह सभ्यता विलुप्त हो गयी पर जल्द ही इसे भी नकार दिया गया क्युकी व्यापर हेतु कई देश थे सरस्वती सभ्यता के पास।
अगला तर्क जिसे में भी मानता हु वो है जल वायु में बदलाव।
जल वायु के बदलाव के कारन 1900 के आखिर में वह वर्षा कम पड़ने लगी इसके साबुत है पुरातत्व वैज्ञानिको के पास। साथ ही सरस्वती नदी का सुखना। सरस्वती नदी के सूखने के कारन उनकी उद्पदन शमता कम हो गयी पर किसी कदर सिन्धु की सहयता से वे टिके रहे।
बाड़ भी एक कारन है। सरस्वती सभ्यता के कई नगरो में कई बार बाद अस्यी थी। मोहनजोदड़ो में ही कुल 7 बार बाड़ आई थी। मेसोपोटामिया की तरह बाद से बचने के अछे उपाय न हिने के कारन ये सभ्यता विलुप्ति के कगार तक आ पहुची थी।
अराजकता और भ्रस्ताचार ये तर्क मेरा स्वयं का है ।
मेने पाया की मोहनजोदड़ो अदि नगरो की बाद से बचने के लिए दीवारों को बहोत सलिखे से बनाया गया था ।पर जैसे जैसे बाड़ आती गयी वैसे वैसे दिवार की गुणवक्ता घटती गयी ।ये बात पुरातत्व वैज्ञानिको ने भी पी है।
साफ़ है वह का राजा या जनता जिन्हें दिवार की मराम्मद कम सोंपा जाता वे उसमे घोटाले करने लगे।
यदि लेट हड़प्पा के नगर देखे तो ये साफ़ ज़ाहिर होता है की वे नगर केवल लोगो को कुछ साल रोके रखने के लिए ही बने थे यानि जनता ने राजा के विरुद्ध बगावत छेद दी थी और साथ ही इसी दौरान फारस ने सिधु घटी पर आक्रमण करना शुरू कर दिया  था। उन्ही से बचने और नए राज्य के निर्माण के लिए घाटी छोड़ दूसरी जगह बसे।

नतीजा

नतीजा साफ़ है ब्रस्ताचार और बाड़ की वजह से सरस्वती सभ्यता के लोग भारत में फ़ैल गए फिर इन्ही लोगो ने जनता के राज के लिए जनपद बनाये जो बाद में महाजनपद बने।
यही आप सिन्धु सभ्यता की मुद्रा और महाजनपद की मुद्रा मिलाये तो आपको कई समानताये मिलेंगी यानि सरस्वती सभ्यता विलुप्त नहीं पर अभी भी जरी है।
जय माँ भारती

Thursday, April 4, 2013

कहानी गिलगमेश और उसके अमृतवा की खोज की (एक प्राचीन इराकी महागाथा)

गिलगमेश या बिलगमेश की वीरगाथा एक मेसोपोटामिया या प्राचीन इराक की वीरगाथा है ।
इस महागाथा को पत्थर की ईट पर लिखा गया था और वे 12 थी पर 12वि सही हालत में न होने के कारन कहानी का अंत कोई नहीं जानता।पर हाल ही में 12वि ईट मिली है और आज में आपको पूरी कहानी बताऊंगा।
ये कहानी है सुमेर शहर के राजा गिलगमेश (3000 ईसापूर्व )की साहसी कारनामो पर है।2500 ईसापूर्व में सर्गोन के पुरे मेसोपोटामिया को जीतने के बाद ये वीरगाथा काफी महसूर हुई ।
सिकंदर के फारस आक्रमण से पहले ये महागाथा वहा बहोत लोकप्रिय थी ।

कहानी

गिलगमेश सुमेर का 5वा एवं शक्तिशाली राजा था,वह आधा मानव और आधा देवता था।वह काफी सुन्दर और हस्त पुस्त था ।कई शहरों को जीतने के बाद उसने उरुक को अपनी राजधानी बनायीं
।अपनी सफलता के कारन और उसके जीतना इस पृथ्वी पर कोई शक्तिशाली न पाकर उसे घमंड हो गया और एक क्रूर राजा बन गया।
वह मजदूरो से अधिक काम कराता और किसी भी सुन्दर कन्या चाहे वो उसके किसी सेनापति की क्यों न हो उसकी इज्ज़त लूट लेता। आखिर लोगो के देवताओ से प्राथना के बाद देवताओ ने उनकी पुकार सुन गिलगमेश का संहार करने एंकि-दू भेज जो की गिलगमेश जितना शक्तिशाली था और एक वन्मनव था। वह जंगले में पशुओ के साथ रहता ।
एक दिन एक शिकारी गिलगमेश के पास गया और उसे बताया की एक वन मानुष है जो उनके फंदों से जानवरों को छुड़ा देता है।
गिलगमेश ने एक सुन्दर देवदासी शमश को एंकि-दू को लुभाकर उरुक लाने भेजा क्युकी उस समय यह मन जाता था की शराब और काम वाष्ण आदमी को सब्याता की और ले जा सकती है।
शमश एंकि-दू के साथ रही और उसे सभ्यता की और ले गयी अब एंकि-दू एक वन मानव नहीं एक सभ्य मानव था ।
उरुक पहोच शमश और एंकि-दू ने शादी कर ली ।
कई दिन उरुक ने रहने के बाद एंकि-दू को गिलगमेश के बारे में पता चला और उसके कुकर्मो के बारे में भी।
एंकि-दू गिलगमेश को चुनौती देने गया।
दोनों के बिच घमासान मल्य युद्ध हुआ आखिर में गिलगमेश को उसकी बुरे का एहसास हुआ और दोनों एक दुसरे की शक्ति से प्रवाहित हो मित्र बनगए।

दोनों मित्रो ने कई शहर जीते आखिर में गिलगमेश को देवताओ के देवदार के बाग़ से देवदार चुराने की शुजी ताकि उसकी लकड़ी से उरुक शहर के दरवाजे बनाये जाये।
एंकि-दू ने पहले तो मन किया पर बाद में मान गया।
दोनों मित्र रस्ते की कई बढाओ को पार कर बाग़ तक पहुचे पर एक मुस्किल थी बाग़ की रक्षा हुबाबा करता था जिसे प्राचीन इराक के वायु देव ने बनाया था।
दोनों हुबाबा से लदे आखिर हुबाबा की मृत्यु हो गयी।
दोनों ने मिल देवदार के वृक्ष कटे और कुछ लकड़ियो की सहयता से एक नाव बनाई ताकि वृष उसमे लाद ले जा सके ।
शहर पहोच गिलगमेश ने उसके दरवाजे बनाये इस बिच हुबाबा की मृयु की खबर देवताओ तक पहोची जिसे सुन इश्तार यानि प्यार की देवी गिलगमेश पर मोहित हो गयी और गिलगमेश के पास अपने प्यार का इज़हार करने गयी।
गिलगमेश ने उसे साफ माना कर दिया।
गिलगमेश ने कहा :- हे प्रेम की देवी इश्तार में तुम्हारे पिछले प्रमो के बारे में जानता हु साथ ही ये भी की जैसे ही तुम्हारा उनसे मन उबा वैसे ही उन सब को मृत्यु देखनी पड़ी।
यह सुन इश्तार अपने पिता अनु के पास गयी और उन्हें स्वर्ग का सांड उरुक पर भेजने के लिए कहा ।
अपने पिता के मन करने के बाद इश्तार ने अनु को धमकी दी की यदि उसके कहा अनुसार नहीं हुआ तो वह नर्क का दरवाजा खोल देगी जिससे हजारो जीन्द मृत(Zombies) बहार आयेंगे और तबाही मचा देंगे ।
विवस हो अनु ने उरुक पर सांड भेज दिया। सांड अपने साथ 7 वर्ष का सुखा लाया ।गिलगमेश और एंकि-दू उस सांड से लड़ने गए ,कई दिन लड़ने के बाद आखिर एंकि-दू ने उस सांड के सिंग पकड़ लिए (निचे दी हुई तस्वीर देखे)और गिलगमेश ने उसे मार डाला ।
पर एंकिदू बहोत घायल हो गया बिलकुल अर्ध्मारा सा इसीलिए वह अब शैया पर ही पड़ा रहता।
एक दिन उसे सपना आया की देवताओ ने सभा बुलाई है और वे कह रहे है की हुबाबा और स्वर्ग के सांड को मरने की वजह से गिलगमेश और एंकि दू ने अपरद किया है इसीलिए इन्हें सजा मिलनी चाहिए मृत्युदंड की पर गिलगमेश सुधर गया है उसे मरना सही नहीं रहेगा पर एंकिदू को तो गिलगमेश का संहार करने के लिए भेज था और अब जोकि गिलगमेश सुधर गया तो एंकिदू का कुछ काम नहीं ,उसका जीवन का लक्ष्य समाप्त हो गया है इसीलिए उसे मृत्युदंड दी जाए।
एंकिदू सपना देख खुदको कोसने लगा ।
वह कहता :- "क्यों में इस निर्दयी मानव दुनिया में आया मैं जंगले में उन पशुओ के साथ ज्यादा सुखी था ।
ह वह नारी शमश क्यों में उसके जाल में फसा नहीं उसके जसल में मैं फास्ता और नाही में उरुक आता।
पर वाही थी जिसने मुझे रोटी दी खाने के लिए और दूध दिया उसने मेरा कितना क्या रखा ,भगवन उसे सदा सुखी रखे।
और गिलगमेश मेरा मित्र मेरा भाई ओह उसने क्या क्या नहीं किया मेरे लिए। मेरे मरन उपरांत वह मेरे लिए सबसे सुन्दर शैया लायेगा। स्वर्ग में मेरा कयल रखने के लिए कई दसिय और रखेल भेजेगा (उस वक़्त किसी आमिर या राजा के साथ जिन्दा रखैले और दास दासिया दफनाई जाती क्युकी यह मन जस्ता था मरने के बाद स्वर्ग में उनकी आवश्कता पड़ेगी )भगवन उसे सदैव जीत दिलाये ।"
यह बात एंकिदू ने गिलगमेश को बताई ,गिलगमेश दुखी हो गया पर वह एंकिदू को दिलासा देता रहा की वह जीवित रहेंगा ।
एंकिदू बहोत बीमार पद गया और आखिर मर गया ।गिलगमेश उसके पास ही था ,उसके मरने के बाद वह उसे जगाने की कोशिस करता पर एंकिदू कुछ नहीं कहता,गिलगमेश ने एंकिदू की दिल की धड़कन देखि वह रुक चुकी थी।
कई दिन तक गिलगमेश उसकी लाश के बाजू में रहा आखिर जब एंकिदू की लाश सड़ने लगी और कीड़े उसे खाने लगे तब गिलगमेश ने उसे सम्मान सहित दफना दिया।
गिलगमेश को दक्खा लगे अपने मित्र की मौत पर वह सोचने लगा जिस कदर उसका प्यारा मित्र मरा क्या उसी कदर वह मरेगा ,गिलगमेश जीना चाहता था वह अमर होना चाहता था तब उसे अपने बड़े बुडो की कहानी याद आई जिउसुद्दु की जो की मनु का इराकी स्वरुप था।उसे याद आया स्वयं देवताओ ने उसे अमरता का राज बताया था ,गिलगमेश उसी का वंशज था जिउसुद्दु उसकी सहयता जरुर करेगा।
गिलगमेश दुनिया के आखिरी छोर की खोज में निकला जहा जिउसुद्दु रहता था।
कई महीनो तक चलने के बाद उसकी हालत भी एंकिदू सी हो गयी,वह स्वयं एंकिदू नजात आता। उसके सारे वस्त्र निकल गए थे और सरीर पर बड़े बड़े बाल आ गए थे।
गिलगमेश दो पहाड़ी के यहाँ पहोचा। उन पहाडियों के बीचो बिच एक गुफा थी जो जिउसिद्दु के घर की ओर जाता पर दो विशाल बिछुओ ने उसका रास्ता रोक लिया ।दोनों से युद्ध कर उन दोनों को गिलगमेश ने मर डाला और गुफा में चला गया।
गुफा में काफी अँधेरा था,बहोत दूर चलने के बाद एक छोर उसे रोशनी नजर आई। उसरी तरफ पहोच उसे एक सुन्दर बाग़ नजर आया ,बाग़ के पास एक सागर था जिसका नाम मृत्यु सागर था और उसके बिच में एक द्वीप पर था जिउसुद्दु का घर।
वह सागर के किनारे पहोच तो एक जल देवी  आई और उसे रोकते हुए बोली की चले जाओ वापस। गिलगमेश ने उसे वह आने का कारन बताया जिसे सुन उस देवी ने उसे समझाया पर वह नहीं माना और आगे चल दिया।
उसे सागर के किनारे एक नाव मिली इसमें जिउसुद्दु माझी था,उस माझी ने भी गिलगमेश को लाख समझाया पर वो मन नहीं आखिर माझी उसे जिउसिद्दु के पास ले गया।
जिउसुद्दु ने गिलगमेश को देखा तो कुश हुआ पर उसकी इच्छा सुन चिंतित हो गया।
गिलगमेश की जिद के बाद जिउसुद्दु मान गया पर एक शर्त राखी ,गिलगमेश को पूरा एक सप्ता बिना सोये बिताना था पर आखिर कुछ दिन न सोने की की कोशिश करने के बाद वह सो गया।
दुखी हो गिलगमेश जाने लगा पर जिउसुद्दु की बीवी ने जिउसिद्दु को गिलगमेश की थोड़ी मदत करने के लिए कहा ।
जिउसुद्दु ने गिलगमेश को रोका और उसे पास ही के अमृत सागर में जसने को कहा जिसकी ताल हटी में एक औषदी थी जो उसको दुबारा जवान बना देगी (बबुली और दुसरे इराकी की शहरों की कहानी अनुसार यह औषदी अमृत्व प्रदान करती है .यह पूरी तरह से सुमेरी कहानी है जो सबसे पहली और असली है )
गिलगमेश अमृत सागर गया और औषद प्राप्त कर उरुक की और गया।
उरुक जाते समय एक तलब आया रस्ते पर तो गिलगमेश उसमे नहाने के लिए गया।
पास ही एक सर्प था जो औषदी की गंद से मोहित हो गया और उसे खा गया। अब सर्प जवान और पहले से अधिक शक्तिशाली बन गया ।उसकी पुराणी केचुली उतर गयी और एक हस्त पुस्त सर्प निकला जो चला गया।
नहाके आने के बाद गिलगमेश ने पाया की औषदी वहा नहीं है साथ ही वहा सर्प की केचुली थी ।वह समझ गया क्या हुआ ।
उसे बहोत दुःख हुआ की उसकी मेहनत एक रेंगने वाले जीव ने नस्त कर दी ।
गिलगमेश उरुक पंहुचा उदास मन से और वह शाशन करने लगा,उसे एहसास हुआ की जग जितना आसन है पर दिल जीतना कठिन इसीलिए अब वह लोगो की भलाई का काम करता ।
कई साल बिड गए और गिलगमेश वृद्ध हो गया उसे अब यह चिंता सताने लगी की उसकी मृत्यु के बाद उसके शारीर और आत्मा का क्या होगा ।
गिलगमेश ने देवता नर्गल को याद किया। नर्गल ने उसे सरीर सहित नर्क में पंहुचा दिया। वहा वह भाधाए पर कर और नर्क के रक्षक को हराकर आगे बड़ा और उसे आखिर एंकिदू की आत्मा मिली।
नर्गल ने भूमि में दरार करदी जिस कारन दोनों मित्र नर्क से बहार आ गए।
गिलगमेश ने एंकिदू से अपना सवाल किया ,जवाब में एंकिदू ने कहा की गिलगमेश इसे सुन नहीं पायेंग पर गिलगमेश की जिद के कारन उसने बताया की इस सरीर को कीड़े खा जाते है और आत्मा पृथ्वी पर भटक मल और सदा हुआ पानी पीती है यदि उसकी कब्र पर रोज आहार न रखा जाये।
कुछ साल पहले तक यही कहानी का अंत मन जाता था की गिलगमेश को मरने के बाद होने वाले कास्ट का पता चलता है पर अभी अभी एक और ईट मिली है जिसके अनुशार गिलगमेश की भी मौत होती है और उसकी आत्मा नर्क में जाती है पर अछे कर्मो के कारन उसे नर्क का न्यायधीश(जज) बना दिया जाता है ।
जय माँ भारती