Wednesday, April 3, 2013

हिन्दू शब्द प्राचीन है

कुछ लोग बोलते फिरते हैं कि हिन्दू शब्द
विदेशियों की देन है।
मित्रो जो कि एक गलत अवधारणा है। हमारे
धर्म मे हिन्दू शब्द का तब से उल्लेख है जब
दूसरे लोग जँगली जीवन जीने को विवश थे।
कुछ उधाहरण देखते है सनातन में हिन्दू शब्द के
बारे में ...
१- ऋग वेद में एक ऋषि का नाम'सैन्धव'
था जो बाद में"हैन्दाव/ हिन्दव"नाम से
प्रचलित हुए
२- ऋग वेद के ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द
हिमालयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।
( हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश
को हिन्दुस्थान कहते हैं)
३- मेरु तंत्र ( शैव ग्रन्थ) में हिन्दू शब्द
'हीनं च दूष्यत्येव हिन्दु रित्युच्चते प्रिये'
( जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे
हिन्दू कहते हैं)
४- यही मन्त्र शब्द कल्पद्रुम में भी दोहराई
गयी है
'हीनं दूषयति इति हिन्दू'
५-पारिजात हरण में"हिन्दू"को कुछ इस प्रकार
कहा गया है |
हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टमानसान ।
हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिंदु रभिधियते ।।
६- माधव दिग्विजय में हिन्दू शब्द
यओंकारमंत्रमूला -ढ् पुनर्जन्म दृढाशयः ।
गोभक्तो भारतगुरू र्हिन्दु र्हिंसनदूषकः ॥
( वो जो ओमकार को ईश्वरीय ध्वनी माने,
कर्मो पर विश्वाश करे, गौ पालक,
बुराइयों को दूर रखे वो हिन्दू है )
७- ऋग वेद (८:२:४१) में'विवहिंदु'नाम के
राजा का वर्णन है जिसने ४६००० गाये दान में
दी थी|
विवहिंदु बहुत पराक्रमी और दानी राजा था ऋग
वेद मंडल ८ में भी उसका वर्णन है|
मित्रो उपरोक्त तथ्यो से ये स्पष्ट है कि हमारे
धर्म-ग्रन्थो मे हिन्दू शब्द का उल्लेख बहुत
पहले से है परन्तु हमारे पूर्वज खुद को"धर्म"
या"सनातन-धर्म"के बोलते थे।
जय माँ भारती

2 comments:

  1. वृग्वेद के सैंधव शब्द को हिंदव कर के खुद अपने आप को अरब के शिष्य घोषित करने जा रहे है.
    असल में आर्यो के दो तरह के गुट थे एक वृग्वेदिय और दूसरा यजुर्वेदीय दोनों में अक्सर कई झड़प होती रहती थी . जिनके बिच बहुत बड़ी सांस्कृतिक खाई थी .कई समय तक एक गुट ने वृग्वेद को आर्ष प्रमाण नही माना है .वृग्वेदिये आर्य यज्ञों में विश्वास करते थे ,अथर्वेदीय जादूटोना में.
    हमारी यह परम्परा रही है की हम पहले आपस में झगड़ते है बाद में आपस में सुलह भी करते है .
    जो शब्द सैन्धव नाम से प्रयुक्त हुआ हे उसका आशय कहि भी धर्म प्रतीत नही होता है.
    सर्व प्रथम 'हिन्दू'सब्द का प्रमाण मेरुतंत्र में हे. 'हिन् दुषयत्येव स हिंदुरुच्यत प्रिये..'

    अर्थात - धर्मभ्रष्टो का दूषक (अनुशासक ) 'हिन्दू'कहलाता है.

    मेरुतंत्र हिन्दुओ का कोई प्रमाणिक ग्रन्थ नही है जैसे वेद्,उपनिषद,रामायण,महाभारत,पुराण इत्यादि है.जिस मेरुतंत्र में 'हिन्दू'शब्द है उसी प्रकार 'अंगर्ेज 'शब्द भी इस्तेमाल हुआ है मतलब यह की यह संकल्पना आधुनिक है.

    इसलिए संविधान निर्माता ने हिन्दू शब्द को प्रशिप्त माना है और 'हिन्दुस्तान' जैसे शब्द को तक नकार दिया है .

    'भारत' शब्द भी वेदों में देश के अर्थ में कहि प्रयुक्त नही हुआ है.'भारतम् ' शब्द उस ग्रन्थ के लिए प्रयुक्त हुआ था जिसे अब महाभारत कहते है .पहले इस का नाम'जय'था,बाद में परिवर्धन के कारण इस का नाम 'भारतम्' पड गया और अत्याधिक परिवर्धन के बाद यह 'महाभारत 'कहलाया.

    भारत कबीला व्र्यग्वेद के कई कबिलो में से एक था.
    देश के अर्थ में 'भारत' शब्द सब से पहले विष्णुपुराण में प्रयुक्त हुआ है जो बहुत बाद की रचना है ,विष्णुपुराण कहता है:
    उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमान्द्रेश्चैव दक्षिणम्
    वर्ष तद् भारतं नाम भारती तत्र सन्तति :
    (विष्णुपुरान,2-3-1)
    अर्थात- हिमालय से समुद्र तक के उत्तर दक्षिण भूभाग का नाम 'भारत' है और यहाँ रहनेवाली प्रजा 'भारती' कहलाती है.
    भारत में रहने वालो को यह 'भारती 'कहाँ गया है,हिन्दू नही.

    विष्णुपुराण में देश का नाम 'भारत माता'या 'माँ भारती' नही 'भारत वर्ष'है.
    जो नपुंसक लिंग का शब्द है-भारतवर्षम.भारतीय संविधान में इस देश का नाम सिर्फ 'भारत'स्वीकार किया गया है .(जो विभिन्न राज्यो का संघ है)

    'हिन्दू'सं विधान द्वारा मान्यता प्राप्त नही है ,क्योकि संविधान 'इंडिया' या 'भारत'को ही मान्यता देता है .(जब तक अलग अलग राज्यो का संघटित रूप हो).'हिन्दू 'या 'हिन्दुस्तान 'या 'हिन्दुराष्ट्र 'को नही.

    जय भारत
    जय संविधान!!

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  2. "ऋग्वेद" के *"ब्रहस्पति अग्यम"* में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया हैं :-

    *“हिमलयं समारभ्य*

    *यावत इन्दुसरोवरं ।*

    *तं देवनिर्मितं देशं*

    *हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।*



    *अर्थात : हिमालय से इंदु सरोवर तक, देव निर्मित देश को हिंदुस्तान* कहते हैं!



    केवल *"वेद"* ही नहीं, बल्कि *"शैव" ग्रन्थ* में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया हैं:-



    *"हीनं च दूष्यतेव्* *हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये।”



    अर्थात :- जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं!

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